ब्रोशर में सपनों का महल, हकीकत में अधूरी इमारतें; ये हैं देहरादून में चल रहे प्रोजेक्ट्स के हाल
उत्तराखंड में बिल्डरों की मनमानी जारी है। कई प्रोजेक्ट अधूरे हैं और खरीदारों को वादे के मुताबिक सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। रेरा ने करोड़ों का जुर्माना लगाया है लेकिन वसूली धीमी है। बिल्डर ग्राहकों से पैसे लेकर भाग रहे हैं। रेरा के पूर्व अध्यक्ष का कहना है कि बिल्डरों पर भारी जुर्माना लगाना ज़रूरी है। नीचे विस्तार से पढ़ें पूरी खबर।

सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून। अपने सपनों का घर खरीदने के लिए लोग वर्षों की जमा-पूंजी बिल्डरों को सौंप देते हैं। चमकदार ब्रोशर में दिखाए गए फ्लैट और विला, आलीशान सुविधाओं के साथ हकीकत से कहीं ज्यादा सुंदर नजर आते हैं, लेकिन जब तमाम परियोजनाएं या तो समय पर धरातल पर उतरती ही नहीं हैं या उनकी तस्वीर बिल्कुल अलग होती है।
समय पर कब्जा न मिलना, अधूरी सुविधाएं और घटिया निर्माण खरीदारों के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। वहीं, बीते कुछ समय में तो ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं, जहां बिल्डर फ्लैट खरीदारों का पैसा हड़पकर भाग चुके हैं। पुष्पांजलि इंफ्राटेक के बाद अब हल्द्वानी में धनंजय गिरी के रूप में गहरी चोट खरीदारों के हितों को लग चुकी है।
उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) के आंकड़े इस हकीकत की पुष्टि करते हैं। प्रदेश में करीब 600 रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पंजीकृत हैं, जिनमें से 240 से अधिक देहरादून में ही हैं, लेकिन इनमें से केवल 170 परियोजनाओं को ही कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिल सका है। यानी बाकी योजनाओं को पूर्ण मानना संभव ही नहीं।
अधूरी परियोजनाएं और सुविधाओं पर कैंची
न सिर्फ निर्माण में देरी, बल्कि वादे की गई सुविधाओं में भी कटौती की जा रही है। उदाहरण के तौर पर, जैमिनी पैकटेक की सेरेन ग्रीन्स और ओकवुड अपार्टमेंट्स की परियोजनाएं। विला तो तैयार हैं, लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) अब तक नहीं बनाया गया।
हैरानी की बात है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी इस चूक पर आंख मूंदे बैठा है। लंबे समय बाद रेरा ने कंपनी पर पांच लाख का जुर्माना तो लगाया, लेकिन इससे खरीदारों को कोई ठोस राहत नहीं मिली।
जुर्माना वसूलने में नाकामी, बिल्डरों की पूरी मनमानी
रेरा अब तक बिल्डरों पर 83 करोड़ रुपये से ज्यादा का जुर्माना और रकम वापसी का आदेश दे चुका है। मगर वसूली की स्थिति बेहद कमजोर है। 30 करोड़ रुपये से भी कम की राशि ही वसूल हो पाई। यहां तक कि रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करने के बाद भी प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही।
भारी जुर्माना ही रोक सकता है मनमानी
रेरा के पूर्व अध्यक्ष रबिंद्र पंवार का मानना है कि जब तक बिल्डरों पर कड़े और भारी-भरकम जुर्माने नहीं लगाए जाते, उनकी मनमानी खत्म नहीं होगी। साथ ही, एक्ट के प्रावधानों का सख्ती से पालन कराना जरूरी है, लेकिन हकीकत यह है कि विकास प्राधिकरण और रेरा अक्सर अलग-अलग दिशा में काम करते नजर आते हैं।
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