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उत्तराखंड में कर्मचारियों के ध्रुवीकरण के बीच बिखराव ने बदले संगठन की राजनीति के समीकरण

आरक्षण को लेकर जनरल ओबीसी और एससी-एसटी कर्मचारियों के ध्रुवीकरण ने तो कर्मचारी संगठनों की राजनीति के समीकरण को ही बदल कर रख दिया।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 12:12 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 12:12 PM (IST)
उत्तराखंड में कर्मचारियों के ध्रुवीकरण के बीच बिखराव ने बदले संगठन की राजनीति के समीकरण
उत्तराखंड में कर्मचारियों के ध्रुवीकरण के बीच बिखराव ने बदले संगठन की राजनीति के समीकरण

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में कर्मचारी राजनीति के लिहाज से बीता एक साल काफी अहम रहा। आरक्षण को लेकर जनरल ओबीसी और एससी-एसटी कर्मचारियों के ध्रुवीकरण ने तो इस राजनीति के समीकरण को ही बदल कर रख दिया। मगर इन सब के बीच कई संगठन ऐसे रहे, जिन्हें अपने अस्तित्व पर ही खतरा नजर आने लगा। यही वजह रही कि बिना आरक्षण पदोन्नति बहाली के मुद्दे पर एतिहासिक विजय हासिल होने के बाद भी संगठनों ने अचानक न सिर्फ अलग होने का फैसला कर लिया, बल्कि संगठित होकर एक अलग संगठन बनाने की भी घोषणा कर दी। 

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इन बदले समीकरणों के बीच कर्मचारी नेता भले ही यह कहें कि उनके बीच किसी तरह का मतभेद नहीं है, लेकिन बुधवार के घटनाक्रम ने साफ इशारा कर दिया कि तमाम कर्मचारी नेता अब अपने मनमुताबिक सबकुछ ठीक करने की जद्दोजहद में जुट गए हैं।

उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन का गठन पांच जून 2019 को हुआ था। इस संगठन ने बिना आरक्षण पदोन्नति बहाली से लेकर एट्रोसिटी एक्ट के खात्मे समेत कई अन्य मांगों को लेकर हुंकार भरी। प्रांतीय अध्यक्ष दीपक जोशी और महामंत्री वीरेंद्र सिंह गुसाईं की जोड़ी ने सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की तो एक-एक कर राज्य कर्मचारी कर्मचारी संयुक्त परिषद, सिंचाई महासंघ समेत एक दर्जन से अधिक संगठन जुड़ गए। 

इस एकता ने एसोसिएशन की ताकत बढ़ाई और पदोन्नति में आरक्षण की मांग को लेकर जब उत्तराखंड एससी-एसटी इंप्लाइज फेडरेशन की पवेलियन ग्राउंड में प्रदेश स्तरीय महारैली हुई तो इसके जवाब में जनरल ओबीसी ने अपनी ताकत का अहसास मुख्यमंत्री आवास कूच से लेकर प्रदेश भर में सामूहिक कार्य बहिष्कार कर दिखाई। 

फरवरी के पहले सप्ताह में जब पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जनरल ओबीसी कार्मिकों के हक में आया और सरकार ने इसके अनुसार बिना आरक्षण पदोन्नति प्रक्रिया बहाल करने में हीलाहवाली की तो दो मार्च से 18 दिन की बेमियादी हड़ताल कर सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। पदोन्नति प्रक्रिया बहाल होने के बाद भी दीपक जोशी का नाम बड़े कर्मचारी नेताओं में शुमार होने लगा और कर्मचारी राजनीति की धुरी दीपक जोशी के इर्द-गिर्द घूमने लगी। 

इन सबके बीच कई कर्मचारी नेताओं को अपनी राजनीति का अवमूल्यन होता नजर आने लगा। आठ संगठनों के अचानक अलग होने के पीछे असल कारण तो यही माना रहा है, लेकिन कर्मचारी नेता अभी भी मतभेद न होने और सबकुछ ठीक होने की बात ही कह रहे हैं। 

मुख्यमंत्री को भेजे पत्र के बिंदु संख्या दो में कही गई यह बात, कि अलग हुए संगठनों के कर्मचारी जनरल ओबीसी एसोसिएशन में न तो पदाधिकारी रहेंगे और न ही उनके किसी आंदोलन में प्रतिभाग करेंगे। कर्मचारी नेताओं के बीच मतभेद का निहितार्थ इसी से निकाला जा रहा है। 

हालांकि, यह तय है कि आने वाले कुछ दिनों में एक बार कर्मचारी राजनीति की धुरी और समीकरण बदलेंगे। देखना होगा कि प्रदेश के कर्मचारियों का विश्वास किस पर टिकता है।

कोई मतभेद नहीं 

राज्य कर्मचारी सयुंक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर प्रहलाद सिंह के मुताबिक, जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन से हमारा कोई मतभेद नहीं है। जहां तक अलग होने की बात है तो कई मुद्दे ऐसे हैं, जिस पर एसोसिएशन के साथ लड़ाई लड़ पाना संभव नहीं है। रही रोस्टर की बात तो यह तो कर्मचारियों का मुद्दा है ही नहीं। यह तो उन बेरोजगारों का मुद्दा है तो सरकारी सेवा में आने वाले हैं। ऐसे में हमें अलग होने का फैसला लेना पड़ा।

आगे भी जारी रहेगा संघर्ष  

उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन प्रांतीय अध्यक्ष के प्रांतीय अध्यक्ष दीपक जोशी के अनुसार, कुछ कर्मचारी नेता अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए एसोसिएशन से अलग हो रहे हैं। जो संगठन अलग हुए हैं, उनसे जुड़े कर्मचारी भी हैरान हैं। कई तो अपने मूल संगठन को छोड़कर उनके साथ आने के लिए तैयार हैं। एसोसिएशन ने हमेशा जनरल ओबीसी वर्ग को हितों को सवरेपरि माना और उसी के अनुरुप काम किया। हमारा संघर्ष आगे भी जारी रहेगा।

घटक संगठनों को करना चाहिए था मशविरा 

उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन के गढ़वाल अध्यक्ष सीताराम पोखरियाल का कहना है कि कर्मचारी संगठनों ने जो निर्णय लिया है। वह कतई उचित नहीं है। इस बारे में संगठनों को अपने घटक संगठनों से राय-मशविरा करना चाहिए था और उसी के अनुसार आगे का निर्णय लेना चाहिए था। इस प्रकार के निर्णय से एकजुट हो रहे कर्मचारियों के मन को ठेस पहुंची है।

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बनाएंगे नया संगठन 

अलग हुए संगठनों की अगुवाई कर रहे राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर प्रहलाद सिंह ने कहा कि कर्मचारियों की कई ऐसी मांगे हैं, जिसे लेकर जनरल ओबीसी एसोसिएशन के बैनर तले लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। ऐसे में हम सभी ने तय किया है कि जून के पहले सप्ताह में नया संगठन खड़ा किया जाएगा, जिसमें सभी वर्गो के कर्मचारियों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।

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