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सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर एमबीबीएस के दाखिले करना पड़ा भारी, जानिए पूरी कहानी

सुप्रीम कोर्ट के जारी आदेश पर शाम को ही प्रशासन ने मेडिकल कॉलेज को सील कर दिया है। अब राज्य सरकार कॉलेज का कब्जा लेगी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 07 Dec 2018 09:27 AM (IST)Updated: Fri, 07 Dec 2018 09:27 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर एमबीबीएस के दाखिले करना पड़ा भारी, जानिए पूरी कहानी

देहरादून, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर वर्ष 2017 में एमबीबीएस के दाखिले करना श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज प्रशासन को भारी पड़ गया है। सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को जारी आदेश पर शाम को ही प्रशासन ने मेडिकल कॉलेज को सील कर दिया है। देहरादून में नंदा की चौकी के समीप स्थित मेडिकल कॉलेज पर सीलिंग की यह कार्रवाई पुलिस फोर्स की मौजूदगी में एसडीएम विकासनगर जितेंद्र कुमार के नेतृत्व में की गई।

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अब शुक्रवार को राज्य सरकार कॉलेज का कब्जा लेगी। दरअसल, दो साल पूर्व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने सुभारती मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण कर तमाम खामिया पाई थीं। इस पर एमसीआइ ने कॉलेज की मान्यता का आवेदन अस्वीकार कर दिया। 30 अगस्त 2017 को कॉलेज प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में एमबीबीएस में दाखिले कराने की अर्जी दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर 2017 में दाखिले के आदेश जारी कर दिए। हालांकि इसके बाद मनीष वर्मा नाम के व्यक्ति ने खुद को संपत्ति का मालिक बताकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। 

वहीं, कॉलेज के छात्रों ने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ये छात्र कॉलेज की मान्यता को लेकर आशंकित थे। उन्होंने खुद को किसी अन्य कॉलेज में शिफ्ट करने को याचिका दाखिल की थी। तभी से इस प्रकरण में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का पक्ष जानने के बाद पाया कि वास्तव में यह संपत्ति श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज की नहीं है। कॉलेज संचालकों ने कोर्ट में गलत तथ्य पेश किए गए हैं। गुरुवार को सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद न्यायाधीश रो¨हटन फली नरीमन व एमआर साह की पीठ ने पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को आदेश दिए कि कॉलेज को तत्काल सील कर दिया जाए। साथ ही राज्य सरकार को कॉलेज पर शुक्रवार तक कब्जा लेकर एमसीआइ के नियमों के अनुरूप हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय से संबद्ध करने को कहा। फैकल्टी व अन्य आवश्यक संसाधन की पूर्ति भी राज्य सरकार के स्तर पर की जाएगी।

राज्य सरकार चलाएगी सुभारती मेडिकल कॉलेज

श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज में अध्ययनरत एमबीबीएस के छात्रों को कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। कॉलेज का संचालन अब राज्य सरकार करेगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सरकार शुक्रवार को कॉलेज का अधिग्रहण कर लेगी। वहीं, हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय तय अवधि के भीतर कॉलेज का निरीक्षण कर इसे संबद्धता देगा।

गत वर्ष कॉलेज में दाखिले लेने वाले एमबीबीएस के छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि कॉलेज अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहा है। कॉलेज के पास जरूरी आधारभूत ढांचा व अन्य सुविधाओं का अभाव है। कॉलेज प्रशासन इन्हें दुरुस्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है। छात्रों के भविष्य को अहम मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज को राज्य सरकार के हवाले कर दिया है।

