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    दून में प्रॉपर्टी डीलरों को अवैध प्लॉटिंग की खुली छूट, भरपाई करेगी जनता Dehradun News

    By BhanuEdited By:
    Updated: Wed, 25 Sep 2019 09:03 PM (IST)

    दून में प्रॉपर्टी डीलरोंं की ओर से अवैध प्लॉटिंग का खेल जारी है। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। वहीं एमडीडीए इस संबंध में ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।

    दून में प्रॉपर्टी डीलरों को अवैध प्लॉटिंग की खुली छूट, भरपाई करेगी जनता Dehradun News

    देहरादून, सुमन सेमवाल। वर्ष 2000 में राजधानी बनने से लेकर अब तक करीब 19 साल के सफर में दून की गाड़ी अनियोजित विकास की तरफ ही बढ़ी है। क्या आपने कभी सोचा है कि यहां की अधिकतर कॉलोनियों की सड़कें इतनी संकरी क्यों हैं, यहां नालियां क्यों नहीं बनाई गईं। या ऐसी कॉलोनियों में पार्क क्यों नहीं नजर आते। इन सबकी एक ही वजह है और वह है अवैध प्लॉटिंग। यानी कि जिस भूखंड पर कॉलोनी बनाने के लिए प्लॉट काटे जाते हैं, उसका ले-आउट पास ही नहीं कराया जाता। क्योंकि प्रॉपर्टी डीलर ले-आउट पास कराएंगे तो उन्हें कम से कम साढ़े सात से नौ मीटर की सड़क छोड़नी पड़ेगी। नाली का निर्माण कराना पड़ेगा और ग्रीन एरिया के लिए भी जगह रखनी होगी। जाहिर है इससे प्रॉपर्टी डीलरों का मुनाफा घट जाएगा।

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    यह तो रही प्रॉपर्टी डीलरों के हक की बात। मगर, उस आम आदमी के हक का क्या, जो अपने खून-पसीने की कमाई लगाकर एक छोटा प्लॉट खरीदता है। क्या उसे दून जैसे शहर में इतनी सुविधा नहीं मिलनी चाहिए कि जहां उसने अपने सपनों का घरौंदा बसाया है, वहां समुचित सड़क, नाली व पार्क के लिए भी कुछ जगह मिल जाए। 

    अफसोस कि दून में 95 फीसद कॉलोनियां इन अनिवार्य सुविधाओं से वंचित हैं। क्योंकि जिस मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) को इन सबकी जिम्मेदारी दी गई थी, उसके अधिकारी जनता की जगह प्रॉपर्टी डीलरों के हक में जाकर खड़े हो गए। वर्तमान में भी दून में 500 से अधिक स्थानों पर अवैध प्लॉटिंग का खेल चल रहा है। अपने निगरानी तंत्र को मजबूत कर सभी पर कर्रवाई करना तो दूर शिकायत करने के बाद भी इस तरह की अवैध प्लॉटिंग पर कार्रवाई नहीं की जा रही।

    जनता की जेब काटने का तोड़ निकाला

    एमडीडीए के नियम देखिए, जो प्रॉपर्टी डीलरों का संरक्षण करते हैं और जनता की जेब काटते हैं। जिन भूखंडों का ले-आउट पास नहीं होता है, वहां नक्शा पास कराने के लिए एमडीडीए डेवलपमेंट चार्ज के अलावा पांच फीसद तक (सर्किल रेट के मुताबिक) सब-डिविजन चार्ज भी वसूल करता है। यह चार्ज एक तरह से प्रॉपर्टी डीलरों से वसूल की जाने वाली राशि है, जिसकी भरपाई एक-एक कर जनता करती है।

    19 साल में पहली बार कड़े नियम बने, उन्हें भी स्वीकृति नहीं

    19 साल के सफर में पहली बार एमडीडीए ने अवैध प्लॉटिंग पर अंकुश कसने के लिए कड़े प्रावधान तैयार किए। 24 जून को हुई एमडीडीए की बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पास किया गया था कि अवैध प्लॉटिंग पर प्रति हेक्टेयर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। क्योंकि एमडीडीए अधिकारी एक बार अवैध प्लॉटिंग ध्वस्त करते हैं तो कुछ दिन बाद ही दोबारा प्लॉटिंग शुरू कर दी जाती है।

    नियमों की अनदेखी करने वाले प्रॉपर्टी डीलरों पर नकेल कसने के लिए यह पहल अच्छी थी, मगर शासन से अभी तक भी इसे स्वीकृति नहीं मिल पाई है। इसके अलावा अवैध प्लॉटिंग करने वाले डीलरों को प्रदेशभर में प्रतिबंधित करने का प्रावधान कैबिनेट की बैठक से पास किया गया था। इस व्यवस्था का भी अब तक अता-पता नहीं है।

    सक्रियता बढ़ी तो कागजों में होने लगी प्लॉटिंग

    पिछले कुछ समय में एमडीडीए ने अवैध प्लॉटिंग पर कार्रवाई करने की रफ्तार जरूर बढ़ाई है। मगर, प्रॉपर्टी डीलरों ने इसका जो तोड़ निकाल लिया है। उसका जवाब फिलहाल एमडीडीए अधिकारियों के पास नहीं है।

