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सेवा का अधिकार देने में उत्तराखंड फिसड्डी, जानिए कैसे

उत्तराखंड सेवा के अधिकार मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है। यहां आम आदमी तक सेवा का लाभ पहुंचने में पांच से छह महीने तक लग जाते हैं। जबकि इसकी अधिकतम अवधि महज 15 दिन है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 02 Dec 2018 05:30 PM (IST)Updated: Sun, 02 Dec 2018 05:30 PM (IST)
सेवा का अधिकार देने में उत्तराखंड फिसड्डी, जानिए कैसे
सेवा का अधिकार देने में उत्तराखंड फिसड्डी, जानिए कैसे

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में आम आदमी के सेवा के अधिकार का जमकर उल्लंघन हो रहा है। आम आदमी तक सेवा का लाभ पहुंचने में पांच से छह महीने तक लग जाते हैं, जबकि इसकी अधिकतम अवधि महज 15 दिन है। वहीं, अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड के प्रदर्शन की बात करें तो वर्तमान में प्रदेश में कुल 217 सेवाओं का ही नोटिफिकेशन जारी हुआ है, जबकि अभी करीब 117 सेवाएं शेष हैं। ये बातें सेवा का अधिकार विषय पर आयोजित कार्यशाला में आयोग के मुख्य आयुक्त आलोक कुमार जैन ने कही। 

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शनिवार को सर्वे चौक स्थित आइआरडीटी सभागार में सेवा का अधिकार आयोग की ओर से आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि आयोग के मुख्य आयुक्त जैन ने कहा कि नागरिकों को सेवा का समय पर लाभ मिलना उनका मौलिक अधिकार है। लेकिन, आयोग में हर विभाग से जुड़ी सेवा के अधिकार के उल्लंघन की शिकायतें पहुंच रही हैं। अधिकांश शिकायतों में अधिकारी-कर्मचारियों की लापरवाही सामने आई है। 

ऐसी भी अनेकों शिकायत हैं, जिनमें लोगों के आवेदन में गलती बताए बिना ही उन्हें निरस्त कर दिया गया। जबकि, कानून में स्पष्ट नियम है कि आवेदन को निरस्त करने पर स्पष्ट कारण बताना अनिवार्य है। आयोग के सचिव पंकज नैथानी ने कहा कि ऐसी भी शिकायतें हैं, जिनमें जनता को आयोग में न जाने के लिए अधिकारी धमकाते हैं। इस कार्यशैली को बदलना होगा। इसके बाद आम जनता से भी कई सुझाव मांगे गए, जिनमें लोगों ने नगर निगम, एमडीडीए, पेयजल निगम व अन्य विभागों के अधिकारियों की शिकायत की।

इस अवसर पर आयोग के आयुक्त डीएस गब्र्याल, अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान, जिलाधिकारी एसए मुरूगेशन समेत कई अन्य अधिकारी उपस्थित रहे। 

तकनीकी खामियां भी देरी की वजह आयोग के सचिव ने कहा कि जनता तक सेवा का लाभ देरी से पहुंचने के लिए ऑनलाइन प्रणाली की जटिलताएं भी जिम्मेदार हैं। सॉफ्टवेयर व अन्य तकनीकी कारणों से प्रक्रिया में लंबा समय लगता है। तकनीकी सेल को समस्याएं मालूम नहीं होती। उन्होंने ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार करने पर जोर दिया, जिसमें तकीनीकी एक्सपर्ट्स लोगों की समस्या का संज्ञान लें और जटिलताओं को दूर करें। 

कर्नाटक से लें सीख 

मुख्य आयुक्त जैन ने कहा कि कर्नाटक सेवा का अधिकार लागू करने में शीर्ष राज्य है। वहां समस्त सेवाओं का नोटिफिकेशन जारी है और सभी ऑटोमेशन मोड पर हैं। यदि किसी भी विभाग में जनता तक सेवा निर्धारित समय पर नहीं पहुंचती तो ऑटो जेनरेटेड रिमाइंडर संबंधित अधिकारी तक पहुंच जाता है। लेकिन, उत्तराखंड में आयोग को ऐसी सुविधाएं नहीं दी जा सकी हैं। 

आय प्रमाण पत्र की वैधता सीमा बढ़े 

जैन ने कहा कि आम आदमी को सरकारी दफ्तर में आय प्रमाण पत्र बनवाने में हफ्तों लग जाते हैं और कई जगह उनसे रिश्वत भी ली जाती है। जब वह आदमी प्रमाण पत्र को आवेदन के साथ भेजता है तो आवेदन अंतिम चरण तक पहुंचने में पांच से छह महीने लग जाते हैं। तब तक प्रमाण पत्र की वैधता सीमा खत्म हो जाती है। उन्होंने इसकी वैधता सीमा बढ़ाने की जरूरत बताई। 

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