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    Sawan 2022 : हिमालय की गोद में स्थित हैं भोले के अद्भुत धाम, एक तो है विश्‍व में सबसे ऊंचा शिव मंदिर

    By Nirmala BohraEdited By:
    Updated: Mon, 18 Jul 2022 02:54 PM (IST)

    Sawan 2022 देवभूमि उत्‍तराखंड में भगवान शिव के कई धाम स्थित हैं। यहां के कण-कण में शंकर विराजमान हैं। विश्‍व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर भी उत्‍तराखंड में ही स्थित है। वहीं भगवान केदार भी यहीं विराजमान हैं।

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    Sawan 2022 : हिमालय की गोद में स्थित हैं भोले के अद्भुत धाम

    टीम जागरण, देहरादून : Sawan 2022 : हिमालय की गोद में भगवान शिव के कई धाम मंदिर हैं। इसी लिए कहा जाता है कि देवभूमि के कण-कण में शंकर विराजमान हैं। वहीं विश्‍व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर भी उत्‍तराखंड में ही स्थित है। आइए सावन के पहले सोमवार पर भोले के इन पावन धामों के दर्शन करें।

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    केदारनाथ मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। विश्‍व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। मान्‍यता है कि यहां पांडवों को भगवान शिव ने आशीर्वाद दिला था, जिसके बाद उन्‍हें भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। केदारनाथ में भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। वहीं अंतर्ध्‍यान होते समय भगवान के धड़ से ऊपर का हिस्सा नेपाल के काठमांडू में प्रकट हुआ और वहां वह पशुपतिनाथ के रूप में पूजे जाने लगे।

    पंचकेदारों में शामिल द्वितीय केदार के नाम प्रसिद्ध तुंगनाथ दुनिया में भगवान का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है। मान्‍यता है कि महाभारत के बाद जब पांडव शिव को ढूंढ रहे थे तो शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया। लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने बैल का पीछा किया। इस दौरान भगवान शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान ही पंच केदार कहलाए। तुंगनाथ में 'बाहु' यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है।

    रुद्रप्रयाग में कोटेश्वर महादेव चोपड़ा मोटर मार्ग पर अलकनंदा नदी तट पर स्थित है। यहां सावन मास में हजारों की संख्या में भक्त दर्शनों को आते हैं। सावन एवं महाशिवरात्रि पर संतानहीन दंपती यहां विशेष अनुष्ठान करते हैं तथा उनकी मनकामना पूरी होती है। कोटेश्वर मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था, 6 वीं और 17 वीं शताब्दी में मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय यहां गुफा में साधना की थी।

    नई टिहरी में स्थित बूढ़ाकेदार मंदिर स्थित है। पुराणों में उल्लेख है कि जब पांडव गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति के लिए स्वार्गारोहण के लिए जा रहे थे तो यहां पर भगवान शिव ने उन्हें वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे। इसके बाद ही इस जगह का नाम बूढाकेदार पड़ा। बूढ़ाकेदार धाम के लिए पैदल नहीं जाना पड़ता है। श्रावण मास में काफी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। कांवड़ यात्री पहले बूढाकेदार के दर्शन करते हैं और उसके बाद केदारनाथ यात्रा पर निकलते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य ने मंदिर की नींव रखी थी।

    पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लाक में नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। यह मंदिर मणिकूट पर्वत की तलहटी में स्थित है। श्रावण मास में यहां सबसे अधिक संख्या में शिव भक्त कांवड़ लेकर जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि समुद्र मंथन में निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। जिस कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां पर 60 हजार वर्षों तक समाधि में रहकर विष की गर्मी को शांत किया था। अब भगवान शिव स्वयंभू लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं। आज भी यहां स्थित शिवलिंग पर नीला निशान दिखाई देता है।

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