दरअसल, उत्तराखंड के उप महाधिवक्ता जेके सेठी ने कोर्ट में यह प्रस्ताव दिया था कि राज्य सरकार कॉलेज अधिग्रहित करने को तैयार है। वह आधारभूत ढांचा व तमाम अन्य संसाधन अपने कब्जे में लेगी। ताकि इसे एमसीआइ के मानकों के अनुरूप संचालित किया जा सके। इस प्रस्ताव को कोर्ट ने भी वाजिब माना। कॉलेज प्रशासन को यह आदेश दिया है कि शुक्रवार तक कॉलेज की चल-अचल संपत्ति सरकार के सुपुर्द कर दे। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार द्वारा आवेदन करने के चार सप्ताह के भीतर संबंधित विश्वविद्यालय कॉलेज का निरीक्षण व संबद्धता की कार्रवाई करे। कॉलेज में फैकल्टी आदि की संपूर्ण व्यवस्था होते ही राज्य सरकार एमसीआइ में आवेदन प्रस्तुत करेगी। विवि की संबद्धता व एमसीआइ से मान्यता के बाद उक्त छात्र प्रथम वर्ष की परीक्षा में सम्मलित हो सकते हैं। 

डॉ. आशुतोष सयाना (निदेशक चिकित्सा शिक्षा) का कहना है कि कॉलेज को अधिग्रहित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश राज्य सरकार को मिल चुके हैं। कोर्ट के आदेशानुसार शुक्रवार को अधिग्रहण की कार्रवाई कर ली जाएगी।

 

पहले ही पता था, मान्यता के मापदंड पर खरा नहीं कॉलेज

देर आए दुरुस्त आए। किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज पर राज्य सरकार पहली बार एक्टिव मोड में दिखी है। सुप्रीम कोर्ट में सुभारती मेडिकल कॉलेज के अधिग्रहण का प्रस्ताव रख सरकार ने एक नजीर भी पेश की है। बशर्ते यह तल्खी और पहले दिख जानी चाहिए थी। क्योंकि मामला नया नहीं है। कॉलेज के छात्र बार-बार और कई स्तर पर अपनी समस्या रखते आए हैं। खुद राज्य सरकार कई बार इस बात की पुष्टि कर चुका है कि मान्यता के मापदंड पर कॉलेज खरा नहीं है। 

वर्ष 2016 में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार सुभारती मेडिकल कॉलेज को लेकर अपनी रिपोर्ट प्रेषित की थी। बढ़ती नजर आ रही हैं। जिसमें कहा गया कि मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए 20 एकड़ भूमि दो भागों में होने का प्रावधान है, लेकिन उक्त कॉलेज के स्वामित्व में तीन राजस्व ग्रामों में 13.59 एकड़ भूमि ही है। तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा सचिव डी सेंथिल पांडियन ने केंद्रीय सचिव को भेजे पत्र में उक्त मेडिकल कॉलेज के इंडियन मेडिकल काउंसिल के मानक की पूर्ति नहीं होने की जानकारी दी गई थी। उक्त तथ्यों के आधार पर नियमानुसार कार्रवाई की अपेक्षा पत्र में की गई थी। बता दें कि डॉ. जगत नारायण सुभारती चैरिटेबल ट्रस्ट संचालित श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज की भूमि एवं स्वामित्व के संबंध में पूर्व दर्जाधारी मनीष वर्मा ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में शिकायत की थी। इस बारे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव ने राज्य सरकार से स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। ताज्जुब इस बात का है कि स्थिति स्पष्ट होने के बाद भी कार्रवाई में देरी होती रही। न केंद्र के स्तर पर कोई ठोस कदम उठाया गया और न राज्य स्तर पर। जिस कारण भविष्य को लेकर आशंकित छात्रों को कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। 

संबद्धता के सवाल पर आशंकित रहे छात्र

सुभारती मेडिकल कॉलेज में अध्ययनरत एमबीबीएस छात्रों को तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ा है। आधारभूत ढांचा व अन्य सुविधाओं की कमी ने जहां पढ़ाई में अड़चन पैदा की, वहीं कॉलेज की संबद्धता को लेकर आशंकित छात्रों को अपना भविष्य अधर में दिख रहा था। तभी उन्होंने कोर्ट का रुख किया। 

