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देहरादून में भगवान भरोसे चल रही है स्कूली बच्चों की सुरक्षा

दून में स्कूली बच्चों की परिवहन सुविधा एवं उनकी सुरक्षा दून में भगवान भरोसे चल रही है। ना इसकी परवाह जिम्मेदार सरकार प्रशासन व परिवहन विभाग को है न ही स्कूल प्रबंधन को।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 08:32 AM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 07:59 PM (IST)
देहरादून में भगवान भरोसे चल रही है स्कूली बच्चों की सुरक्षा

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। स्कूली बच्चों की परिवहन सुविधा एवं उनकी सुरक्षा दून में भगवान भरोसे चल रही है। कहीं हॉस्टल में छात्रा से दुष्कर्म जैसी संगीन घटनाएं सामने आ रही है तो स्कूली वाहन में छात्रा के यौन-उत्पीड़न की। ना इसकी परवाह जिम्मेदार सरकार, प्रशासन व परिवहन विभाग को है, न ही मोटी फीस वसूलने वाले स्कूल प्रबंधन को। हाईकोर्ट ने पिछले साल जुलाई में स्कूली वाहनों के लिए नियमों की सूची जारी की तो सरकार एवं प्रशासन कुछ दिन हरकत में नजर आए।

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इस सख्ती के विरुद्ध ट्रांसपोर्टर हड़ताल पर चले गए और सरकार बैकफुट पर आ गई। अब प्रेमनगर में स्कूल बस में चालक-परिचालक की लापरवाही से नीचे गिरकर गंभीर रूप से जख्मी हुए साढ़े तीन वर्षीय अंश के मामले ने बच्चों की सुरक्षा पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। 

देहरादून शहर में महज 10 फीसद स्कूल या कालेज ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी बसें लगा रखी हैं, जबकि 40 फीसद स्कूल ऐसे हैं जो बुकिंग पर सिटी बस और निजी बसें लेकर बच्चों को परिवहन सुविधा उपलब्ध कराते हैं। बाकी 50 फीसद स्कूल भगवान भरोसे रहते हैं। निजी बस सुविधाओं वाले 40 फीसद स्कूलों को मिलाकर 90 फीसद स्कूल प्रबंधन और इनसे जुड़े अभिभावकों के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार ने एक अगस्त-18 से यह व्यवस्था की थी कि बच्चे केवल नियमों का पालन कर रहे वाहनों में ही जाएंगे। मगर, अब फिर वही सबकुछ चल रहा जो पहले से चलता आ रहा। न वाहनों में सुरक्षा के कोई उपाए हैं न ही चालक-परिचालकों के सत्यापन की व्यवस्था। 

प्रेमनगर में सामने आया ताजा मामला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। मासूम बच्चों को बस में स्कूल लाने और ले जाने वाले चालक-परिचालक की लापरवाही से एक मासूम की जान पर बन आई। भगवान का शुक्र है कि मासूम अंश की जान बच गई। प्रेमनगर में इससे पहले अक्टूबर-2018 में भी स्कूल वैन संचालक की हरकत से तंग आकर एक छात्रा ने जान दे दी थी। 

अभिवभावकों के लिए विकल्प नहीं

निजी स्कूल बसों के साथ ही ऑटो व वैन चालक क्षमता से कहीं ज्यादा बच्चे ढोते हैं। इन्हें न नियम का ख्याल है और न सुरक्षा के इंतजाम। अभिभावक इन हालात से अंजान नहीं हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि स्कूलों ने विकल्पहीनता की स्थिति में खड़ा किया हुआ है। निजी स्कूल यह जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। उन्हें न बच्चों की परवाह है, न अभिभावकों की। बच्चे कैसे आ रहे या कैसे जा रहे हैं, स्कूल प्रबंधन को इससे कोई मतलब नहीं। अभिभावक इस विकल्पहीनता की वजह से निजी बसों या ऑटो-विक्रम को बुक कर बच्चों को भेज रहे हैं। 

स्कूली वाहनों में सीटिंग मानक

एआरटीओ अरविंद पांडे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन के अनुसार स्कूली वाहन में पांच से 12 साल तक के बच्चों को एक यात्री पर आधी सवारी माना जाता है। स्कूल वैन में आठ सीट होती हैं। एक सीट चालक की और सात बच्चों की। सात बच्चों का आधा यानी साढ़े तीन बच्चे (यानी चार)। कुल मिलाकर वैन में पांच से 12 साल तक के 11 बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इसी तरह बस अगर 34 सीट की है तो उसमें पांच से 12 साल के 50 बच्चे ले जाए सकते हैं। 

पांच साल तक के बच्चे हैं मुफ्त

सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन में स्कूली वाहनों में पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने का प्रावधान है। तय नियम में स्पष्ट है कि ये बच्चे सीट की गिनती में नहीं आते। इसी नियम का फायदा उठाकर वाहन संचालक ओवरलोडिंग करते हैं और चेकिंग में पकड़े जाने पर आधे बच्चों की उम्र पांच साल से कम बताते हैं। यही नहीं कहीं पर भी पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने के नियम का अनुपालन नहीं किया जाता।  

आटो-विक्रम में दरवाजे जरूरी

एआरटीओ के मुताबिक आटो व विक्रम भी स्कूली बच्चों को ले जा सकते हैं मगर इनमें दरवाजे लगाना जरूरी है। खिड़की पर रॉड या जाली लगानी होगी। साथ ही सीट की तय संख्या का पालन करना होगा। जैसे आटो में तीन सवारी के बदले पांच से 12 साल के सिर्फ पांच बच्चे सफर कर सकते हैं। विक्रम में छह सवारी के बदले उपरोक्त उम्र के नौ बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इस दौरान शर्त यह भी है कि चालक के बगल में अगली सीट पर कोई नहीं बैठेगा। अगर इन मानकों को आटो-विक्रम पूरा नहीं कर रहे तो बच्चों के परिवहन में अभिभावकों का साथ होना जरूरी है। 

स्कूली वाहनों के मानक

  • स्कूल वाहन का रंग सुनहरा पीला हो, उस पर दोनों ओर और बीच में चार इंटर मोटी नीले रंग की पट्टी हो
  • स्कूल बस में आगे-पीछे दरवाजों के अतिरिक्त दो आपातकालीन दरवाजे हों। 
  • सीटों के नीचे बैग रखने की व्यवस्था हो। 
  • बसों व अन्य वाहनों में स्पीड गवर्नर लगा हो। 
  • एलपीजी समेत सभी वाहनों में अग्निशमन संयंत्र मौजूद हो। 
  • पांच साल के अनुभव वाले चालकों से ही स्कूल वाहन संचालित कराया जाए। 
  • स्कूल वाहन में फस्र्ट एड बॉक्स की व्यवस्था हो। 
  • बसों की खिड़कियों के बाहर जाली या लोहे की डबल रॉड लगाना अनिवार्य। 
  • छात्राओं की बस में महिला परिचारक का होना अनिवार्य। 
  • वाहन चालक व परिचालक का पुलिस सत्यापन होना जरूरी। 

बोले अधिकारी

दिनेश चंद्र पठोई (आरटीओ) का कहना है कि स्कूली वाहनों को लेकर हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि सिर्फ निर्धारित मानक वाले ही वाहन संचालित हों। अवैध तरीके से संचालित सभी वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। स्कूलों को भी अपनी बसें लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जहां तक चालक व परिचालक के सत्यापन की बात है तो यह पुलिस को करना चाहिए। हां उनके अनुभव और लापरवाही के चलते उठे सवालों की परिवहन विभाग जल्द जांच कराएगा। 

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