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उत्तराखंड आइए और पौष्टिकता से लबरेज पहाड़ी व्यंजनों का उठाइए लुत्फ, जानें-फायदे भी

उत्तराखंड के पहाड़ी व्यंजन औषधीय महत्व के साथ ही पौष्टिकता से भी लबरेज हैं। यानी हेल्थ एवं वेलनेस के लिहाज से भी ये खासे महत्वपूर्ण हैं। यही वजह है कि यहां के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद भी हर किसी को भाता है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 03:31 PM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 10:52 PM (IST)
उत्तराखंड आइए और पौष्टिकता से लबरेज पहाड़ी व्यंजनों का उठाइए लुत्फ, जानें-फायदे भी
उत्तराखंड आइए और पौष्टिकता से लबरेज पहाड़ी व्यंजनों का उठाइए लुत्फ।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण देवभूमि उत्तराखंड की वादियां हर किसी को आकर्षित तो करती ही हैं, यहां के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद भी हर किसी को भाता है। पहाड़ी व्यंजन औषधीय महत्व के साथ ही पौष्टिकता से भी लबरेज हैं। यानी, हेल्थ एवं वेलनेस के लिहाज से भी ये खासे महत्वपूर्ण हैं। कोरोना संकट के चलते उत्तराखंड में ठप पड़ी पर्यटन गतिविधियां अब धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगी ह तो सरकार ने भी पहाड़ी व्यंजनों पर फोकस करना शुरू किया है। इस दिशा में 'हिमालयन इम्युनिटी क्वीजीन' नाम से पहाड़ी व्यंजन सैलानियों को परोसने की योजना पर कार्य चल रहा है। साथ ही सैलानियों से आग्रह किया जा रहा है कि वे उत्तराखंड आएं और यहां के व्यंजनों का आनंद उठाएं।

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उत्तराखंड की देश-दुनिया में भले ही पर्यटन प्रदेश के रूप में पहचान हो, लेकिन यहां के अधिकांश व्यंजनों से सैलानी रूबरू नहीं हैं। वह भी तब जबकि ये व्यंजन पौष्टिक और स्वादिष्ट होने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। यहां के खान-पान में गेहूं व मंडुवे की रोटी के साथ अनेक सब्जियां शामिल हैं। दालों से बनने वाले व्यंजन भोजन का प्रमुख हिस्सा हैं। धीमी आग पर पके भोजन का स्वाद ही निराला है। हर व्यंजन की अपनी-अपनी खूबियां हैं। इसीलिए अब इन्हें सैलानियों को परोसने की दिशा में सरकार गंभीरता से कदम उठा रही है।

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के मुताबिक उत्तराखंड न सिर्फ बेहतरीन आबोहवा के लिए जाना जाता है, बल्कि यह औषधीय जड़ी-बूटियों व मसालों का विपुल भंडार भी है। सदियों से चिकित्सीय उपयोग में इनका उपयोग किया जा रहा है। पहाड़ी व्यंजन स्वास्थ्य के काफी फायदेमंद और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले भी हैं। पर्यटक उत्तराखंड आकर इनका आनंद उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस सबको देखते हुए ही पर्यटन क्षेत्र में पाक कला को सामने लाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

अगर पर्यटन के लिए पहाड़ी व्यंजनों को खोजा जाता है और कुशलतापूर्वक प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है तो बहुत ही कम समय में राज्य खुद को पाक कला केंद्र के रूप में भी स्थापित कर लेगा।सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर के मुताबिक हेल्थ एंड वेलनेस यहां के पर्यटन का अहम हिस्सा हैं। वर्तमान में हेल्थ एंड वेलनेस में इम्युनिटी भी महत्वपूर्ण हो गई है। राज्य में इम्युनिटी बढ़ाने वाले व्यंजनों की पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। अब तो राज्य के तमाम होटल, रेस्तरां आदि अपने यहां पहाड़ी व्यंजनों को परोसने लगे हैं।

पहाड़ी व्यंजन

काफली: उत्तराखंड के खान-पान में प्रसिद्ध है काफली। कुछ जगह इसे कापा भी कहते हैं। इस शाकाहारी व्यंजन का लुत्फ सर्दियों के मौसम में लिया जाता है। पालक, लाई, मेथी के पत्‍तों से इसे लोहे की कढ़ाई में पकाया जाता है। गर्मागर्म चावल के साथ इसे खाने का आनंद ही अलग है। पौष्टिकता से लबरेज काफली में आयरन, कैल्शियम, विटामिन सी और ई जैसे पोषक तत्व मौजूद रहते हैं।

मसूर की दाल: गढ़वाल व कुमाऊ में मसूर की दाल यहां के खान-पान में रची-बसी है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखें तो इसे रक्त कोशिकाओं के स्तर को नियंत्रित करने में मददगार माना जाता है। हड्डियों की मजबूती, आंखों की दृष्टि शक्ति बढ़ाने में भी इसे अच्छा माना जाता है। घी में सनी चपाती और चावल के साथ इसका आनंद लिया जा सकता है।

भट के डुबके: यह कुमाऊं क्षेत्र का पारंपरिक पकवान है। उच्च प्रोटीन व फाइबर से भरपूर यह व्यंजन भट या फिर काले सोयाबीन से बनाया जाता है। भट के डुबके पाचन में मदद करने के साथ ही रक्तचाप को कम करता है। यह विटामिन ई और अमीनो एसिड का एक स्रोत भी है।

झंगोरे की खीर: मिलेट परिवार में झंगोरा भी प्रमुख अनाज है। गढ़वाल मंडल में झंगोरे की खीर स्वादिष्ट स्वीट डिश के लिए काफी प्रसिद्ध है। झंगोरे की खीर में दूध बनाई जाती है और फिर इसमें मेवे मिलाए जाते हैं, जो इसे अनूठा स्वाद प्रदान करते हैं।

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भांग की चटनी: राज्य में भांग से बनी चटनी भी खूब पसंद की जाती है। भांग के भुने बीज व जीरे के साथ ही नींबू का रस, हरी मिर्च व धनिया पत्ती से यह तैयार होती है। यह चटनी भी प्रोटीन का भंडार है। भांग के बीज का प्रयोग सर्दियों में पहाड़ी हरी सब्जियों के साभ ही मूली की सब्जी, आलू के गुटके में भी प्रयोग किया जाता है।

कंडाली का साग: यह भी राज्य के लोकप्रिय व्यंजनों में शुमार है। कंडाली की पत्तियों से इसे तैयार किया जाता है। कंडाली में आयरन, विटामिन-ए और फाइबर खूब पाया जाता है। चपाती और चावल के साथ इस व्यंजन का लुत्फ उठाया जाता है।

लिंगुड़े का साग: फर्न की यह प्रजाति नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। आयरन, विटामिन समेत अन्य पोषक तत्वों से लबरेज लिंगुड़े का साग हर किसी को भाता है। 

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