Rajat Jayanti Uttarakhand: कृषि व औद्यानिकी में गेम चेंजर योजनाओं ने बढ़ाया भरोसा, उत्पादन बढ़ा और किसानों को मिला लाभ
उत्तराखंड में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण कृषि क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं। पिछले 25 वर्षों में कृषि भूमि में कमी आई है, लेकिन फसल उत्पादकता में सुधार हुआ है। सरकार प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिससे किसानों की आय को दोगुना करने में मदद मिल सके। फल और सब्जी उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।

कृषि का रकबा घटने के बावजूद उत्पादकता को लेकर कुछ बेहतर है तस्वीर। प्रतीकात्मक
राज्य ब्यूरो, जागरण देहरादून। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में कृषि क्षेत्र तमाम झंझावत से जूझ रहा है। इसके चलते इस प्राइमरी सेक्टर का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा है। पिछले 25 साल में ही कृषि भूमि में 2.19 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। बावजूद इसके फसल उत्पादकता को लेकर तस्वीर कुछ बेहतर है। इसके लिए नवोन्मेष और गेम चेंजर योजनाओं ने कुछ उम्मीद बढ़ाई है। इस कड़ी में राज्य में प्राकृतिक व जैविक खेती के साथ ही श्रीअन्न को बढ़ावा देने को कई योजनाओं पर सरकार काम कर रही है। औद्यानिकी के क्षेत्र में भी कई नवाचार और नई योजनाएं संचालित की जा रही हैं। मंशा यही है कि इन सबके बूते किसानों की आय दोगुना करने में मदद मिल सके।
नौ नवंबर, 2000 को जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तब यहां कृषि का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था। वर्तमान में यह घटकर 5.51 लाख हेक्टेयर पर आ गया है। कारण यह कि गांवों से निरंतर हो रहे पलायन के कारण परती भूमि का रकबा बढ़ रहा है। साथ ही विभिन्न अवस्थापना सुविधाओं के लिए कृषि भूमि दी गई है। यद्यपि, उत्पादकता की दृष्टि से देखें तो वर्ष 2000-01 में राज्य में कुल खाद्यान्न उत्पादन 16.47 मीट्रिक टन था, जो अब बढ़कर 17.77 मीट्रिक तक पहुंचने का अनुमान है।
कृषि का रकबा घटने के बावजूद राज्य में फसल उत्पादकता में कुछ वृद्धि हुई है तो इसके पीछे नवोन्मेष और नवीनतम तकनीकी को अपनाकर विभिन्न योजनाओं को धरातल पर मूर्त रूप दिया गया। यह किसी से छिपा नहीं है कि पहाड़ में पशुधन घटा है। ऐसे में फार्म मशीनरी बैंक योजना ने अहम भूमिका निभाई, जिससे कृषि उपकरण व निवेशों की आपूर्ति ग्राम स्तर तक हुई है। पहाड़ के खेतों में पावर ब्रीडर व पावर टिलर का उपयोग इसका उदाहरण है। साथ ही उन्नत बीजों व उर्वरकों की उपलब्धता ने भी उत्पादकता बढ़ाई है।
ये उठाए गए कदम
- सुदूरवर्ती क्षेत्रों और लघु व सीमांत कृषकों तक कृषि यंत्रों की पहुंच।
- बीज, उर्वरक व कीटनाशकों की उपलब्धता के लिए आनलाइन व्यवस्था।
- क्लस्टर आधारित सामूहिक खेती को प्रोत्साहन।
- जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए उठाए जा रहे ठोस कदम।
- जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा के लिए घेरबाड़ योजना।
- संतुलित उर्वरकों के प्रयोग से अनुदान में बचत, भूमि उर्वरता में भी सुधार।
- श्रीअन्न यानी मंडुवा, झंगोरा, रामदाना जैसी फसलों के प्रोत्साहन को मिलेट मिशन।
- स्थानीय फसलों को भौगोलिक संकेतक प्राप्त कराना।
केंद्र पोषित इन योजनाओं का संबल
कृषक उत्पादक संगठन गठन योजना, नमामि गंगे प्राकृतिक कृषि कारीडोर योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, रेनफेड एरिया डेवलपमेंट, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य व उर्वरता योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, नेशनल मिशन फार नेचुरल फार्मिंग, प्रौद्योगिकी के माध्यम से उपज अनुमान प्रणाली, सब मिशन आन मैकेनाइजेशन व प्लांटिंग मटीरियल, सब मिशन आन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन आदि।
राज्य में फसल पैटर्न
- फसल, क्षेत्र (प्रतिशत में)
- गेहूं, 29
- धान, 27
- गन्ना, 10
- मंडुवा, 07
- दालें, 06
- फल-सब्जियां, 05
- सांवा, 04
- तिलहन, 03
- चारा, 03
- जौ, 02
- मक्का, 02
- अन्य फसलें, 02
फल-सब्जी उत्पादकता में भी वृद्धि
राज्य गठन के समय प्रदेश में फलों की उत्पादकता मात्र 1.82 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर थी, जो अब बढ़कर 4.52 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर हो गई है। इसके अलावा सब्जियों की उत्पादकता भी बढ़कर 8.27 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर हो गई है, जो राज्य गठन के वक्त 6.13 मीट्रिक टन थी। कृषकों को उच्च गुणवत्तायुक्त फल पौध रोपण सामग्री समेत अन्य औद्यानिक निवेश की समय पर उपलब्धता के बूते यह संभव हो पाया है।
इसके साथ ही मशरूम, पुष्पोत्पादन, मौनपालन जैसे क्षेत्रों में भी ठीकठाक उत्पादन हो रहा है। यद्यपि, अभी भी औद्यानिकी के क्षेत्र में बहुत किया जाना बाकी है। इसे देखते हुए सरकार ने सेब की अति सघन बागवानी योजना व तुड़ाई उपरांत प्रबंधन योजना, कीवी मिशन, ड्रेगन फ्रूट उत्पादन जैसी अनेक योजनाओं को धरातल पर उतारना शुरू कर दिया है।

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