गन्ने की फसल में पोका बोइंग रोग के लक्षण
विकासनगर पछवादून में गन्ने की फसल में पोका बोइंग रोग का प्रकोप शुरू हो गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों ने रोग व उसके बचाव के तरीके काश्तकारों को बताए हैं।
जागरण संवाददाता, विकासनगर: पछवादून में गन्ने की फसल में पोका बोइंग रोग का प्रकोप शुरू हो गया है। जिससे किसानों में बेचेनी बढ़ गई है। कोरोना संक्रमण के चलते पहले ही किसानों की उपज प्रभावित हो चुकी है, अब गन्ने की फसल में लग रहे रोग ने किसानों की मुश्किलें और बढ़ा दी है। समस्या संज्ञान में आने पर कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानियों ने रोग व उसके बचाव के उपाय बताए हैं।
देहरादून जनपद में लगभग पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की खेती की जा रही है। जिनमें लगभग तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में नई उन्नतशील प्रजातियां उगाई जाती हैं। गन्ने की फसल में फफूंद से फैलने वाला रोग पोका बोइंग की शुरुआत हो चुकी है। पोका बोइंग रोग नई प्रजातियों, जिनकी पत्तियां काफी चौड़ी होती हैं, उनको अधिक प्रभावित कर रहा है।
पत्तियां लिपट कर बन जाती हैं चाबुक
विज्ञानी डॉ. संजय सिंह ने बताया कि इस रोग का लक्षण ऊपर की पत्तियों में साफ तौर पर दिखाई पड़ता है। इसमें पत्तियां मुड़ने लगती है और एक दूसरे से लिपट कर चाबुक की जैसी आकृति बना लेती हैं। अधिक देर तक प्रभाव रहने के कारण पौधे की चोटी में पत्तियां अविकसित रह जाती हैं। जिसके कारण गन्ने की लंबाई नहीं बढ़ पाती और उत्पादन में काफी कमी आ जाती है। रोग की रोकथाम के लिए किसान किसी एक कवकनाशी का छिड़काव रोग के प्रथम लक्षण दिखाई देने पर ही कर दें। कॉपर ऑक्सिक्लोराइड ढाई ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी, थायोफिनेटमिथाइल एक ग्राम प्रति लीटर कार्बेंडाजिम दो ग्राम प्रति लीटर या डाएथेन एम 45 की 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे कर दें। यह स्प्रे 10 से 15 दिन के बाद पुन: दोहराया जा सकता है।
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इन बीमारियों का भी बढ़ा खतरा
जुलाई से सितंबर तक गन्ने में अगोले की सड़न की समस्या हो जाती है, जिसमें गन्ने के ऊपर की नई पत्तियां प्रारंभ में हल्की पीली या सफेद पड़ जाती है, जो बाद में सड़ कर गिरने से गन्ने की पैदावार प्रभावित करती है। यह समस्या वर्षाकाल में अधिक परेशानी का कारण बनती है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानी डॉ. संजय सिंह ने बताया कि ऐसे में खेत में समुचित जल निकास जरूरी है। अक्टूबर से फसल के अंत तक गन्ने में उकठा रोग लगता है, जिसमें गन्ने की पोरियों का रंग हल्का पीला हो जाता है। तना बेधक (स्टेम बोरर) कीट का प्रकोप बरसात में जलभराव होने पर देखा जाता है, यह कीट गन्ने के तनों में छेद करके इसके अंदर प्रवेश कर उपज को प्रभावित कर देता है, ऐसे में गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर देना चाहिए। साथ ही ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतराल पर शाम के समय प्रयोग करना चाहिए। गन्ने की फसल को दीमक से बचाने को खेत में कच्चे गोबर का इस्तेमाल न करें। विज्ञानी डॉ. संजय सिंह ने बताया कि दीपक गन्ने के दोनों सिरों से घुस कर अंदर का मुलायम भाग खाकर उसमें मिट्टी भर देता है। ग्रसित पौधों की बाहरी पत्तियां पहले सूखती है और बाद में पूरा गन्ना नष्ट हो जाता है। गन्ने में सितंबर तक पत्ती की लाल धारी की समस्या भी देखी जाती है, जिसके अधिक प्रकोप से पत्तियों का क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है और बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जुलाई से सितंबर तक गन्ने में पायरिला लगने का खतरा भी बना हुआ है। जिसमें कीट वयस्क गन्ने की पत्ती से रस चूसकर क्षति पहुंचाता है। ऐसे में किसानों को उसके अंडे के समूह को नष्ट कर देना चाहिए, साथ ही क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी को प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जुलाई से अक्टूबर तक गन्ने में पोरी बेधक का खतरा भी रहता है, इस कीट के लारवा गन्ने के कोमल व मुलायम भाग को क्षतिग्रस्त कर पोरी में बेधक करते हुए गन्ने के ऊपरी भाग में पहुंच जाते हैं। ऐसे में किसान गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर दें। क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी को प्रति हेक्टयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जुलाई से फसल में लाल सड़न रोग की शिकायत भी होने लगती है, जिसमें पत्ती के बीच की मोटी नस में लाल या भूरे रंग के धब्बे पड़ने लगते है। गन्ने को बीच की चीरने पर गूदा मटमैला लाल दिखाई पड़ता है। स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 100 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
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