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एयरपोर्ट पर पापा को मिस करते हुए वंदना बोलीं, मना करने पर भी आ जाते थे लेने; घर पहुंचने पर कैसे खुद को संभालूंगी

Olympian Vandana Katariya टोक्यो ओलिंपिक में इतिहास रचने के बाद उत्तराखंड पहुंचते ही हैट्रिक गर्ल की आंखे नम हो गईं। वो कहने लगी कि जब भी मैं कहीं से खेलकर घर वापस आती थी तो पिता एयरपोर्ट के बाहर खड़े मेरा इंतजार करते थे।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Wed, 11 Aug 2021 10:46 AM (IST)Updated: Wed, 11 Aug 2021 04:35 PM (IST)
एयरपोर्ट पर पापा को मिस करते हुए वंदना बोलीं, मना करने पर भी आ जाते थे लेने; घर पहुंचने पर कैसे खुद को संभालूंगी
एयरपोर्ट पर पापा को मिस करते हुए वंदना बोलीं, मना करने पर भी आ जाते थे लेने।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Olympian Vandana Katariya टोक्यो ओलिंपिक में इतिहास रचने के बाद उत्तराखंड पहुंचते ही हैट्रिक गर्ल की आंखे नम हो गईं। वो कहने लगी कि जब भी मैं कहीं से खेलकर घर वापस आती थी तो पिता एयरपोर्ट के बाहर खड़े मेरा इंतजार करते थे। मैं पापा को बहुत मिस कर रही हूं। पता नहीं मैं घर पहुंचकर खुद को कैसे संभाल पाऊंगी।

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भारतीय महिला हाकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के पिता अब इस दुनिया में नहीं है। मई में उनके पिता का हृदयगति रुकने से निधन हो गया था। उस वक्त वे बंगलुरू में टोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में जुटी हुई थीं। वंदना पिता के बेहद करीब थीं। उनके पिता ने हमेशा उनका साथ दिया और इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए उसे हिम्मत दी।

जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचने के बाद वंदना ने कहा कि वह अपने पिता को मिस कर रही हैं। वह जब भी घर वापस आती थी तो उनके मना करने के बावजूद भी उनके पिता एयरपोर्ट पर बाहर खड़े उन्हें मिलते थे। पर, वह अभी दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि घर जाकर घर के अंदर उनको ना पाकर पता नहीं वो किस तरह अपने आप को संभाल पाएंगी।

कौन मेरी हिम्मत बढ़ाएगा

पिता के निधन के बाद वंदना पहली बार घर आई। उन्होंने कहा कि निधन के बाद पहली बार घर जा रही हूं, उनके बिना घर को देख पता नहीं कैसे खुद को संभाल पाऊंगी। कहा कि पिता हर बात में उसकी हौसला-अफजाई करते थे, उसकी हिम्मत बढ़ाते थे। हर असफलता पर निराश नहीं होने देते थे, दोगुने उत्साह के साथ सफलता के लड़ने, खेलने को प्रेरित करते थे। मैंने हमेशा उनमें, मेरे लिए खुद से ज्यादा जोश और हिम्मत देखी। उनके जाने के बाद अब मुझे वह हिम्मत और जोश कौन देगा, असफलता पर मेरी पीठ थपथपाकर मुझे दोबारा उठकर सफलता के लिए कौन मेरी हिम्मत बढ़ाएगा।

पिता की इच्छा थी कि वंदना जीते ओलिंपिक में स्वर्ण

वंदना के पिता की इच्छा थी कि बेटी ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा बनें। पिता के इस सपने को साकार करने के लिए भारतीय टीम के कैंप में वंदना ने अपनी तैयारियों के लिए जी-जान एक कर दी थी। तैयारियों के दौरान पिता की मृत्यु का समाचार उसे मिला। असमंजस की स्थिति यह कि एक तरफ मन कह रहा था कि पिता के अंतिम दर्शन के साथ अंतिम विदाई देने को घर जाना है, दूसरी तरफ पिता के सपने को साकार करने की ख्वाहिश।

ऐसे समय में वंदना के भाई पंकज व मां सोरण देवी ने संबल प्रदान किया। मां सोरण देवी का कहना है कि हमने वंदना से कहा कि जिस उद्देश्य की कामना को लेकर मेहनत कर रही हो पहले उसे पूरा करो, पिता का आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा। हालांकि, टोक्यो ओलिंपिक में वे पदक तो नहीं जीत पाए पर अपने शानदार प्रदर्शन और हैट्रिक लगाकर इतिहास रच वंदना ने अपने पिता को श्रद्धांजलि दी।

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