बापू की राह पर साथ-साथ चले 65 साल, मिसाल से कम नहीं रहा सुंदरलाल बहुगुणा व विमला बहुगुणा का वैवाहिक जीवन
बहुगुणा के हर फैसले पर साथ और हिम्मत देने वाली उनकी धर्मपत्नी विमला बहुगुणा के लिए आगे का जीवन नीरस-सा हो गया है। बापू की बताई राह पर जीवन के 65 वर्ष ...और पढ़ें

दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से पर्यावरण और समाज को जीवन समर्पित कर देने वाले प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा युगों तक याद किए जाएंगे। मगर, बहुगुणा के हर फैसले पर साथ और हिम्मत देने वाली उनकी धर्मपत्नी विमला बहुगुणा के लिए आगे का जीवन नीरस-सा हो गया है। बापू की बताई राह पर जीवन के 65 वर्ष एक साथ कदम-से-कदम मिलाकर चले बहुगुणा व विमला का आखिर जीवन के इस पड़ाव पर बिछोह हो गया।
बहुगुणा का विवाह वर्ष 1956 में मालीदेवल निवासी नारायण दत्त नौटियाल की पुत्री एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल की बहन विमला से हुआ था। विमला शादी से पूर्व ही महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थी। उन्होंने गांधीजी की अनन्य शिष्य मीरा बेन के साथ लंबा समय महाराष्ट्र के वर्धा स्थित उनके आश्रम में गुजारा। उधर, बहुगुणा भी गांधीजी के अनुयायी थे। मगर, वह राजनीति में आ गए थे और कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। जब विमला व बहुगुणा की शादी की बात चली तो विमला ने उनसे राजनीति छोड़ समाज सेवी करने की शर्त रखी। इसके बाद बहुगुणा ने राजनीति से किनारा कर दिया था। हालांकि इसके पीछे कुछ अन्य कारण भी रहे।
शादी के बाद गांधीवादी दंपती ने टिहरी जिले में घनसाली के निकट सिलियारा गांव में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्थापना कर शिक्षा, दलित वर्ग, समाज व पर्यावरण के लिए काम करना शुरू कर दिया। बापू की सत्य और अहिंसा की विचारधारा से ओतप्रोत इस दंपत्ती का संघर्ष और लक्ष्य भी हमेशा एक ही रहा। बहुगुणा के साथ विमला हमेशा साये की तरह नजर आई। उन्होंने स्वयं घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए ग्रामीण शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। यही नहीं, सभी आंदोलनों में वह हिम्मत के साथ अपने पति के साथ खड़ी रहीं। एक-दूसरे के साथ हमसफर के रूप में 65 वर्ष बिताने वाली विमला की आंखों में अब आंसू के सिवाय कुछ नहीं है। उनका कांपता बदन और चेहरे की झुर्रियां उनकी बेबसी को प्रकट कर रही हैं।
बहुगुणा के पारिवारिक सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता शीशराम कंसवाल बताते हैं कि विमला का संघर्ष और योगदान बहुगुणा से कतई कम नहीं है। उन्होंने सामाजिक जीवन में रहते हुए पहाड़ी परिवेश में पूरी हिम्मत के साथ पशुपालन भी किया, जो परिवार की आजीविका का भी प्रमुख स्रोत हुआ करता था। विमला को उनकी सेवा के लिए जमनालाल बजाज समेत अन्य पुरस्कारों से नवजा जा चुका है।
पति को अंतिम विदाई देने घाट तक पहुंचीं विमला
बहुगुणा व विमला देवी का 65 वर्ष का सफर शुक्रवार को गंगा घाट तक बहुगुणा की अंतिम यात्रा के साथ ही पूरा हुआ। स्वजन के रोके जाने के बावजूद 92 वर्षीय विमला ने जिद नहीं छोड़ी और वह अंतिम यात्रा के साथ मुनिकीरेती स्थित पूर्णानंद गंगा घाट तक गईं। विमला की जिद को देखते हुए उनकी पुत्री माधुरी पाठक ने उन्हें संभाला। विमला देवी की हिम्मत और जीवटता ही कहेंगे कि उन्होंने राजकीय सम्मान के वक्त भी उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की और अंतिम संस्कार की विधि पूर्ण होने तक घाट पर ही बैठी रहीं।

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