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    झोपड़ी में रहने वाले संदीप के सपनों ने भरी उड़ान, पूरा किया डॉक्‍टर बनने का ख्वाब

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sun, 15 Mar 2020 08:25 PM (IST)

    एक गुदड़ी के लाल संदीप कुमार ने भी बचपन में एमबीबीएस जैसी डिग्री पाने का सपना देखा। परिस्थितियों से मुकाबला करते हुए आखिर संदीप ने अपना मुकाम पा ही लिया।

    झोपड़ी में रहने वाले संदीप के सपनों ने भरी उड़ान, पूरा किया डॉक्‍टर बनने का ख्वाब

    ऋषिकेश, दुर्गा नौटियाल। चिकित्सा शिक्षा के सर्वोच्च संस्थान एम्स से एमबीबीएस की डिग्री हासिल करना किसी भी छात्र का बड़ा ख्वाब होता है। एक गुदड़ी के लाल संदीप कुमार ने भी बचपन में ऐसा सपना देखा था। मगर, घर की माली हालत ऐसी रही कि एमबीबीएस जैसी डिग्री पाना संदीप के लिए सचमुच में सपना सरीका था। कहते हैं, जहां चाह वहां राह... एक लक्ष्य के साथ परिस्थितियों से मुकाबला करते हुए आखिर संदीप ने अपना मुकाम पा ही लिया। 

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    एम्स ऋषिकेश के दूसरे दीक्षा समारोह में लखनऊ के बाराबांकी के छोटे से गांव बालसा के रहने वाले संदीप के हाथ में जब एमबीबीएस डाक्टर की उपाधि आई तो संदीप व भीड़ में बैठे उनके पिता की आंखें नम हो गई। संदीप के लिए वास्तव में यह क्षण किसी सपने के पूरा होना जैसा था। दैनिक जागरण से बातचीत में संदीप ने अपने संघर्ष की कहानी साझा की। संदीप ने बताया कि उसकी पांच बहनें हैं। पिता रामशरण यादव खेती किसानी करते हैं, वही परिवार की आजीविका का जरिया है। तीन वर्ष पूर्व हार्ट की बीमारी के चलते माता का निधन हो गया। संदीप ने बताया कि उनका अब तक का सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा। घर के नाम पर आज भी उनका एक छप्पर है, जिसमें अभी तक पानी व बिजली का भी कनेक्शन नहीं है। 

    संदीप बताते हैं कि उनकी इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल फतेहचंद जगदीशरायण इंटर कालेज सबदरगंज से हुई। घर से उनका स्कूल सात किलोमीटर दूर था। स्कूल दूर होने के कारण घर में सिर्फ उन्होंने और उनकी छोटी बहन ने ही पांचवीं से आगे की पढ़ाई की। इंटरमीडिएट के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ पहुंचे। जहां लखनऊ क्रिश्चियन डिग्री कालेज से उन्होंने बीएससी की। पढ़ाई में होनहार थे तो स्कूल ने उन्हें स्कॉलरशिप दी। इसके साथ ही उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू किया और किसी तरह पिता के साथ घर के खर्चों में हाथ बंटाया। वर्ष 2012 में मेडिकल की परीक्षा में उनका चयन बीडीएस के लिए हुआ, जो उन्होंने छोड़ दिया। इसके बाद 2013 में एम्स के साथ ही सीपीएमटी परीक्षा में भी संदीप उत्तीर्ण हुए और उन्होंने एम्स को चुना। जहां आज एमबीबीएस की डिग्री के रूप में उन्हें जीवन का सबसे बड़ा तोहफा मिला है।

    कल चुकाई कर्ज की पहली किश्त 

    संदीप ने बताया कि एम्स की फीस तो महज पांच हजार 500 रुपये थी। मगर, किताबें व अन्य खर्च के लिए उन्होंने ऋषिकेश में भी बच्चों को कोचिंग दी। कोचिंग से जो कुछ कमाया उसमें से पिता को भी मदद की, जिससे उनकी दो बहनों की शादी हो चुकी है। संदीप ने बताया कि उन्होंने पढ़ाई के लिए यूनियन बैंक से दो लाख का लोन भी लिया था, जिसकी पहली किश्त उन्होंने बीते कल यानी शुक्रवार को ही जमा कराई।

    सबसे पहले घर में लगाउंगा पानी का नल 

    डॉ. संदीप ने बताया कि अब सरकारी नौकरी पाना उनका पहला लक्ष्य है। यदि अच्छी नौकरी मिल गई तो सबसे पहले वह अपने घर पर पानी का कनेक्शन लगाएंगे। इसके बाद घर की छत पक्की करुंगा और बिजली का कनेक्शन लुंगा। संदीप ने बताया कि उनके पास इसके अलावा अभी तीन बहनों की शादी की भी जिम्मेदारी है।

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    गरीब बच्चों के लिए करेंगे मदद 

    डॉ. संदीप ने बताया कि उन्होंने मुफलिसी के दिन देखे हैं, इसलिए गरीब छात्रों की आवश्यकताओं को भली भांति जानते हैं। कहा कि यदि कभी सक्षम बन पाया तो गरीब बच्चों की शिक्षा व उन्हें आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास करुंगा। संदीप ने बताया कि उनका ध्येय है कि वह पिछड़े और दुर्गम क्षेत्रों में ही सेवाएं दें। ताकि चिकित्सक में जो भगवान का रूप लोग देखते हैं, उसे महसूस भी कर पाएं।

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