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सीड बॉल से संवरेगी प्रकृति, हरे-भरे होंगे पथरीले क्षेत्र; जानिए इसके बारे में

दक्षिण भारत में छाप छोड़ने वाले केरल के सीड बॉल मॉडल की तर्ज पर ऐसी ही मुहिम विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में आकार ले रही है।

By Edited By: Published: Mon, 05 Aug 2019 03:00 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 08:55 PM (IST)
सीड बॉल से संवरेगी प्रकृति, हरे-भरे होंगे पथरीले क्षेत्र; जानिए इसके बारे में
सीड बॉल से संवरेगी प्रकृति, हरे-भरे होंगे पथरीले क्षेत्र; जानिए इसके बारे में

देहरादून, केदार दत्त। प्रकृति को संवारने के लिए 'सीड बॉल' की मुहिम राज्य में अब गति पकड़ने लगी है। पहाड़ों की रानी मसूरी से लगा क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है, जहां थत्यूड़, मगरा और बुरांसखंडा के जंगलों में स्कूली बच्चों के माध्यम से फेंकी गई सीड बॉल में कई जगह अंकुर फूटे हैं। इस बार भी इन क्षेत्रों के अलावा धनोल्टी, अगिंडा के ढंगारी और पथरीले इलाकों में सीड बॉल फेंके गए हैं। विद्यार्थियों को प्रकृति के संरक्षण को प्रेरित करने की इस मुहिम के तहत उनसे स्थानीय प्रजातियों के बीज भी एकत्रित कराए गए हैं। बीज के एवज में उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है।

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दक्षिण भारत में छाप छोड़ने वाले केरल के सीड बॉल मॉडल की तर्ज पर ऐसी ही मुहिम विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में आकार ले रही है। वन महकमे के अलावा हिमालयी जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी समेत अन्य संगठनों ने भी यह मुहिम शुरू की है। मसूरी वन प्रभाग की मसूरी से लगी जौनपुर रेंज में महकमे ने इसे सीड बॉल नाम दिया है, जबकि हिमालयी जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी ने सीड बम। तरीका सबका एक जैसा ही है। मिट्टी और गोबर के गोलों के बीच में बीज डालकर इन्हें सुखाया जाता है और उन क्षेत्रों में फेंका जा रहा है, जहां पौधारोपण के लिए पहुंचना मुमकिन नहीं है। 

मसूरी की जौनपुर रेंज के बुरांसखंडा और साटागाड में 2017 में रेंज अधिकारी मनमोहन बिष्ट की पहल पर सीड बॉल की शुरुआत की गई। बिष्ट बताते हैं कि जब इन क्षेत्रों में पौधरोपण का कार्यक्रम शुरू किया गया तो बात सामने आई कि कई इलाकों में पहुंचना मुश्किल है। इसे चुनौती के रूप में लिया गया। जानकारी मिली कि केरल के कई क्षेत्रों में बीज के गोले बनाकर जंगलों में फेंके जाते हैं, जिसके बेहतर परिणाम आए हैं। बिष्ट बताते हैं कि इसके बाद थोड़ा मंथन किया गया और यहां के विषम भूगोल, बारिश और तेज हवा को देखते हुए ढंगारी के साथ ही पथरीली क्षेत्रों के लिए ऐसे बीज गोले बनाने की ठानी गई, जो वहां टिक सकें। इसके लिए गोबर की खाद, चिकनी मिट्टी और कीटनाशक मिलाकर छोटे-छोटे गोले बनाए गए और इनके भीतर डाले गए विभिन्न वृक्ष प्रजातियों के बीज। सूखने के बाद इन पर बाहर से लीसा, गोंद जैसे पदार्थ भी लगाए गए, ताकि जहां फेंके जाएं, वहां जमीन में टिक सकें। 

तमाम स्थानों पर फूटे हैं अंकुर 

बुरांसखंडा, साटागाड, थत्यूड़, मगरा में फेंके गए सीड बॉल में कई जगह अंकुर फूटे हैं। इस बार भी इन क्षेत्रों के अलावा अगिंडा और धनोल्टी के ढंगारी क्षेत्रों में विद्यार्थियों की मदद से सीड बॉल फेंके गए हैं। बिष्ट बताते हैं कि भले ही यह मुहिम अभी शुरुआती दौर में हो, मगर ढंगारी और पथरीले क्षेत्रों में हरियाली लौटाने में यह खासी मददगार साबित होगी। छात्रों को प्रकृति से जोड़ने की मुहिम सीड बॉल की मुहिम बच्चों द्वारा सिर्फ इन्हें फेंकने भर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जरिये उन्हें प्रकृति से जोड़ा जा रहा है। 

रेंज अधिकारी बिष्ट बताते हैं कि क्षेत्र के इंटर कॉलेज बुरांसखंडा के अलावा थत्यूड़ के एसजीआरआर पब्लिक स्कूल, सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या मंदिर के बच्चे अवकाश के दिनों में सीड बॉल के लिए बीज भी एकत्रित करते हैं। अब तक इन विद्यालयों के 23 बच्चों द्वारा चुलू, खुमानी, आड़ू, अश्वगंधा, जामुन, चेरी, किनगोड़ के बीज एकत्रित कर दिए हैं। इसके एवज में उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।

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