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    श्रीगंगासभा ने किया ऑनलाइन तर्पण और श्राद्ध का विरोध, कहा- इससे कम होता है तीर्थ का महत्व

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sat, 12 Sep 2020 05:37 PM (IST)

    श्रीगंगासभा ने कोरोना संक्रमण काल में पितृपक्ष के दौरान कुछ ब्राह्मणों की ओर से ऑनलाइन तर्पण-अर्पण और श्राद्ध कर्म कराने का विरोध किया है। ...और पढ़ें

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    श्रीगंगासभा ने किया ऑनलाइन तर्पण और श्राद्ध का विरोध, कहा- इससे कम होता है तीर्थ का महत्व

    हरिद्वार, जेएनएन। विश्व प्रसिद्ध हरकी पैड़ी की प्रबंध कार्यकारिणी संस्था श्रीगंगासभा ने कोरोना संक्रमण काल में पितृपक्ष के दौरान कुछ ब्राह्मणों की ओर से ऑनलाइन तर्पण-अर्पण और श्राद्ध कर्म कराने का विरोध किया है। श्रीगंगा सभा ने इसे गलत ठहराया और इसे श्रद्धालुओं की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाला बताया है।

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    श्रीगंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा और महामंत्री तन्मय वशिष्ठ ने शुक्रवार को कहा कि ऑनलाइन पूजा केवल छलावा है। इससे तीर्थ का महत्व तो कम होता ही है, साथ ही वहां के तीर्थ पुरोहित और परंपराओं का भी महत्व कम होता है, जो कि स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के चलते इन दिनों सभी गतिविधियां थमी हुई हैं। सभी राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां बंद हैं। 

    श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार में श्रद्धालुओं का आना काफी कम हो रहा है। इसलिए कुछ ब्राह्मण, उनसे कुछ संस्थाएं ऑनलाइन श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि कराने का प्रयास कर रहे हैं। यह शास्त्र और धर्म सम्मत नहीं हैं। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को श्री गंगासभा के पदाधिकारियों की बैठक कर इसका विरोध किया। श्रीगंगा सभा अध्यक्ष प्रदीप झा और महामंत्री तन्मय वशिष्ठ ने कहा ऑनलाइन श्राद्ध और पिंडदान का विधान शास्त्रों में नहीं है। 

    शास्त्रों में ब्राह्मण को यजमान के प्रतिनिधि के रूप में श्राद्ध आदि कार्य को कराने के लिए अधिकार तो दिया है, लेकिन उसके लिए यजमान स्वयं आकर या पुरोहित यजमान के घर जाकर संकल्प वरण आदि लेकर ही उस कार्य को संपन्न कर सकता है। तभी यजमान को उस कार्य का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। ऐसा न करने से यजमान को की गई पूजा का फल प्राप्त नहीं होती है।

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    जानिए क्या है श्राद्ध 

    श्राद्ध पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने और उन्हें याद करने के निमित्त किए जाने वाला कार्य है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज हैं, जिनसे गुण और कौशल हमें विरासत में मिलें हैं उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण है। वो हमारे पूर्वज पूजनीय हैं। माता और पिता दोनों का श्राद्ध उनके देहांत के दिन हिंदू पंचांग के अनुसार किया जाता है। इसके अलावा प्रतिवर्ष श्राद्ध पक्ष (या पितृपक्ष में सभी पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है। 'पितर' का मतलब माता-पिता, नाना-नानी, दादी-दादी, और उनके पहले से सभी पूर्वज हैं।

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