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    उत्‍तराखंड कांग्रेस : लंबे असमंजस से मिल रहे है सामूहिक नेतृत्व के संकेत

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 12 Jul 2021 06:06 PM (IST)

    नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को लेकर लंबे अरसे से बना हुआ असमंजस पार्टी की तैयारियों पर असर डालने लगा है। भाजपा द्वारा चार महीने में दो बार किए गए सरकार के नेतृत्व परिवर्तन के खिलाफ मुहिम को धार देने में जुटे प्रदेश संगठन के कदम ठिठके हुए हैं।

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    कांग्रेस में एक बार फिर अगले विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़े जाने के संकेत मिलने लगे हैं।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को लेकर लंबे अरसे से बना हुआ असमंजस पार्टी की तैयारियों पर असर डालने लगा है। भाजपा की ओर से चार महीने में दो बार किए गए सरकार के नेतृत्व परिवर्तन के खिलाफ मुहिम को धार देने में जुटे प्रदेश संगठन के कदम अब ठिठके हुए हैं। उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के बीती 10 जुलाई को सीएम आवास कूच कार्यक्रम के बाद एक बार फिर अगले विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़े जाने के संकेत मिलने लगे हैं।

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    एक पखवाड़े से ज्यादा समय बीतने पर भी प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष के चयन और अध्यक्ष को लेकर बदलाव की चर्चाओं पर विराम नहीं लग पाया है। पार्टी की ये दुविधा आम कार्यकर्त्ताओं के मनोबल पर असर डालने लगी है। अगले विधानसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है, बावजूद इसके कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय में आम दिनों की चहल-पहल नदारद है। प्रदेश संगठन के मुखिया को लेकर ही ऊहापोह दूर नहीं होने का असर पार्टी की रणनीतिक तैयारी पर भी दिख रहा है। संगठन सरकार के खिलाफ मुखर होने के बजाय ठहराव का शिकार होकर रह गया है।

    दरअसल, 2022 के चुनाव से चंद महीने पहले प्रदेश के दिग्गजों की खींचतान ने पार्टी की उलझन बढ़ा दी है। प्रदेश में चुनाव संचालन समिति की कमान संभालने जा रहे पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत के प्रदेश अध्यक्ष पद पर अपनी पसंद को तवज्जो देने को लेकर बनाए जा रहे दबाव के आगे मौजूदा अध्यक्ष प्रीतम सिंह मजबूती से खम ठोक कर खड़े हो गए हैं। प्रीतम सिंह अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश करने के साथ ही यह संदेश दे चुके हैं कि नया अध्यक्ष उनकी पसंद से ही चुना जाए। इसी सूरत में प्रीतम ने नेता प्रतिपक्ष बनने पर हामी भरी है।

    दोनों दिग्गजों के इसी रुख को फैसले में देरी की वजह माना जा रहा है। कांग्रेस हाईकमान चुनाव से पहले कोई भी फैसला सोच-समझकर ही करना चाहता है। पार्टी विधायक दल से लेकर संगठन में युवाओं को तरजीह नहीं दिए जाने और नेतृत्व को लेकर सेकंड लाइन की उपेक्षा का भाव ने कहीं न कहीं असंतोष को सिर उठाने का मौका दे दिया है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष बदलने की चर्चा के बीच ही जिस तरह प्रीतम सिंह और प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के नेतृत्व में पार्टी ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया, उसे पार्टी में सामूहिक नेतृत्व को तरजीह दिए जाने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। इस प्रदर्शन से धड़े विशेष के नेताओं ने दूरी बनाए रखी। माना ये जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व आपसी तालमेल पर जोर देकर निर्णय ले सकता है।