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    Sawan 2022 : दक्षेश्वर महादेव के नाम से हरिद्वार में विराजते हैं भोलेनाथ, मात्र जलाभिषेक से पूरी करते हैं मनोकामना

    Sawan 2022 सावन मास में भोलेनाथ अपनी ससुराल हरिद्वार स्थित कनखल में दक्षेश्वर महादेव के नाम से विराजते हैं और यहीं सृष्टि का संचालन करते हैं। यहां भगवान भोलेनाथ जलाभिषेक मात्र से प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

    By Nirmala BohraEdited By: Updated: Mon, 18 Jul 2022 08:42 AM (IST)
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    Sawan 2022 : दक्षेश्वर महादेव के नाम से हरिद्वार में विराजते हैं भोलेनाथ

    जागरण संवाददाता, हरिद्वार : Sawan 2022 : सावन में सभी शिवालयों में भगवान शिव की पूजा का विधान है। मान्‍यता है कि सावन माह में भगवान भोलेनाथ जलाभिषेक मात्र से प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि सावन मास में भोलेनाथ अपनी ससुराल हरिद्वार स्थित कनखल में दक्षेश्वर महादेव के नाम से विराजते हैं और यहीं सृष्टि का संचालन करते हैं। कनखल के दक्ष मंदिर में सावन माह में भक्‍तों का तांता लगा रहता है।

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    राजा दक्ष ने कनखल में ही किया था महायज्ञ का आयोजन

    पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने बेटी सती की हठ पर उनका विवाह शिव के साथ कर तो दिया पर, वह उन्होंने शिव को सम्मान नहीं दिया। कहते हैं कि शिव-सती विवाह उपरांत एक सभा में जब दक्ष पहुंचे, तो सभी देवगण उनके सम्मान में खड़े हो गए पर, भोलेनाथ अपने आसन पर बैठे रहे। तभी से दक्ष के मन में शिव के प्रति द्वेष रहने लगा। एक बार दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया, सभी देवताओं को यज्ञ में आमंत्रित किया लेकिन शिव को न्योता नहीं भेजा।

    माता सती ने आकाश मार्ग से देवताओं को अपने विमानों में बैठकर जाते देखा तो शिव से इसके बारे में जानकारी ली। शिव ने बता दिया कि उनके पिता ने यज्ञ आयोजित किया है, जिसमें द्वेष वश उन्हें नहीं बुलाया गया है। सती शिव के मना करने पर भी यज्ञ में भाग लेने के लिए कनखल पहुंच गई, उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें देख उनके पिता राजा दक्ष शिव को आदरपूर्वक यज्ञ में आमंत्रित कर लेंगे। पर, ऐसा नहीं हुआ, उल्टे राजा दक्ष ने बार-बार शिव का अपमान किया।

    शिव का निरादर होने के कारण सती ने अपनी देह को यज्ञ कुंड में भस्म कर दिया। शिव को पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेज कर यज्ञ का विध्वंस करा दिया। शिवगणों ने दक्ष का सिर काट डाला। शिव सती की अधजली देह लेकर ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। इससे सृष्टि के नष्ट होने की आशंका उत्पन्न हो गई। देवता शिव को शांत करने के लिए स्तुति गान करने लगे, बात बनती न देख विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती की देह को खंड-खंड कर दिया, जहां-जहां सती का जो अंग गिरा, वहां-वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

    भगवान शिव ने बकरे का सिर लगाकर की दक्ष की शल्य क्रिया

    शिव का क्रोध जब शांत हुआ तो यज्ञ पूर्ण करने का उपाय तलाशा गया। शिव ने बकरे का सिर लगाकर दक्ष की शल्य क्रिया कर उन्हें पुनर्जीवन देते हुए यज्ञ को संपन्न कराया। दक्ष ने क्षमा याचना कर वरदान मांगा कि शिव इसी स्थान पर दक्षेश्वर नाम से विराजमान हों। शिव ने वरदान दिया कि श्रावण मास में वह कनखल में दक्षेश्वर नाम से विराजमान रहेंगे तथा भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करेंगे। तभी से कनखल स्थित दक्ष घाट पर स्नान कर दक्षेश्वर महादेव का जलाभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है। श्रावण मास में दक्षेश्वर मंदिर को प्रबंधकारिणी संस्था महानिर्वाणी अखाड़ा की ओर से सजाया-संवारा जाता है। पूरे श्रावण मास यहां मेला लगा रहता है। इस दौरान यहां शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है।

    महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव, दक्षेश्वर महादेव मंदिर के परमाध्यक्ष और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने बताया कि श्रावण माह में भगवान शंकर एक माह तक दक्षनगरी यानि अपनी ससुराल में दक्षेश्वर महादेव के रूप में विराजमान रह कर सृष्टि का संचालन करते हैं। इस समय दक्षेश्वर महादेव मंदिर में शिव जलाभिषेक करने से भक्त को उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। शिव को जल अत्यंत प्रिय है।

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