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    हिमालयन नालेज नेटवर्क के तहत यूसैक करेगा शोध, उत्तराखंड में विभिन्न बिंदुओं पर तैयार हो रही रिपोर्ट

    उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) हिमालयन नालेज नेटवर्क (एचकेएन) के तहत उत्तराखंड में विभिन्न बिंदुओं पर रिपोर्ट तैयार कर रहा है। इसमें हिमालयी राज्यों के सतत विकास के साथ ही पर्यावरणीय चुनौतियों पर अध्ययन भी शामिल किया गया है।

    By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 26 Jun 2021 12:10 PM (IST)
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    हिमालयन नालेज नेटवर्क के तहत यूसैक करेगा शोध।

    जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) हिमालयन नालेज नेटवर्क (एचकेएन) के तहत उत्तराखंड में विभिन्न बिंदुओं पर रिपोर्ट तैयार कर रहा है। इसमें हिमालयी राज्यों के सतत विकास और पर्यावरणीय चुनौतियों पर अध्ययन भी शामिल है।

    शुक्रवार को यूसैक की ओर से आयोजित वेबिनार में विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, विभिन्न रेखीय विभागों एवं गैर-सरकारी संगठनों के अधिकारियों व परियोजना प्रबंधकों के साथ विचार-विमर्श किया गया। वेबिनार का लक्ष्य राज्य के सतत विकास के लिए प्राथमिकता वाले किन्हीं दो विषयगत क्षेत्रों की पहचान करना था। वेबिनार में यूसैक के निदेशक प्रो. एमपी बिष्ट ने रिमोट सेंसिंग व भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीक से सृजित एवं एकत्रित सूचनाओं के बारे में जानकारी दी।

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    बताया कि सूचना का साझाकरण व उनको उचित समय पर नीति नियंताओं को पहुंचाना अति आवश्यक है। वेबिनार में हिमालयन नालेज नेवटर्क के नोडल अधिकारी जीबी पंत पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. जीसीएस नेगी ने बताया कि अनेक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं जैसे कृषि, ग्लेशियरों, कार्बन सिंक वैल्यू, सांस्कृतिक एवं जैविक विविधता के क्षेत्रों में समृद्ध होने के बावजूद भी पर्वतीय क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। देश के संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 145 से अधिक विश्वविद्यालय, 2000 से अधिक प्रोफेसर व 500 से अधिक वैज्ञानिक कार्यरत हैं, फिर भी विभिन्न संस्थानों में सूचना की सीमित साझेदारी है।

    कार्यक्रम में यूसैक के वैज्ञानिक डा. गजेंद्र सिंह ने बताया कि यूसैक की ओर से विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों, एजेंसियों से उपलब्ध सूचना व आंकड़ों के आधार पर दो प्राथमिकता वाले विषयगत क्षेत्रों के लिए दस्तावेज तैयार किये जा रहे हैं। उन्होंने राज्य में पानी की कमी, जंगल की आग, भूस्खलन, जलवायु परिवर्तन, रिस्पोंसिव टूरिज्म, कृषि क्षेत्रों के कम होने आदि अनेक चुनौतियों से भी अवगत कराया। इस दौरान भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व निदेशक डा. जीएस रावत, यूसैक के विज्ञानी शशांक लिंगवाल, एपीसीसीएफ एसएस रसैली, सदस्य सचिव जैव विविधता बोर्ड आरएन झा, प्रो. एसके गुप्ता, प्रो. ललित तिवारी, डा. अविनाश आनंद आदि उपस्थित रहे।

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