Sawan: भोलेनाथ की लीलाओं के साक्षी ऋषिकेश के चंद्रेश्वर, सोमेश्वर और वीरभद्रेश्वर महादेव, दर्शन का विशेष महत्व
श्रावण मास में ऋषिकेश के तीन महादेव मंदिरों का विशेष महत्व है। नीलकंठ महादेव के दर्शन के बाद भक्त इन तीनों शिवालयों में भी दर्शन करते हैं। वीरभद्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव ने वीरभद्र को दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने भेजा था। सोमेश्वर मंदिर में ऋषि सोम ने तपस्या की थी। चंद्रेश्वर मंदिर में चंद्र देव ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना की थी।

गौरव ममगाईं, जागरण ऋषिकेश। श्रावण मास में भगवान शिव की तपस्थली नीलकंठ महादेव मंदिर में जलाभिषेक का विशेष महत्व है। यही कारण है कि श्रावण सोमवार को जल चढ़ाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से शिवभक्त पौड़ी जिले में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर पहुंचते हैं।
शायद बहुत-से शिवभक्तों को जानकारी नहीं होगी कि नीलकंठ महादेव में जलाभिषेक के बाद ऋषिकेश में चंद्रेश्वर महादेव, सोमेश्वर महादेव व वीरभद्रेश्वर महादेव के दर्शन की भी परंपरा है। सो, आप भी भगवान नीलकंठ महादेव के दर्शन को आ रहे हैं तो इन तीनों शिवालयों में भोलेनाथ के दर्शन अवश्य करें।
ऋषिकेश से 26 किमी दूर पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लाक में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर की ख्याति देशभर में है। मान्यता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया था। इस विष की ऊष्णता को शांत करने के लिए भगवान शिव ने इस स्थान पर वर्षों तक तप किया। विष की ऊष्णता इतनी अधिक थी कि भगवान के कंठ का रंग भी नीला पड़ गया।
इसी शिव लीला के कारण यहां उन्हें नीलकंठ महादेव नाम से पुकारा जाने लगा। इसी तरह ऋषिकेश में दस किलोमीटर की परिधि में स्थित तीनों शिवालय चंद्रेश्वर महादेव, सोमेश्वर महादेव व वीरभद्रेश्वर महादेव भी भगवान भोलेनाथ की अद्भुत लीलाओं के साक्षी हैं। शास्त्र आज्ञा है कि नीलकंठ महादेव की यात्रा पर आने वाले शिवभक्तों को इन तीनों शिवालयों में जलाभिषेक अवश्यक करना चाहिए।
वीरभद्रेश्वर महादेव मंदिर
वीरभद्रेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी आचार्य विनीत शर्मा के अनुसार, राजा दक्ष ने हरिद्वार के कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवता आमंत्रित थे। माता सती ने भी जब भगवान शिव से महायज्ञ में चलने का आग्रह किया तो भगवान ने यह कहते हुए वहां जाने से इन्कार कर दिया कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया है।
इसके बाद जब माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि वहां समस्त देवताओं का आसन है, लेकिन भगवान शिव के लिए कोई आसन नहीं। इस अपमान से क्रोधित माता सती ने यज्ञकुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी।
जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया और अपनी जटाओं से वीरभद्र को प्रकट कर उनसे राजा दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने को कहा। बताया कि आज्ञा मिलते ही वीरभद्र ने दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ।
तब भगवान शिव ने उन्हें शांत कराया और उनके साथ स्वयं भी यहां लिंग रूप विराजमान हो गए। आज भी यहां शिवलिंग दो हिस्सों शिव व वीरभद्र के रूप में विभाजित है। यह मंदिर वर्तमान में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है।
सोमेश्वर महादेव मंदिर
आइएसबीटी से चार किमी दूर ऋषिकेश के गंगा नगर में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर में ऋषि सोम ने भगवान शिव का घोर तप किया था। इससे प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और 11 रुद्रों को प्रकट किया। मान्यता है कि यह प्रथम सिद्धपीठ है, जहां 11 वट वृक्ष मौजूद हैं। इन्हें 11 रुद्रों का स्वरूप माना गया है। इन वट वृक्षों के रूप में भगवान शिव की कृपा यहां भक्तों पर बरसती है।
चंद्रेश्वर महादेव मंदिर
चंद्रेश्वर नगर में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित चंद्रेश्वर महादेव मंदिर आइएसबीटी से महज दो किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर के महंत कृष्णा पुरी बताते हैं कि चंद्र देव को श्राप मिला हुआ था, जिससे उनकी काया जीर्ण-क्षीर्ण हो गई। तब श्राप से मुक्ति के लिए उन्होंने इस स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की।
भगवान ने प्रसन्न होकर चंद्र देव को दर्शन दिए और उन्हें अपने मस्तक में धारण किया। भगवान की इसी लीला के कारण इस स्थल को चंद्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम जाना गया। महंत कृष्णा पुरी ने बताया कि स्कंद पुराण में इस स्थल का कौमुद तीर्थ के नाम से उल्लेख मिलता है।
ऐसे पहुंचें
- ऋषिकेश पहुंचने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से सड़क के साथ ही रेल व हवाई सुविधा भी उपलब्ध है।
- यहां खाने-ठहरने होटल,धर्मशाला और होमस्टे की भी कोई कमी नहीं है।
- यहां आपको विभिन्न प्रकार का शाकाहारी खाना भी उपलब्ध हो जाएगा।
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