Shradh Paksha : उत्तराखंड के इन तीन स्थानों पर तर्पण का विशेष महत्व, एक कहा जाता है मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ
Shradh Paksha 2022 वायु पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण समेत अन्य शास्त्रों में भी श्राद्ध के महत्व को बताया गया है। पूर्वजों की आत्मश ...और पढ़ें

टीम जागरण, देहरादून : Shradh Paksha 2022 : हर साल श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की आत्मशांति के लिए 15 दिनों तक नियम पूर्वक कार्य किए जाते हैं। इस दौरान पितरों को याद किया जाता है और उनकी आत्म तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं। वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण समेत अन्य शास्त्रों में भी श्राद्ध के महत्व को बताया गया है।
10 सितंबर से शुरू हो रहे हैं श्राद्ध
पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों का उस तिथि को श्राद्ध करते हैं जिस तिथि को उनकी मृत्यु हुई होती है। इस दिन पितरों के नाम से ब्राह्राणों को भोज कराया जाता है। साथ ही दान- दक्षिणा भी दी जाती है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 10 सितंबर से शुरू हो रहे हैं और 25 सितंबर को अंतिम श्राद्ध हैं।
उत्तराखंड में भी ऐस कई स्थान है जहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनमें भी तीन स्थानों का ज्यादा महत्व है। जिनमें से एक स्थान को धर्म ग्रंथों में मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ कहा गया है। आइए जानते हैं इनके बारे में:
- पुराणों में पितृ तर्पण का जो महत्व गया तीर्थ में बताया गया है। वहीं महत्व उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम में ब्रह्मकपाल तीर्थ का भी है।
- मान्यता है कि ब्रह्मकपाल तीर्थ में एक बार यदि पितरों का पिंडदान व तर्पण करने पर पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
- वैसे तो बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक पिंडदान किए जाते हैं। लेकिन, पितृपक्ष में यहां किए जाने वाले पिंडदान को सर्व श्रेष्ठ बताया गया है। इसी कारण श्राद्ध पक्ष में हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
- मान्यता है कि विश्व में केवल बदरीनाथ धाम ही ऐसा स्थान है, जहां ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान करने से पितर दोबारा जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। पितृदोष व पितृ ऋण से भी मुक्ति मिलती है।
- पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ भी कहा गया है। ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं रह जाती है।
- 'स्कंद पुराण' के अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी श्रेयस्कर हैं, लेकिन बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में पिंडदान करना कई गुणा ज्यादा फलदायी माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान ब्रह्मकपाल में पितरों का तर्पण करने से वंश वृद्धि होती है।
देवप्रयाग में पिंडदान का विशेष महत्व, नेपाल से भी पहुंचते हैं लोग
- उत्तराखंड के टिहरी जिले में भागीरथी और अलकनंदा नदी के संगम स्थल देवप्रयाग है। श्राद्ध पक्ष में देवप्रयाग में पिंडदान का विशेष महत्व माना जाता है।
- यहां पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग तर्पण के लिए पहुंचते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग यहां पितरों का तर्पण करने आते हैं।
- केदारखंड के अनुसार त्रेतायुग में ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति के लिए भगवान राम ने देवप्रयाग में ही तप किया था। इस दौरान उन्होंने यहां विश्वेश्वर शिवलिंगम की स्थापना की। इसी कारण यहां रघुनाथ मंदिर की स्थापना हुई।
- यहां श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। आनंद रामायण में यह बताया गया है कि भगवान राम ने देवप्रयाग में अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। वहीं यहां गंगा (भागीरथी) को पितृ गंगा भी कहा जाता है।
नारायणी शिला में तर्पण से होता है पितरों का उद्धार
- हरिद्वार के नारायणी शिला पर श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा पक्ष पर यहां अपने पितरों का पिंडदान करता है वह 100 मातृवंश और 100 पितृवंश का उद्धार करता है।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नारायणी शिला में भगवान विष्णु के कंठ से लेकर नाभि तक की शिला स्थित है। गया में भगवान विष्णु के चरण तथा बदरीनाथ में कपाल की प्रतिमा स्थापित है।
- मान्यता के अनुसार यहां पिंडदान करने से उनका स्वयं का कल्याण होता है। यहां कर्मकांड करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।
डिसक्लेमर :
इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।