Teachers Day 2019: अंधकार में उम्मीद की किरण बन गए शिक्षक, पढ़िए पूरी खबर
कुछ शिक्षक अंधकार में उम्मीद की किरण बन रहे हैं। वह अपने व्यक्तिगत प्रयास से सरकारी स्कूलों पर कम होता विश्वास लौटा रहे हैं।
देहरादून, जेएनएन। वर्तमान में जब शिक्षा महज व्यवसाय बनकर रह गई है और सरकारी स्कूलों की दुर्दशा सामने है, कुछ शिक्षक अंधकार में उम्मीद की किरण बन रहे हैं। वह अपने व्यक्तिगत प्रयास से सरकारी स्कूलों पर कम होता विश्वास लौटा रहे हैं। न सिर्फ खुद नवाचार से जुड़े हैं, बल्कि बच्चों को भी कुछ नया करने की सीख दे रहे हैं। यही नहीं अपनी उम्र और शारीरिक अक्षमता को दरकिनार कर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। यूं तो किसी छात्र का काबिल हो जाना ही गुरु के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है, पर फिर भी प्रयासों का सम्मान जरूरी है। ताकि यह मशाल लगातार जलती रहे। इस साल सहसपुर इंटर कॉलेज के शिक्षक रमेश प्रसाद बड़ोनी का चयन राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए हुआ है। वहीं, 30 शिक्षकों को गवर्नर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया जा रहा है।
अर्चना ने रचनात्मकता के बूते स्कूली छात्रों को बनाया काबिल
सरकारी स्कूलों की बिगड़ती छवि के बीच सहसपुर ब्लॉक का पौंधा प्राथमिक विद्यालय मिसाल बन कर सामने आया है। स्कूल के उत्थान के पीछे छुपी है, स्कूल के शिक्षकों की सालों की मेहनत और रचनात्मकता। यही कारण है कि यहां पिछले 13 सालों से शिक्षा क्षेत्र में हट कर काम कर रही शिक्षिका अर्चना नौटियाल को इस साल गवर्नर्स अवॉर्ड से नवाजा जा रहा है। गुरुवार को राजभवन में उन्हें राज्यपाल बेबी रानी मौर्य यह पुरस्कार देंगी। अर्चना नौटियाल मूल रूप से पौड़ी के सुमाड़ी गांव की रहने वाली हैं।
वह पिछले 19 सालों से प्राथमिक स्कूल में अपनी सेवाएं दे रही हैं। अर्चना जिस स्कूल में पढ़ाती हैं, वहां के छात्रों के चहुंमुखी विकास को अपना लक्ष्य बना लेती हैं। यही कारण है कि आज उनके पढ़ाए हुए छात्र सांस्कृतिक, अकादमिक और खेल हर मंच पर खुद को साबित कर रहे हैं। स्कूल के पूर्व छात्रों का रुतबा देख यहां छात्रों की संख्या भी अच्छी-खासी है। जिस प्राथमिक स्कूल में छात्र संख्या घट कर लगभग 50 रह गई थी। वहां उनकी मेहनत के बूते आज 97 छात्र स्कूल में पढ़ रहे हैं। अर्चना बताती हैं कि उनका उद्देश्य सरकारी स्कूल के छात्रों को औरों से बेहतर बनाना है। बताया कि नवाचार के तहत स्कूली छात्रों को नुक्कड़-नाटक, गायन, वादन समेत एथलेटिक्स की ट्रेनिंग देती हैं। अर्चना ने बताया कि 10वीं में बोर्ड परीक्षाओं के चलते हैंडबॉल में इंडिया की टीम में नहीं खेल सकीं। अब इस टीस को अपने छात्रों को इस काबिल बनाकर पूरा करना चाहती हैं।
मानसिक मजबूती की मिसाल बनी शिक्षिका संगीता
राजकीय बालिका इंटर कॉलेज, राजपुर रोड में संगीत की शिक्षिका संगीता शर्मा शिक्षकों के लिए मिसाल बन कर सामने आई हैं। बचपन से ही पोलियो ग्रसित होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। लगातार मेहनत के बूते बिना दिव्यांग आरक्षण लिए शिक्षिका बनीं। संगीता बताती हैं कि संगीत को ही अपना जीवन मानती हैं और संगीत शिक्षा देने को अपना धर्म। पिछले 24 सालों से शिक्षण क्षेत्र में सेवाएं दे रही हैं। संगीता की आवाज के जादू से स्कूली छात्र ही नहीं बड़े-बड़े नेता और अफसर भी वाकिफ हैं। संगीता बताती हैं कि साल 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम की उपस्थिति में उनके बनाए गीत का विमोचन हुआ था। संगीता आज के समय में राजभवन, सचिवालय और आकाशवाणी के कई कार्यक्रमों में अपनी आवाज का जादू बिखेरती नजर आती हैं।
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स्कूल में पांच से 340 पर पहुंचाई छात्र संख्या
देहरादून के सबसे पुराने विद्यालयों में से एक राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय देहरा 11 साल पहले बंद होने की कगार पर था। साल 2008 में इस स्कूल में मात्र पांच छात्र रह गए थे, लेकिन शिक्षक हुकुम सिंह ने बगैर किसी सरकारी मदद के स्कूल को आवासीय स्कूल में बदलकर इसे बंद होने से बचाया और अन्य शिक्षकों के सामने एक नजीर पेश की। यह स्कूल सन 1816 में तहसीली मिडिल स्कूल के नाम से पलटन बाजार में स्थापित हुआ, जहां वर्तमान में कोतवाली है। वर्ष 1953 से स्कूल अब राजपुर रोड में चल रहा है। हुकुम सिंह ने इस स्कूल को जीवित रखने का फैसला लिया। उन्होंने अपने खर्च से इसे आवासीय स्कूल में बदलकर एक बार फिर इसमें जान फूंक दी। वर्तमान में यहां 340 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।
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