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    उत्तराखंड में जल्द सामने आएगा शर्मीले हिम तेंदुओं से जुड़ा रहस्य, यहां लगाए जाएंगे कैमरा ट्रैप

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Fri, 06 Nov 2020 11:44 PM (IST)

    लंबे इंतजार के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत नंदादेवी बॉयोस्फीयर रिजर्व गंगोत्री नेशनल पार्क गोविंद वन्यजीव विहार और उत्तरकाशी टिहरी रुद्रप्रयाग पिथौरागढ़ बागेश्वर बदरीनाथ केदारनाथ वन प्रभागों में शर्मीले हिम तेंदुओं की गणना शुरू की गई है।

    जल्द सामने आएगा शर्मीले हिम तेंदुओं से जुड़ा रहस्य।

    देहरादून, केदार दत्त। बर्फ की श्वेत धवल चादर ओढ़े उत्तराखंड का उच्च हिमालयी क्षेत्र। यहीं है बेहद शर्मीले हिम तेंदुओं (स्नो लेपर्ड) का राज, जो हमेशा से वन्यजीव प्रेमियों के लिए कौतुहल का विषय रहे हैं। बावजूद इसके अभी तक ये रहस्य बना है कि आखिर हिम तेंदुओं की यहां संख्या है कितनी। लंबे इंतजार के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत नंदादेवी बॉयोस्फीयर रिजर्व, गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद वन्यजीव विहार और उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, बागेश्वर, बदरीनाथ, केदारनाथ वन प्रभागों में इनकी गणना शुरू की गई है। इन क्षेत्रों के 12800 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को 80 ग्रिड में बांटकर वहां 80 टीमें सर्वे में जुटी हैं। ये पता लगाएंगी कि हिम तेंदुओं की मौजूदगी कहां-कहां है। अगले वर्ष मार्च-अप्रैल में दोबारा सर्वे होगा और फिर वहां कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे। नवंबर तक हिम तेंदुओं से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक होंगे। इससे राज्य में हिम तेंदुओं की संख्या से जुड़ा राज बेपर्दा होगा।

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    गुलदार के बाद भालू भी बने मुसीबत

    वन्यजीव विविधता उत्तराखंड को देश-दुनिया में विशिष्ट पहचान दिलाती है, मगर ये भी सच है कि यही वन्यजीव स्थानीय निवासियों के लिए खतरे का सबब बने हैं। गुलदारों ने पहले ही नींद उड़ाई हुई है और अब भालुओं ने नाक में दम किया हुआ है। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2000 से सितंबर 2020 तक उत्तराखंड में भालू के हमलों में 64 व्यक्तियों की जान गई, जबकि 1631 घायल हुए। इसी साल जनवरी से सितंबर तक भालू ने 56 व्यक्तियों को घायल किया, जबकि तीन की जान ली। महकमे ने अध्ययन कराया तो पता चला कि सर्दियों में शीत निंद्रा (हाइबरनेशन) में रहने वाले भालू न सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों में दिख रहे, बल्कि इनके हमले भी बढ़े हैं। स्नोलाइन खिसकने और कम बर्फबारी से इन्हें शीत का अहसास नहीं हो रहा। हालांकि, अब इसे लेकर वैज्ञानिक अध्ययन कराया जा रहा, ताकि स्थिति से निबटने को कदम उठाए जा सकें।

    फिर कैंपा की शरण में वन महकमा

    भौगोलिक लिहाज से राज्य के सबसे बड़े वन महकमे से इसी हिसाब से रोजगार की उम्मीद की जाती है। ये बात अलग है कि बजट के अभाव समेत अन्य कारण गिनाकर महकमा इससे बचता रहा है। इस बार कोरोना संकट के चलते स्थिति बदली तो सरकार ने 10 हजार व्यक्तियों को रोजगार देने का लक्ष्य सौंप दिया। हाथ-पांव फूले तो महकमे ने उत्तराखंड प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) की शरण ली। रोजगार मुहैया कराने, मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने और वनों के संरक्षण के मद्देनजर कैंपा में 265 करोड़ का अतिरिक्त प्रस्ताव केंद्र को अनुमोदन के लिए भेजा गया। इसके जल्द मंजूर होने की उम्मीद है। यही नहीं, महकमे ने कैंपा मद के ज्यादा से ज्यादा उपयोग के दृष्टिगत अगले वित्तीय वर्ष के लिए एक हजार करोड़ की कार्ययोजना बनाने की मुहिम शुरू कर दी है। देखने वाली बात होगी कि केंद्र इस पर मुहर लगाता है या नहीं।

    बीएमसी को अब सशक्त करने की तैयारी

    जैवविविधता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड के सभी 92 नगर निकायों, 7791 ग्राम पंचायतों, 95 क्षेत्र पंचायतों और 13 जिला पंचायतों में जैवविविधता प्रबंधन समितियां (बीएमसी) का गठन हो चुका है। साथ ही इन समितियों में पीबीआर (पीपुल्स बॉयोडायवर्सिटी रजिस्टर) भी तैयार हो चुके हैं, जिनमें प्रत्येक समिति से संबंधित क्षेत्र में पाए जाने वाले जैव संसाधनों का ब्योरा अंकित है।

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    इस पहल के पीछे जैव संसाधनों के संरक्षण-संवर्धन के साथ ही इनके बेतहाशा उपयोग पर अंकुश लगाना है। इस लिहाज से बीएमसी की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन हाल में जब इनके पीबीआर की पड़ताल की गई तो बात सामने आई कि इनमें दर्ज जानकारियां आधी-अधूरी हैं। अब जैवविविधता बोर्ड इन्हें दुरुस्त कराने के साथ ही बीएमसी को सक्रिय करने की तैयारियों में जुट गया है। प्रथम चरण में नगर निकायों में गठित बीएमसी और उनके पीबीआर को लिया गया है। इसके बाद पंचायतों को इस मुहिम में शामिल किया जाएगा।

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