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    किसान और मजदूर परिवार से निकली देवभूमि की ये बेटियां, राष्ट्रीय फलक पर चमका रही उत्‍तराखंड का नाम

    Updated: Wed, 01 Oct 2025 06:51 PM (IST)

    उत्तराखंड की अंकिता ध्यानी और पायल सामान्य परिवारों से होते हुए भी अपनी मेहनत से खेल जगत में नाम कमा रही हैं। अंकिता ने स्टीपल-चेज में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं वहीं पायल ने वाकरेस में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। दोनों ही खिलाड़ी आगामी विश्व प्रतियोगिताओं में देश के लिए पदक जीतने का लक्ष्य रखती हैं।

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    सिर्फ कड़ी मेहनत और गहरे आत्मविश्वास से अंकिता ध्यानी और पायल हर प्रतियोगिता में लहरा रही परचम. File

    जागरण संवाददाता, देहरादून। कहते हैं मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों में उड़ान होती है। ऐसा ही कारनामा देवभूमि के साधारण किसान-मजदूर परिवार से निकली अंकिता ध्यानी और पायल कर रही हैं।

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    घर से बहुत अधिक आर्थिक सहयोग ना होने की वजह से ऐसे खेल को चुना, जिसमें सिर्फ गहरे आत्मविश्वास के साथ कड़ी मेहनत करने वालों की सलामी होती है। हालांकि यह मेहनत, एक दिन, एक महीना या एक साल की नहीं होती। सालों के संघर्ष, लगन और आत्मसमर्पण के बाद इसका परिणाम मिलना शुरू होता है, जिसके बाद फिर घर-परिवार के साथ-साथ राज्य और देश के नाम भी सराहना होती है।

    अंकिता ध्यानी :

    पौड़ी गढ़वाल के मेरुड़ा गांव के साधारण किसान परिवार की बेटी अंकिता ध्यानी का नाम आज राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहा है। उनके पिता उनके पिता महिमा नंद ध्यानी किसान हैं और मां लक्ष्मी देवी गृहिणी हैं।

    अंकिता बताती हैं कि 2017 में उनका दाखिला रुद्रप्रयाग स्थित अगस्त मुनि एथलेटिक्स हास्टल में हो गया। जहां उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ खेल की तरफ कदम बढ़ाया। लेकिन घर से बहुत अधिक आर्थिक सहयोग न होने के कारण वह महंगे खेलों की तरफ रुख नहीं कर सकी और उन्होंने स्टीपल-चेज में महारत हासिल करने का निश्चय किया।

    रोजाना करीब छह-छह घंटे तक अभ्यास कर उन्होंने जिला और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में कई पदक जीते, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा। अभ्यास के साथ-साथ उन्होंने इग्नू से स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। 2023 में हुई एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया और यहीं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका नाम गूंजा।

    इसके बाद ताे पदकों की झड़ी लगती चली गई। 2024 की सीनियर फेडरेशन प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता और पेरिस ओलिंपिक के लिए चयनित हुईं। बीती जुलाई में हुए विश्वविद्यालय खेल में वह स्वर्ण पदक विजेता रहीं।

    हाल ही में हुई राष्ट्रीय अंतरराज्यीय प्रतियोगिता में भी उन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। वर्तमान में वह बेंगलुरु की एकेडमी से स्टीपल-चेज का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं और उनका लक्ष्य आगामी विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में फिर स्वर्ण पदक प्राप्त करना है।

    पायल :

    काशीपुर के खरमासा मोहल्ला निवासी मजदूर मुन्नेलाल ने कभी नहीं सोचा था कि वह बेटी के नाम के से पहचाने जाएंगे। लेकिन बिटिया पायल के कड़े परिश्रम और लगन ने आज उनकी पहचान का स्वरूप बदल दिया। एथलेटिक्स की वाकरेस प्रतियोगिता में अव्वल प्रदर्शन करने वाली पायल बताती हैं उन्हें बचपन से खेल का शौक रहा।

    साल 2019 के आसपास उन्होंने अपने भाई के साथ स्टेडियम जाना शुरू किया। जहां उनकी मुलाकात कोच चंदन सिंह नेगी से हुई। उनके संरक्षण और मार्गदर्शन में पायल ने वाकरेस का कड़ा अभ्यास शुरू किया।

    लंबे समय तक चले संघर्ष का नतीजा यह रहा कि 2024 के ओपन राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में उन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। 2025 में चंडीगढ़ में हुई ओपन वाकरेस में भी स्वर्ण पदक झटका। हाल ही में हुई राष्ट्रीय सीनियर अंतरराज्यीय प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त कर फिर से देवभूमि का नाम रोशन किया।

    उन्होंने बताया कि वह साई बेंगलुरु से प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजाना पांच से छह घंटे तक अभ्यास करती हैं और साथ ही पटियाला से बीपीएड की पढ़ाई भी कर रही हैं। उनका आत्मविश्वास गृहिणी मां सुमेरी की प्रेरणा से मजबूत होता है। उन्होंने कहा कि वह आगामी विश्व व एशियन प्रतियोगिताओं में भी पदक जीत कर लाएंगी।