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स्वतंत्रता के सारथी: पहले देश के लिए लड़े, अब स्वावलंबन से बेरोजगारी पर प्रहार

पौड़ी के एकेश्वर ब्लॉक के ग्राम संतूधार निवासी कर्नल सुरेंद्र सिंह नेगी अपने उन तमाम लोगों के लिए नजीर हैं जो पहाड़ से पलायन कर चुके हैं। वह लोगों के लिए प्ररेणा स्रोत हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 15 Aug 2019 02:44 PM (IST)Updated: Thu, 15 Aug 2019 02:44 PM (IST)
स्वतंत्रता के सारथी: पहले देश के लिए लड़े, अब स्वावलंबन से बेरोजगारी पर प्रहार
स्वतंत्रता के सारथी: पहले देश के लिए लड़े, अब स्वावलंबन से बेरोजगारी पर प्रहार

पौड़ी, गणेश काला। पौड़ी जिले के चौंदकोट (एकेश्वर) क्षेत्र की धरती पीढ़ियों से अपने पुरुषार्थ और आपसी सहभागिता के लिए जानी जाती है। इस धरती के लोगों की प्रबल इच्छाशक्ति और जनसहभागिता का नमूना है सात दशक पूर्व श्रमदान से बनाया गया वह 25 किमी लंबा मोटर मार्ग, जिसने चौंदकोट क्षेत्र को उत्तराखंड ही नहीं देश-दुनिया में पहचान दिलाई। अब इसी धरती पर जन्मे 82-वर्षीय 'युवा' कर्नल बीते सात वर्षों से यहां स्वावलंबन की नई इबारत लिख रहे हैं। महानगरों का ऐशोआराम छोड़ अपनी जन्मभूमि में दिनभर पसीना बहाकर वह स्वयं तो पुरखों की थाती को संवार ही रहे हैं, गांव के अन्य लोग भी उनसे प्रेरणा लेकर अब खेती-बागवानी में जुट गए हैं। अच्छी बात यह है कि गांव के बेरोजगार युवा भी शहरों का रुख करने के बजाय कर्नल की राह पर चल पड़े हैं। इससे गांव से हो रहे पलायन पर भी अंकुश लगा है।

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पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लॉक के ग्राम संतूधार निवासी कर्नल सुरेंद्र सिंह नेगी अपने उन तमाम लोगों के लिए नजीर हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद पहाड़ से मुंह मोड़कर महानगरों की बंद कोठरियों में जीवन की खुशियां तलाश रहे हैं। कर्नल नेगी बताते हैं, 'सात साल पूर्व पत्नी के देहांत के बाद जब मैं गांव आया तो यहां कभी फल-फूलों से लकदक रहने वाली पुरखों की धरती पर उग आए कंटीली झाडिय़ों के जंगल ने मुझे व्यथित कर दिया। सो, दिल्ली और देहरादून में सुख-सुविधा संपन्न आलीशान आशियाना होने के बावजूद मैंने तय किया कि अब गांव में ही अपना स्थायी ठौर बनाऊंगा। मैंने बीते दो दशक से साथ निभा रहे तारा सिंह को साथ लिया और पूरे मनोयोग से जुट गया पितरों की धरती को संवारने में। इसके बाद मैंने गांव से वापस लौटने के बारे में कभी नहीं सोचा।' 

देश की आन-बान-शान की रक्षा के लिए तीन युद्धों में अपना रणकौशल दिखाने वाले कर्नल नेगी इस उम्र में भी जमकर पसीना बहा रहे हैं। इसके गवाह हैं उनकी करीब सौ नाली भूमि में लहलहा रहे विभिन्न प्रजाति के सैकड़ों फलदार पेड़। यही नहीं, उनके खेतों में उगी हर मौसम की सब्जियां भी लोगों को स्वावलंबन के साथ स्वरोजगार को भी प्रेरित कर रही है। इस मुहिम में कर्नल नेगी को परिजनों का भी भरपूर सहयोग मिलता है। उनके बड़े पुत्र शैलेंद्र नेगी नौसेना के कमांडर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अब इंडिगो में अंतर्राष्ट्रीय पायलट हैं। जबकि, जेके टायर में महाप्रबंधक छोटे बेटे वीरेंद्र नेगी का परिवार पिता के इस नेक काम में हाथ बंटाने के लिए साल में दो-तीन बार अनिवार्य रूप से गांव पहुंचता है।

सेवानिवृत्त लोगों की प्रेरणा बने कर्नल

कर्नल नेगी 82 साल की उम्र में भी नौजवानों की तरह पूरी शिद्दत से जिस तरह जंगल में तब्दील हो चुके खेतों को हरा-भरा करने में जुटे हैं, उससे पहाड़ के बेरोजगार युवाओं के साथ ही सेवानिवृत्त लोग भी सीख ले रहे हैं। कर्नल नेगी के नक्शेकदम पर चलते हुए गांव के ही सेवानिवृत्त मेजर ओंकार नेगी ने भी अपने वीरान हो चुके खेतों को आबाद कर खेती-बागवानी शुरू कर दी है।

एक दर्जन को रोजगार, दो दर्जन कर रहे खेती-बागवानी

कर्नल नेगी के प्रयासों से बड़ेथ समेत आसपास के गांवों एक दर्जन लोगों को रोजगार मिल रहा है। इतना ही नहीं, कर्नल की देखादेखी आसपास गांवों के दो दर्जन से अधिक लोगों ने अब अपने बंजर खेतों को आबाद कर खेती-बागवानी शुरू कर दी है।

रिश्तेदारों व जरूरतमंदों में बांट देते हैं अपने उत्पाद

कर्नल नेगी अपने उत्पादों को बेचते नहीं हैं, बल्कि सारी उपज पितरों का प्रसाद समझकर रिश्तेदारों के साथ ही जरूरतमंद लोगों में बांट देते हैं। कहते हैं, 'ईश्वर की कृपा से मेरे पास कोई कमी नहीं है, इसलिए अपनी मेहनत की कमाई को जरूरतमंदों में बांटने में बेहद सुकून मिलता है। यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा आनंद है।

सुधीर सुंद्रियाल (संस्थापक भलु लगदु, फीलगुड मिशन, चौंदकोट क्षेत्र) का कहना है कि कर्नल नेगी की यह अनूठी पहल पलायन पर अंकुश लगाने वाली तो है ही, इसने गांव के बेरोजगार युवाओं अपने पैरों पर खड़े होने के लिए भी प्रेरित किया है। आज लगभग 500 की आबादी वाले संतूधार गांव में अधिकांश खेत हरे-भरे नजर आते हैं। धीरे-धीरे कर्नल नेगी का यह गांव एक आदर्श गांव का रूप लेता जा रहा है, जो कि गरीबी पर एक बड़ा प्रहार है।

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