घरों में सुनाई दे रही 'मंगल भवन अमंगल हारी...की पंक्तियां
लॉकडाउन में रोजाना सुबह-शाम ‘मंगल भवन अमंगल हारी दब्रहू सू दशरथ अजिर बिहारी। राम सिया राम सिया राम जय-जय राम।’ की पंक्तियां अधिकतर घरों में सुनाई दे रहीं।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। ‘मंगल भवन अमंगल हारी, दब्रहू सू दशरथ अजिर बिहारी। राम सिया राम, सिया राम जय-जय राम।’ यूं तो आज के दौर में ये पंक्तियां मंगलवार व शनिवार को घर में पूजा-पाठ के दौरान या फिर मंदिरों में ही सुनाई देती थीं, लेकिन कोरोना के चलते लॉकडाउन में आजकल रोजाना सुबह-शाम यह पंक्तियां अधिकतर घरों में सुनाई दे रहीं। पुरानी पीढ़ी को अस्सी के दशक का जमाना याद आ गया, जब लोग सारे काम एवं धंधे छोड़कर टेलीविजन के सामने हाथ जोड़ बैठ जाते थे। पुराने व वृद्ध लोगों में तो आज भी वही भाव कायम है, लेकिन नई पीढ़ी इससे जुड़ने में संकोच कर रही। खासकर बच्चे और युवा। इन्हें तो मोबाइल या दूसरे टीवी चैनल में मजा आता है। तीस दशक पुराने किरदार इन्हें कहां भाने वाले हैं। रामायण के दोबारा प्रसारण की मंशा तो दूरदर्शन का सराहनीय कदम है, पर भावी पीढ़ी इस सकारात्मक सोच को कब समझेगी।
फिर शुरू समय चक्र
समय के चक्र को भला कौन रोक पाया है। साल 1991 में आई बीआर चोपड़ा की प्रस्तुति ‘महाभारत’ समय के चक्र की वही सौगात है। कोरोना का चक्र अपनी जगह है और हमारी परंपरा, इतिहास एवं संस्कार के चक्र अपनी जगह। कोरोना समय के साथ खत्म हो जाएगा, लेकिन परंपरा व इतिहास तो कायम रहेंगे। यही वजह है कि टेलीविजन पर रामायण एवं महाभारत का प्रसारण दोबारा देखकर लोग फिर ईश्वर की शरण में पहुंच गए हैं। आज बच्चों को न तो भीष्म पितामाह के बारे में पता है और न ही आचार्य द्रोण। राजा दशरथ एवं जनक भी उनके लिए अनजान ही हैं। हां राम और कृष्ण, उन्हें जरूर याद हैं, क्योंकि वे मंदिरों में विराजमान हैं। अपने इतिहास, परंपरा एवं संस्कृति की जानकारी देने के लिए इन दिनों माता-पिता भी बच्चों को जबरन टीवी सेट के आगे बैठा रहे, ताकि उन्हें भी ईश्वर की शक्ति का अहसास हो।
बच्चों को पहले समझाएं
नए जमाने में पुरानी प्रस्तुति रामायण और महाभारत को जबरन बच्चों को दिखाने के बजाए पूर्व माता-पिता को उन्हें इसके बारे में समझाना होगा। कौन हमारी संस्कृति में क्या मायने रखता है, यह ज्ञान उन्हें देना होगा। प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है और श्री कृष्ण की क्या लीलाएं थीं। उन्हें समझ आएगा तो ही वे रामायण एवं महाभारत देखने में रूचि दिखाएंगे। बच्चों को उस दौर का चर्चित सस्पेंस थ्रिलर ब्योमकेश बख्शी और मनोरंजन से भरपूर सर्कस सीरियल भी इस दौर में पसंद नहीं आएगा। माता-पिता और दादी-दादी तो रामायण, महाभारत मन से देख रहे, लेकिन बच्चे के रूचि ना दिखाने पर उसे मोबाइल पर खेलने दे रहे। ऐसे में माता व पिता को चाहिए कि वे अपनी परंपरा एवं संस्कृति के बारे में बच्चों को प्रेम से समझाएं। नहीं समङोंगे तो उन्हें कितना ही रामायण व महाभारत दिखा लो, वे गच्चा देकर भागने ही जाएंगे।
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‘दूरदर्शन’ ने दिखाई अहमियत
एचडी क्वालिटी और सास-बहू, कामेडी या रियलिटी शो जैसे नए दौर के बीच आज फिर दूरदर्शन ने अपनी अहमियत दिखा दी है। पुराने लुक वाला दूरदर्शन आज फिर से देश का सबसे ज्यादा देखे जाने वाले चैनलों में शुमार हो गया है। एक समय दूरदर्शन ही मनोरंजन का एकमात्र साधन था। शनिवार और रविवार को आने वाली फिल्में व रविवार सुबह आने वाली रंगोली, चंद्रकांता, जंगल बुक जैसे धारावाहिकों के लिए सुबह ही समस्त कामकाज निबटाकर लोग टीवी सेट के सामने बैठ जाते थे। समय का दौर आगे बढ़ा और मनोरंजन से भरे चैनलों की दौड़ में राष्ट्रीय चैनल होने के बावजूद दूरदर्शन पिछड़ गया। फ्री चैनल के बाद भी लोग दूरदर्शन देखने को राजी नहीं थे, मगर आज वही लोग सुबह-शाम दूरदर्शन चैनल से चिपके बैठे हैं। जिनके यहां डिश टीवी व केबल कनेक्शन हैं, वे दूरदर्शन का नेशनल और दूरदर्शन भारती के चैनल नंबर तलाशते दिख रहे हैं।
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