Dehradun Disaster: सहस्रधारा को आपदा का गहरा घाव, न जाने कब पड़ेंगे पर्यटकों के पांव?
देहरादून के सहस्रधारा में प्राकृतिक आपदा से भारी तबाही हुई है। लगभग 25-30 दुकानें और कई होटल-रेस्टोरेंट क्षतिग्रस्त हो गए हैं जिससे पर्यटन और स्थानीय कारोबार प्रभावित हुआ है। चारों ओर मलबा पसरा है और व्यवसायी गर्मियों के पर्यटन सीजन को लेकर चिंतित हैं। दुकानदारों को बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च की चिंता सता रही है। सहस्रधारा को पटरी पर लाना मुश्किल है।

विजय जोशी, जागरण देहरादून। सहस्रधारा में आई प्राकृतिक आपदा ने पर्यटन स्थल और स्थानीय कारोबारियों को गहरे जख्म दिए हैं। कभी पर्यटकों से गुलजार रहने वाला यह इलाका आज सुनसान पड़ा है।
दुकानों, होटलों और रेस्टोरेंट्स को भारी नुकसान पहुंचा है, जिससे रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। सहस्रधारा में चारों ओर मलबा पसरा है और पूरे बाजार को भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में स्थानीय व्यवसायी आने वाली गर्मियों में पर्यटन सीजन को लेकर भी चिंतित हैं।
सहस्रधारा में आपदा से करीब 25 से 30 दुकानें और कई होटल-रेस्टोरेंट आंशिक या पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। फिलहाल क्षेत्र में करीब 50 दुकानें और दर्जनभर होटल-गेस्ट हाउस बचे हैं, लेकिन उनमें भी सन्नाटा पसरा है।
प्रशासनिक अमला युद्ध स्तर पर यहां राहत कार्य करने का दावा कर रहा है, लेकिन व्यवसायियों का कहना है कि हालात सामान्य होने में लंबा समय लग सकता है। स्थानीय व्यापारी बताते हैं कि सहस्रधारा का कारोबार गर्मियों में ही चरम पर होता है।
तीन से चार महीने की कमाई से ही उनका सालभर का गुजर-बसर चलता है। अब उन्हें चिंता है कि अगले सीजन तक सहस्रधारा को पटरी पर लाना मुश्किल होगा। प्राकृतिक आपदा से चारों ओर मलबा फैला हुआ है और क्षेत्र का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। रुक-रुककर हो रही बारिश से हालात और भयावह नजर आ रहे हैं।
हमारा होटल पिछले 15 साल से यहां चल रहा था। गर्मियों में बुकिंग पूरी हो जाती थी, लेकिन भारी बारिश से इस बार कारोबार कम रहा और आपदा के बाद अब हालत यह है कि कमरे खाली पड़े हैं। समझ नहीं आता बैंक का कर्ज कैसे चुकाएं। - अन्नू पयाल, होटल व्यवसायी
रेस्टोरेंट पूरी तरह मलबे में दब गया। जो थोड़ी-बहुत बची सामग्री है, वह भी बारिश में खराब हो गई। घर का खर्च कैसे चलेगा, यह सबसे बड़ी चिंता है। - विजेंद्र सिंह, रेस्टोरेंट संचालक
मेरी दुकान में रोजाना सैकड़ों ग्राहक आते थे। अब दिनभर बैठा रहता हूं, एक भी ग्राहक नहीं दिखता। लगता है जैसे सहस्रधारा की धड़कन ही थम गई हो। - सागर बिष्ट, दुकानदार
हम तो पूरी तरह पर्यटकों पर निर्भर थे। उनके बिना न दुकान चल रही है, न घर। बच्चों की पढ़ाई और दवा-राशन का खर्च कैसे निकालें, यह सोचकर नींद उड़ गई है। - संजय नेगी, दुकानदार

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