दरअसल, सुभारती मेडिकल कॉलेज को वर्ष 2016 में एमबीबीएस की 150 सीटों के लिए मान्यता मिली थी। तब कॉलेज की संबद्धता एचएनबी उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय से थी। कॉलेज द्वारा एमसीआइ में जमा कराए गए दस्तावेजों में भी यही दर्शाया गया। सितंबर 2016 में प्रथम बैच के छात्रों ने कॉलेज में दाखिला लिया। जनवरी 2017 में रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया। जिसके बाद काफी वक्त तक कॉलेज व एचएनबी उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विवि के बीच रस्साकशी चलती रही। क्योंकि प्रथम बैच के दाखिले के वक्त संबद्धता एचएनबी उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विवि से थी, परीक्षा विवि द्वारा कराने की बात कही गई। जिसे कॉलेज प्रशासन ने यह कहकर नकार दिया कि अब उनका अपना विवि बन गया है। यही परीक्षा कराएगा। जिसके बाद एक नया विवाद पैदा हो गया। छात्रों का कहना था कि उनकी अंकतालिका पर रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय अंकित है, जबकि  एमसीआइ वेबसाइट पर संबद्धता चिकित्सा शिक्षा विवि से दर्शाई गई है। कॉलेज ने एमसीआइ के स्तर पर इसमें सुधार को भी कदम नहीं उठाए हैं। ऐसे में प्रमाण पत्रों की वैधता को लेकर सवाल उठ सकता है। इस बवाल के बीच यहां द्वितीय बैच के भी दाखिले हो गए। द्वितीय बैच के छात्र इस आशंका के कारण परीक्षा चिकित्सा शिक्षा विवि से कराने पर अड़ गए। इस कारण उनकी परीक्षा भी अभी तक नहीं हो सकी है। यही वजह है कि उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

निचली अदालतों में चल रहे केस सुप्रीम कोर्ट से छिपाए

श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज संचालकों ने संपत्ति को अपना बताकर वर्ष 2017 में एमबीबीएस के दाखिले का आदेश तो प्राप्त कर लिया था, मगर कोर्ट को यह नहीं बताया कि इसी मामले को लेकर निचली अदालतों में उनके खिलाफ वाद चल रहे हैं।

वर्ष 2011 में जब सुभारती मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इस संपत्ति का एग्रीमेंट मनीष वर्मा से अपने पक्ष में किया, तब यहां पर बंद हो चुके नारायण स्वामी हॉस्पिटल एंड डेंटल कॉलेज के भवन खड़े थे। इन भवनों का संचालन सुभारती मेडिकल कॉलेज के रूप में करने के लिए मनीष वर्मा के साथ करीब 30 करोड़ रुपये का एग्रीमेंट किया गया था। साथ ही एडवांस के रूप में पांच करोड़ रुपये के चेक दिए गए थे। तब यह चेक बाउंस हो गए थे और आरोप है कि मनीष वर्मा को कोई भुगतान भी नहीं किया गया। इसके बाद मनीष वर्मा ने देहरादून के सिविल जज सीनियर डिविजन व विकासनगर के सिविल जज जूनियर डिविजन की कोर्ट के साथ ही अपर आयुक्त राजस्व की न्यायालय में वाद दायर किया। इसके अलावा नैनीताल हाईकोर्ट में भी इसी मामले में वाद लंबित है। हालांकि जब सुभारती मेडिकल कॉलेज के संचालक एमबीबीएस में दाखिले के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो निचली अदालतों में चल रहे वादों को छिपा दिया गया। अच्छी बात यह है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी वादों को अपने अधीन कर लिया है। जिससे इस प्रकरण के निस्तारण की राह भी आसान हो जाएगी।

संपत्ति पर था स्टे और विवि को दे दी स्वीकृति

वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार में डॉ. जगत नारायण स्वामी सुभारती चैरिटेबल ट्रस्ट को रास बिहारी बोस सुभारती विश्वविद्यालय बनाने की स्वीकृति दे दी गई थी। जबकि उस समय इस संपत्ति पर राजस्व न्यायालय की तरफ से स्थगनादेश दिया गया था। जिस तरह सुभारती के संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया, उसी तरह राज्य सरकार के समक्ष कई तथ्यों को छिपाकर विश्वविद्यालय की स्वीकृति प्राप्त कर ली थी।

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