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प्रकृति को महसूस करने का समय है लॉकडाउन: संत मैथिलीशरण

संत मैथिलीशरण ( स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश) का कहना है कल प्रात हमने पक्षियों का कलरव सुना और भरपूर आनंद आया। वे कुछ अलग नहीं बोल रहे थे कुछ अनोखा भी नहीं..।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 02 Apr 2020 09:58 AM (IST)Updated: Thu, 02 Apr 2020 09:58 AM (IST)
प्रकृति को महसूस करने का समय है लॉकडाउन:  संत मैथिलीशरण
प्रकृति को महसूस करने का समय है लॉकडाउन: संत मैथिलीशरण

देहरादून, जेएनएन। संत मैथिलीशरण ( स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश) का कहना है कल प्रात: हमने पक्षियों का कलरव सुना और भरपूर आनंद आया। वे कुछ अलग नहीं बोल रहे थे, कुछ अनोखा भी नहीं..। पर, हम नितांत शांति के कारण उन्हें सुनने की स्थिति में थे। बस! बाहर के स्वर, बहिमरुखी स्वर नहीं हो रहे थे। शाम के चार बज गए, तब हम एक आलेख लिख रहे थे और हमसे एक फर्लांग दूर परमार्थ आश्रम के टॉवर की घड़ी भी चार बजने की सूचना दे रही थी। 

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उसको हमने पिछले 14 वर्षों में पहली बार सुना। वह कुछ अलग तरह से या तीव्र ध्वनि में नहीं बोली थी। पर, हम नितांत शांत वातावरण में लिख रहे थे। ..तो उसने चार बार बोलकर कुछ कहा. कि हम बोलते तो रोज हैं, पर तुम सुनने की स्थिति में नहीं होते हो..। पक्षी हमें रोज अनंत सुख देने आते हैं, पर हम सुनने की स्थिति में नहीं होते। क्यों नहीं होते, सुनने की स्थिति में..। क्योंकि हम इतना बोलते हैं कि सुनने की बारी ही नहीं आती।

कोरोना आया और कुछ करके चला भी जाएगा। निश्चित रूप से चला जाएगा। यह तो प्रकृति का एक अलार्म मात्र है। हमने स्वयं से और संपूर्ण लॉकडाउन से यह सीखा कि सीमित बोलना है, धीरे बोलना है। अहं पर सहज विजय प्राप्त करने का यह एक दिव्य साधन है, जिस पर कोई खर्च नहीं है। स्वर सुनने के लिए होता है, श्रुति (वेद) को हमारे यहां इसीलिए सवरेपरि सम्मान दिया गया। 

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आकाश में, प्रकृति में अनेक स्वर गूंज रहे हैं, पर हम श्रुति विमुख हो रहे हैं। अनेक प्रकार से कुतर्कों के जरिये अपनी मान्यता और अहं को धर्म एवं परंपराओं का नाम देकर सार्थक सिद्ध करने में लगे हैं। बोलना बंद करना मौन नहीं है और अधिक बोलना भी मौन का खंडन नहीं है। कितना, क्या और कब बोलना है, इतने का ज्ञान ही सर्वोच्च कोटि का मौन है।

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