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रिस्‍पना के पुनर्जीवीकरण पर सवाल, गंदा पानी सीवर लाइन में डालेंगे और लाइन नदी में

जिस रिस्पना को गंदगी से मुक्त करने को परियोजना शुरू की जा रही है उसके बीचों-बीच सीवर लाइन बिछाई गई है। नदी में गिरने वाले गंदे पानी को टेप कर सीवर लाइन में डाला जाएगा।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 12:56 PM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 12:56 PM (IST)
रिस्‍पना के पुनर्जीवीकरण पर सवाल, गंदा पानी सीवर लाइन में डालेंगे और लाइन नदी में
रिस्‍पना के पुनर्जीवीकरण पर सवाल, गंदा पानी सीवर लाइन में डालेंगे और लाइन नदी में

देहरादून, सुमन सेमवाल। नमामि गंगे की 60 करोड़ रुपये की परियोजना पर काम शुरू होने से पहले ही उसके भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं। वजह यह कि दून की जिस रिस्पना नदी को गंदगी से मुक्त करने के लिए परियोजना शुरू की जा रही है, उसी के बीचों-बीच सीवर लाइन बिछाई गई है और नई परियोजना में नदी में गिरने वाले गंदे पानी को टेप कर इसी सीवर लाइन में डाला जाएगा। ऐसे में भविष्य में कभी सीवर लाइन चोक होती है या उसके मेनहोल से गंदा पानी ओवर-फ्लो होता है तो मामला ढाक के तीन पात हो जाएगा।

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पेयजल निगम ने मोथरोंवाला क्षेत्र में 40 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया है। इससे जुडऩे वाली जो मुख्य सीवर लाइन है, वह रिस्पना नदी के बीच से होकर गुजर रही है। इस लाइन को लेकर पहले ही सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि नदी के बीच से सीवर लाइन गुजारने का औचित्य समझ से परे है। अब पेयजल निगम नमामि गंगे के तहत 60 करोड़ रुपये की नई परियोजना शुरू करने जा रहा है। इसमें जिन घरों का सीवर नदी में गिर रहा है, उसे टेप कर सीवर लाइन से जोड़ा जाएगा और गंदे नालों को भी लाइन से जोड़ दिया जाएगा। इसके अलावा जो सीवर लाइन चोक हैं, उन्हें भी खोलकर नदी में पड़ी मुख्य सीवर लाइन से जोड़ दिया जाएगा। नाम न छापने की शर्त पर निगम के ही कुछ अधिकारियों ने बताया कि जिस रिस्पना नदी को स्वच्छ बनाने के लिए 60 करोड़ रुपये के काम किए जा रहे हैं, उन्हीं से यह नदी भविष्य में गंदगी के गंभीर संकट से जूझ सकती है। इसकी बड़ी वजह है कि सीवर लाइन चोक होने की दशा में नदी में ही जाकर काम करना पड़ेगा और घरों की लाइन चोक होने पर भी मुख्य लाइन में काम करना पड़ सकता है। नदी में बिछी लाइन में यह काम कैसे होगा, इसका जवाब फिलहाल किसी के भी पास नहीं है।

रिस्पना नदी के उद्गम से मोथरोंवाला तक टेप की जाएगी गंदगी

पेयजल निगम की योजना के अनुसार रिस्पना नदी के उद्गम से लेकर मोथरोंवाला तक करीब 34 किलोमीटर हिस्से में नदी में गिरने वाली गंदगी को टेप किया जाएगा। बेशक यह काम बेहतर है, मगर चिंता सिर्फ नदी में बिछी मुख्य सीवर लाइन को लेकर खड़ी हो रही है।

एलएम कर्नाटक (अधीक्षण अभियंता, पेयजल निगम) का कहना है कि आमतौर पर सीवर लाइन में खराबी नहीं आती। यदि भविष्य में सीवर लाइन या उसके मेनहोल में कोई समस्या आती तो तकनीकी आधार पर परीक्षण कर काम किया जाएगा। फिलहाल, रिस्पना नदी में बिछाई गई सीवर लाइन से ही घरों से निकलने वाले गंदा पानी व नालों की गंदगी को टेप किया जाएगा।

 

सीवरेज की एक भी परियोजना मंजिल के पास नहीं

नमामि गंगे की नई परियोजना की तरह ही सीवर निस्तारण की पूर्व की परियोजनाओं की स्थिति यही रही है। जिनमें तैयारी व नियोजन दोनों स्तर पर काफी विसंगतियां नजर आती रहीं हैं। दून में सीवर निस्तारण के लिए उत्तराखंड अर्बन सेक्टर डेवलपमेंट इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम (यूयूएसडीआइपी/एडीबी विंग) व पेयजल निगम ने 10 साल से अधिक समय तक काम किया और इसमें 267 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च कर दी गई। इसके बाद भी सिर्फ 26 फीसद सीवर का ही निस्तारण हो पा रहा है। यह स्थिति तब है जब, 115 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) से अधिक क्षमता के सात सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार कर लिए हैं और इनमें सिर्फ 30 एमएलडी के करीब ही सीवर जा रहा है।

