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    कहां गई चाय बागान की 5000 बीघा भूमि? सिस्टम मौन, कहीं सफेदपोशों की शह पर तो नहीं हो रहा खेल!

    Updated: Fri, 11 Jul 2025 05:04 PM (IST)

    नैनीताल हाई कोर्ट में चाय बागान भूमि के दुरुपयोग के मामले चल रहे हैं जहाँ कोर्ट ने रोक लगाई है। देहरादून में प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत से चाय बागानों को उजाड़ा जा रहा है उनकी जगह इमारतें बन रही हैं। जिला प्रशासन की रोक के बावजूद अवैध निर्माण जारी है। अधिवक्ता विकेश नेगी और देव आनंद इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

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    चाय बागान की जमीन को खुर्द-बुर्द किए जाने के कई वाद. Concept Photo

    - कोर्ट की रोक के बावजूद सफेदपोशों की शह पर धड़ल्ले से बेची जा रही चाय बागान की भूमि

    - अवैध निर्माण से लेकर चाय से इतर फसल और सब्जियां उगाकर तक बदला जाने लगा भू-उपयोग

    सुमन सेमवाल, देहरादून: चाय बागानों सीलिंग एक्ट से सिर्फ इस शर्त पर छूट दी गई थी कि कभी उनका स्वरूप नहीं बदला जाएगा। यदि कभी ऐसा किया गया तो संबंधित भूमि सरकार में निहित कर दी जाएगी। बावजूद इसके देहरादून जिले में एक-एक चाय बागानों को सफेदपोशों की शह पर उजाड़ दिया गया है। चाय बागानों की जगह बड़ी-बड़ी इमारत खड़ी कर दी गई हैं। शिमला बाईपास रोड के पास से प्रेमनगर के बीच जो चाय बागान बचे भी हैं, उन पर निरंतर अवैध निर्माण की शिकायत मिल रही हैं। वर्ष 2023 में देहरादून जिला प्रशासन साहस जुटाकर चाय बागान की करीब 5000 बीघा भूमि की पहचान कर उसकी खरीद फरोख्त पर रोक लगाई थी, लेकिन यह आदेश कभी धरातल पर लागू नहीं किए जा सके।

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    यह स्थिति तब है, जब नैनीताल हाई कोर्ट में चाय बागानों की भूमि को खुर्द-बुर्द किए जाने के मामले में कई याचिका गतिमान हैं। कोर्ट चाय बागान की भूमि के विक्रय पर रोक लगा चुका है और सरकार को सीलिंग एक्ट के उल्लंघन पर जमीनों को कब्जे में लेने के आदेश भी जारी किए जा चुके हैं।

    रोक लगाने वाले अपर जिलाधिकारी की कर दी गई थी छुट्टी

    वर्ष 2023 में देहरादून में अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) पद पर तैनात रहे डा एसके बरनवाल ने उपजिलाधिकारी विकासनगर व उपजिलाधिकारी सदर को आदेश जारी कर चाय बागान की भूमि की बिक्री पर रोक लगाने की दिशा में प्रभावी कार्रवाई का आदेश दिया था। आदेश की प्रति विकासनगर व देहरादून के सभी रजिस्ट्रार को भेजकर यह निर्देश दिए हैं कि चाय बागान से संबंधित भूमि पर रजिस्ट्री न कराई जाए। हालांकि, इससे पहले कि वह कुछ और सख्ती दिखा पाते उन्हें देहरादून से पिथौरागढ़ भेज दिया गया था।

    2005 में कराई गई जांच में सामने आई थी भूमि की स्थिति, फिर दबा दिया मामला

    वर्ष 2005 में तत्कालीन जिलाधिकारी मनीषा पंवार (अब रिटायर) ने चाय बागानों की भूमि की जांच कराई थी। तब विभिन्न चाय बागानों में करीब 424.381 हेक्टेयर (करीब 5000 बीघा) भूमि का पता चला था। यह भी स्पष्ट किया गया था कि चाय बागानों की कितनी भूमि बेची गई है, कितने पर खेती की जा रही है और कितनी भूमि पर चाय उगाई जा रही है। साथ ही रिक्त पड़ी भूमि का भी विवरण एकत्रित किया गया था। इसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी ने चाय बागानों की भूमि बचाने के लिए आदेश जारी किया था कि 10 अक्टूबर 1975 के बाद बेची गई भूमि सरकार के पक्ष में दर्ज कर दी जाएगी। हालांकि, कुछ समय बाद ही यह कवायद ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

    दून में यहां हैं चाय बागानों की भूमि

    जीवनगढ़, अंबाड़ी, सेंट्रल होपटाउन, एनफील्ड ग्रांट, जमनीपुर, एटनबाग, ईस्ट/वेस्ट होपटाउन, बादामवाला, लखनवाला, मलुकावाला, खेमदोज, मोहकमपुर खुर्द, बंजारावाला माफी, कांवली, मिट्ठीबेहड़ी, आरकेडिया ग्रांट, हरबंशवाला, रायपुर, नत्थनपुर, लाडपुर।

    सीलिंग एक्ट में दी गई थी छूट

    ग्रामीण सीलिंग एक्ट 1960 में चाय बागान की भूमि को सीलिंग एक्ट से छूट दी गई थी। क्योंकि, एक परिवार के लिए अधिकतम 18 असिंचित या 12.5 एकड़ सिंचित कृषि योग्य भूमि रखने की सीमा तय कर दी गई थी। हालांकि, तब सीलिंग से मुक्त रखी गई भूमि के हस्तांतरण और विक्रय को लेकर किसी तरह का प्रतिबंध लागू नहीं था। 10 अक्टूबर 1975 को लाए गए अध्यादेश में स्पष्ट किया गया था कि सीलिंग से मुक्त रखी गई भूमि के हस्तांतरण और विक्रय को शून्य माना जाएगा। यदि नियमों का उल्लंघन किया गया तो संबंधित भूमि सरकार में निहित की जाएगी।

    अधिवक्ता विकेश नेगी और विकासनगर निवासी देव लड़ रहे लड़ाई

    नैनीताल हाई कोर्ट देहरादून के अधिवक्ता विकेश नेगी और विकासनगर निवासी देव आनंद चाय बागान के साथ ही सीलिंग एक्ट से संबंधित अन्य भूमि को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दोनों की याचिकाओं पर कोर्ट निरंतर सुनवाई कर रहा है। अधिवक्ता विकेश नेगी की याचिका पर पूर्व में लाडपुर क्षेत्र में चाय बागान/सीलिंग एक्ट की करीब 350 बीघा भूमि को सरकार में निहित करने की कार्रवाई शुरू की जा चुकी है। लेकिन, भौतिक कब्जे पर तस्वीर अभी भी साफ नहीं है और अधिकारी हाथ बांधे खड़े हैं। वहीं, याचिकाकर्ता देव आनंद ने चाय बागान की भूमि पर चाय से इतर अन्य उपज को लेकर भू उपयोग परिवर्तन का मुद्दा उठाया है।