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    Teacher's Day 2025: ''बस्ती की पाठशाला'' में बच्चों का भविष्य संवार रही मीना, 12 साल से नहीं रुका सफर

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 03:37 PM (IST)

    Teachers Day 2025 देहरादून के लक्खीबाग में मीना नामक एक युवती झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित कर रही है। वह गरीब बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती है और उन्हें मुफ्त शिक्षा प्रदान करती है। पिछले 12 वर्षों से वह यह कार्य कर रही है और अब तक कई बच्चों को स्कूल में दाखिला दिला चुकी है।

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    लक्खीबाग स्थित दरभंगा बस्ती में 80 बच्चे आते हैं हर दिन पढ़ने. Jagran

    सुमित थपलियाल, जागरण देहरादून। लक्खीबाग स्थित दरभंगा बस्ती में तकरीबन 150 मजदूरों के परिवार रहते हैं। मीना भी उसी बस्ती में रहने वाली लड़कियों में है। स्कूल जाने के लिए बच्चों को प्रेरित करने और उन्हें पढ़ाने का काम कर रही है।

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    आज उनके पास 80 बच्चे प्रतिदिन दो घंटे पढ़ने जाते हैं। जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और स्कूल नहीं जा सकते उनकी भी मदद करती हैं। आज यहां से पढ़े बच्चे अन्य बच्चों को बढ़ाकर उनका भविष्य संवार रहे हैं। आज शिक्षक दिवस पर जानते हैं मीना की कहानी और उनका संघर्ष।

    राजकीय कन्या इंटर कालेज लक्खीबाग से वर्ष 2013 में पासआउट होने के बाद उनका संपर्क नियो विजन फाउंडेशन के संस्थापक गजेंद्र रमोला से हुई। इसके बाद उन्होंने ही आगे एनीमेशन का कोर्स कराया। पहले तीन चार बच्चों को घर पर ही पढ़ाती थी लेकिन बाद में संख्या बढ़ने लगी तो फाउंडेशन के माध्यम से ''''बस्ती की पाठशाला'''' शुरू की।

    यहां बीते 12 वर्षों में 60-80 बच्चे हर दिन शाम को दो से तीन घंटे पढ़ने आते हैं। कई बच्चे जो स्कूल नहीं जा पाते उन्हें समझा कर उनका दाखिला स्कूल में कराया जाता है। उन्हें खेल, नृत्य, गायन आदि अन्य गतिविधियों से जोड़ा जाता है।

    कूड़ा बीनने वाले 12 बच्चों को पहले बस्ती की पाठशाला से जोड़ा और फिर सरकारी स्कूल में दाखिला कराया। इसके अलावा 50 ऐसे बच्चे हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं तो उनके घर पर जाकर परिवार को समझाकर दाखिला दिलाया है।

    वहीं मीना के इस कार्य को देखते हुए नियो विजन के संस्थापक गजेंद्र रावत ने कहा कि मीना के जैसे वो कई और बच्चों को लीडरशिप सिखाने के लिए प्रेरित करते हैं।

    पहले बोलते थे कूड़ा बीनने तो पैसे मिलेंगे पढ़ाई से क्या मिलेगा

    मीना बताती हैं कि कूड़ा बीनने वाले परिवारों को पढ़ाई के लिए समझना किसी चुनौती से कम नहीं होता। वह मानते हैं कि कूड़ा बीनने से कुछ रुपये मिल रहे हैं लेकिन पढ़ाई करेगा तो वह नहीं मिल पाएंगे।

    जब भी वे परिवार के सदस्यों के बीच बातचीत करने गई तो उन्हें इसी तरह का जवाब मिला। ऐसे में कई परिवार को समझाने के लिए खुद की गारंटी देनी पड़ती है कि स्कूल भेजेंगे तो उनके बच्चे का भविष्य और भी बेहतर होगा।

    बताया कि इन बच्चों को कई बार स्कूल में दाखिले के लिए भी परेशानी होती है क्योंकि अधिकांश का आधार कार्ड नहीं बना होता। इसलिए आधार कार्ड बनाने से लेकर उनके दाखिला कराते हैं। आज यहां से पढ़े छात्र मनीषा पासवान, अभिषेक राउत, अर्पिता और श्यामा भी अन्य बच्चों को पढ़ाने में मदद कर रहे हैं।

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