वर्ष 2008 तक एडीबी पोषित, जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) व 13वें वित्त आयोग की अलग-अलग योजना के तहत दून की सीवरेज व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने का काम शुरू कर लिया गया था। 2015-2016 से 2017-18 के बीच ये काम पूरे कर लिए गए। ऐसे में उम्मीद थी कि अब दून का सीवर न तो नदी-नालों में उड़ेला जाएगा, न ही वह शॉक-पिट के माध्यम से भूगर्भ को प्रदूषित करेगा। उम्मीद के विपरीत बड़ी संख्या में नव-निर्मित सीवर लाइनें जगह-जगह मिट्टी-पत्थर व अन्य कबाड़ से चोक हो रखी हैं, या जिन पुरानी लाइनों के नेटवर्क को नई मेन लाइनों से जोड़ा गया था, वह क्षतिग्रस्त होकर चोक हो गई हैं। ऐसी स्थिति में सीवर लाइनों के संचालन का जिम्मा संभालने वाले जल संस्थान ने अकेले पेयजल निगम (जेएनएनयूआरएम व 13वां वित्त आयोग पोषित योजना का निर्माण करने वाली एजेंसी) की 200 किलोमीटर लाइनों को अपनी सुपुर्दगी में लेने से इन्कार कर दिया है। दूसरी तरफ एडीबी विंग ने जो 128 किलोमीटर नई लाइनें बिछाई थीं, उनसे तो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में जा रहा है, मगर करीब 400 किलोमीटर की पुरानी सीवर लाइनें जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो जाने से इनका सीवर निस्तारित नहीं किया जा रहा।

सीवर निस्तारण की यह है तस्वीर

  • कार्यदायी संस्था एडीबी विंग
  • कुल नई सीवर लाइन, 128 किलोमीटर
  • नेटवर्क से जुड़ी पुरानी सीवर लाइन, करीब 400 किलोमीटर
  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, कारगी में 68 एमएलडी
  • प्लांट में सीवर जा रहा, महज 12 एमएलडी

 कार्यदायी संस्था पेयजल निगम (जेएनएनयूआरएम/13वां वित्त आयोग)

  • कुल बिछाई गई सीवर लाइन, करीब 270 किलोमीटर
  • जल संस्थान ने सुपुर्दगी ली, महज 70 किलोमीटर

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता व निस्तारण

  • मोथरोवाला, 40 एमएलडी के दो प्लांट (निस्तारण औसतन 13 एमएलडी)
  • इंदिरा नगर, पांच एमएलडी (निस्तारण 2.5 एमएलडी)
  • दून विहार, एक एमएलडी (निस्तारण 0.4 एमएलडी)
  • सालावाला, 0.71 एमएलडी (निस्तारण 0.30 एमएलडी)
  • विजय कॉलोनी, 0.42 एमएलडी (निस्तारण 0.20 एमएलडी)

दून को 1000 किलोमीटर लाइनों की जरूरत

यदि पूरे दून के सीवर को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों तक लाना है तो इसके लिए कम से कम 1000 किलोमीटर की सीवर लाइनों की जरूरत पड़ेगी। अभी एडीबी विंग व पेयजल निगम की ओर से बिछाई गई लाइनों को देखें तो 398 किलोमीटर लाइनें ही बिछ पाई हैं। यानी कि अभी भी 602 किलोमीटर सीवर लाइनों की जरूरत है। यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि देहरादून की जरूरत के हिसाब से समग्र प्लान तैयार नहीं किया गया और उन जर्जर लाइनों को भी ठीक मान लिया गया, जो आज जब-तब चोक ही रहती हैं। 

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धीमी चाल से नहीं हो पाया प्रभावी सीवर निस्तारण

सीवरेज योजना का काम डेडलाइन बढ़ाने के बाद भी वर्ष 2014 तक पूरा हो जाना चाहिए था। मगर, यह काम धीरे-धीरे कर अलग-अलग फेज में 2016 से 2018 के बीच पूरा होता रहा। ऐसे में जिन इलाकों में पहले सीवर लाइन बिछ गई थी, उन्हें चालू नहीं किया जा सका। इसके लिए इस अवधि में तमाम निर्माण कार्य होने से लाइनों में कहीं मिट्टी-पत्थर भरते चले गए तो कहीं उनके चैंबर बंद कर दिए गए। इसके चलते कहीं सीवर लाइन अब तक बंद है तो कहीं उनके चोक होने की स्थिति भी पैदा हो रही है। दूसरी तरफ पेयजल निगम ने बिना उचित तकनीकी आकलन के रिस्पना नदी के बीचों बीच भी लाइन डाल दी है। यदि यह लाइन कभी चोक होती है तो उसकी मरम्मत करना आसान काम नहीं। वहीं, अगर यह कभी चोक होकर ओवरफ्लो होने लगी तो इसका क्या परिणाम हो सकते हैं, इस तरफ भी अधिकारियों ने ध्यान ही नहीं दिया। 

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