Kargil Vijay Diwas: परिवार का वीर सपूत के प्रति अगाध प्रेम की अनूठी कहानी
एक परिवार ने कारगिल में शहीद अपने जिगर के टुकड़े की याद में पाई-पाई जोड़कर मंदिर बनाया और वहां बेटे की मूर्ति लगाई। मंशा ये थी कि लोग सदियों तक उसकी बहादुरी को याद रखें।
देहरादून, जेएनएन। Kargil Vijay Diwas ये एक साहसी परिवार की अपने वीर सपूत के प्रति अगाध प्रेम की अनूठी कहानी है। आमतौर पर माता-पिता की स्मृति में मंदिर बनाने के उदाहरण मिलते हैं, पर दून के इस परिवार ने कारगिल में शहीद अपने जिगर के टुकड़े की याद में पाई-पाई जोड़कर मंदिर बनाया और वहां बेटे की मूर्ति लगाई। मंशा ये थी कि लोग सदियों तक उनके बेटे की बहादुरी को याद रखें। पर ताज्जुब देखिए, सैनिकों की हितैषी होने का दंभ भरने वाली सरकारें ही इस शहीद को भूल गईं। बाकी बात छोड़िए, शहीद का परिवार जनप्रतिनिधि से मूर्ति के रंग-रोगन की गुजारिश कई बार चुका है, पर वह भी सुध नहीं ले रहे।
‘दैनिक जागरण’ की टीम जब गढ़ी कैंट स्थित चांदमारी गांव में शहीद राजेश गुरुंग के घर पहुंची तो उनके परिवार ने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की। शहीद की मां बसंती देवी बताती हैं कि राजेश 2-नागा रेजीमेंट में तैनात थे। छह जुलाई 1999 को वह कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे।
बेटा शहीद हुआ तो सरकार ने घोषणा की थी कि पांच बीघा जमीन और घर के एक व्यक्ति को नौकरी दी जाएगी। बताया कि शहादत के वक्त करीब 27 लाख रुपये मिले थे, जिससे चांदमारी में मकान बना लिया था। पर आज 21 साल बाद सरकार से मासिक पेंशन के अलावा कुछ नहीं मिला। नौकरी के इंतजार में छोटे बेटे अजय की उम्र ही निकल गई। वह अब प्राइवेट जॉब कर रहा है। इसी तरह सरकार ने आज तक उन्हें जमीन भी नहीं दी। गढ़ी कैंट में पांच बीघा जमीन चिह्नित भी की गई थी।
पटवारी ने जमीन की पैमाइश भी की, पर इसके बाद से बात आगे नहीं बढ़ पाई। हर साल औपचारिकता पूरी करने के लिए उन्हें सरकारी आयोजन में बुलाया जरूर जाता है, पर उनकी समस्या का समाधान नहीं किया जाता। वह बताती हैं कि राजेश के पिता श्याम सिंह गुरुंग भी फौज में थे। वह नायक पद से रिटायर हुए। पिता को देखकर ही बेटा भी फौज में गया, लेकिन राजेश के शहीद होने के बाद सरकारी सुस्ती से परिवार से बेहद आहत है।
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