महाभारतकाल से आधुनिक दौर तक सहस्रधारा का बदला स्वरूप, नदी का गला घोंटकर खड़ा हुआ निर्माण दे रहा आपदा को न्योता
Dehradun Disaster देहरादून का सहस्रधारा इतिहास संस्कृति और पर्यटन का केंद्र है। महाभारत काल में गुरु द्रोण ने यहाँ तपस्या की। ब्रिटिश काल में यह अंग्रेजों का पसंदीदा स्थल था। आज यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट है लेकिन अंधाधुंध निर्माण से नदी का स्वरूप बदल गया है जिससे आपदा का खतरा बढ़ गया है। सोमवार की घटना एक चेतावनी थी।

विजय जोशी, जागरण देहरादून । देहरादून की पहचान सहस्रधारा सिर्फ एक पिकनिक स्पाट नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, अध्यात्म और पर्यटन का संगम है। महाभारत काल से लेकर ब्रिटिश शासन और फिर आधुनिक पर्यटन के दौर तक इसने कई रूप बदले। लेकिन, आज यह क्षेत्र प्रकृति पर अतिक्रमण और आपदाओं के साए में खड़ा है।
सहस्रधारा नदी का गला घोंटकर खड़ा हुआ कस्बा कुदरत को खुली चुनौती दे रहा है। बीते सोमवार रात को आई आपदा को महज एक चेतावनी माना जा सकता है। जिससे सबक नहीं लिया तो भविष्य की तस्वीर और भयावह हो सकती है।
देहरादून का नाम जिस कथा से जुड़ा है, उसकी जड़ें सहस्रधारा से निकलती हैं। लोकमान्यताओं के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य ने यहीं तपस्या की थी। इसी कारण इस क्षेत्र को देहरादून यानी द्रोण की देहरी कहा गया। महाभारतकाल में पांडव भी अपने वनवास के दौरान यहां आए थे।
तब से यह स्थल धार्मिक और पौराणिक महत्व का केंद्र रहा है। इसके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान सहस्रधारा की प्राकृतिक खूबसूरती और ठंडे झरनों ने अंग्रेज अधिकारियों को आकर्षित किया। यह उनकी समर रिट्रीट यानी गर्मियों की पनाहगाह बन गया। यहीं से सहस्रधारा का संगठित पर्यटन रूप आकार लेने लगा।
आज सहस्रधारा देहरादून का सबसे चर्चित पिकनिक स्पाट है। गंधकयुक्त झरनों का औषधीय महत्व इसे स्वास्थ्य लाभ स्थल भी बनाता है। स्थानीय ग्रामीणों ने पर्यटन से जुड़कर होटल, गेस्ट हाउस और रेस्टोरेंट खोले। धीरे-धीरे जहां कभी अस्थायी दुकानें थीं, वहां बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गईं। अब दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान समेत देशभर से पर्यटक यहां आने लगे हैं।
अब सहस्रधारा में रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। पहाड़ियों की गोद में झूलते हुए झरनों और घाटियों का नजारा पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह जगह सिर्फ स्वास्थ्य लाभ का केंद्र ही नहीं, बल्कि परिवारों और युवाओं के लिए एक आदर्श पिकनिक स्पाट भी है। यही वजह है कि बीते कुछ वर्षों में यहां होटल, रेस्टोरेंट और दुकानों की बाढ़ सी आ गई।
अपने मूल स्वरूप में आई नदी तो भयावह होगा मंजर
सहस्रधारा में चमक-दमक के पीछे सच्चाई कुछ और है। सहस्रधारा की नदी को जगह-जगह पिलर और पुश्तों से घेरकर निर्माण कर दिया गया है। जहां कभी नदी खुलकर बहती थी, अब वहां होटल और दुकानें खड़ी हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो नदी का गला घोंटने वाले ये निर्माण किसी भी समय भारी तबाही ला सकते हैं। बीते सोमवार को हुई बादल फटने की घटना ने इस खतरे की झलक दिखा दी है। धराली में हाल ही में आई आपदा इसका ताजा उदाहरण है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर कभी नदी अपने मूल स्वरूप में लौटी तो सहस्रधारा का पूरा बाजार और बस्ती चंद मिनटों में तबाह हो जाएगी।
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