    क्योंकि पहले प्रॉपर्टी डीलर धरातल पर सड़क जरूर बनाते थे, मगर अब डीलर कागज पर ही नक्शा तैयार कर उसके अनुरूप प्लॉट बेच रहे हैं। इससे खरीदारों को सड़क तक भी नहीं मिल पा रही। ऐसे भूखंड पर जब अवैध प्लॉटिंग की शिकायत मिलती है तो एमडीडीए की टीम यह देखकर लौट आती है कि जमीन पर कुछ भी नहीं हो रहा।

    हर्रावाला-मियांवाला में रेरा व एमडीडीए का मखौल

    प्रॉपर्टी डीलरों के हौसले किस कदर बुलंद हैं, इसका जीता जागता उदाहरण है, हर्रावाला-मियांवाला की सीमा पर करीब 13.5 बीघा पर की जा रही अवैध प्लॉटिंग। इस अवैध प्लॉटिंग के खिलाफ पहले रेरा में शिकायत की गई और फिर एमडीडीए के पास। रेरा ने प्रकरण में एमडीडीए व जिलाधिकारी को भी पत्र लिखा। इस सबके बाद भी 10 प्लॉट बेच दिए गए और शेष प्लॉटों की बिक्री शुरू कर दी गई है। 

    यह स्थिति तब यह, जब शहरी विकास व आवास मंत्री मदन कौशिक तक इस अवैध प्लॉटिंग पर कार्रवाई के लिए दोनों प्राधिकरण को निर्देश दे चुके हैं। रेरा ने अब जाकर प्लॉटिंग करने वाले लोगों को 20 लाख रुपये के जुर्माने का नोटिस भेजकर कार्रवाई शुरू की है, मगर एमडीडीए के स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही। वहीं, जिलाधिकारी को रेरा की ओर से भेजा गया पत्र भी गुम हो गया है। क्योंकि अभी तक भी संबंधित भूखंड पर रजिस्ट्री न करने के आदेश तक जारी नहीं किए जा सके हैं।

    प्रभावी अंकुश लगाना बाकी 

    उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के अध्यक्ष विष्णु कुमार के मुताबिक, अवैध प्लॉटिंग पर अभी प्रभावी अंकुश लगना बाकी है। यह तभी संभव है, जब जिला प्रशासन, एमडीडीए या अन्य संबंधित एजेंसी से सहयोग मिलेगा। रेरा अपने स्तर पर नोटिस भेजकर जुर्माने की कार्रवाई कर ही रहा है। 

    ध्वस्त की जाएगी अवैध प्लॉटिंग  

    एमडीडीए सचिव जीसी गुणवंत के अनुसार, अवैध प्लॉटिंग के जो भी मामले संज्ञान में आ रहे हैं, उन पर कार्रवाई की जा रही है। हर्रावाला-मियांवाला के प्रकरण में रेरा से भी पत्र मिला था और कार्रवाई भी की गई थी। अब पुन: संज्ञान लेकर प्लॉटिंग को ध्वस्त कर दिया जाएगा। 

    इन क्षेत्रों में अवैध प्लॉटिंग का बोलबाला

    हरिद्वार बाईपास रोड, नवादा, मोथरोंवाला, दूधली, बंजारावाला, आइएसबीटी क्षेत्र, नकरौंदा, हर्रावाला, मियांवाला, कुआंवाला, गूलरघाटी रोड, बालावाला, रायपुर, मालदेवता, थानो रोड, भोपालपानी, ङ्क्षरग रोड, झाझरा, विकास नगर, कंडोली, सेलाकुई, बिधोली, शिमला बाईपास रोड, बड़ोवाला, सिंघनीवाला आदि।

    तब किस काम का जीआइएस मास्टर प्लान

    एमडीडीए देहरादून व मसूरी के करीब 55 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए जीआइएस आधारित मास्टर प्लान लेकर आ रहा है। यह डिजिटल मास्टर प्लान वर्तमान धरातलीय स्थिति के अनुरूप होगा और कोई भी अवैध निर्माण इसमें आसानी से पकड़ में आ जाएगा। मगर, जिस रफ्तार से शहर में अवैध प्लॉटिंग हो रही है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में सुधार की गुंजाइश और भी कम हो जाएगी। 

    वर्तमान में लागू मास्टर प्लान को भी वर्ष 2013 में प्रभावी ढंग से अमल में लाया जा सका। वहीं, इसका जोनल प्लान अब तक लागू नहीं है। इस मास्टर प्लान को वर्ष 2000 में ही लागू कर दिया जाता तो आज स्थिति काफी हद तक काबू में रहती। 

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    क्षेत्रफल के साथ चुनौती भी बढ़ी

    दून घाटी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) के विलय के बाद एमडीडीए का क्षेत्रफल 2.17 लाख हेक्टेयर (पहले यह 55.32 हेक्टेयर था) हो गया है। लिहाजा, इसके साथ सुनियोजित निर्माण की चुनौती भी बढ़ गई है। वहीं, निकट भविष्य में जब ऋषिकेश का भाग भी एमडीडीए में शामिल हो जाएगा, तब मौजूदा संसाधन के हिसाब से काम चल पाना संभव नहीं। 

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