उत्तराखंड में बेजुबानों की प्यास बुझाना भी बड़ी चुनौती, जानिए वजह
एक तो फायर सीजन और उस पर उछाल भरता पारा। ऐसे में वन्यजीव भी हलक तर करने को भटकने लगे हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। एक तो फायर सीजन और उस पर उछाल भरता पारा। ऐसे में वन्यजीव भी हलक तर करने को भटकने लगे हैं। हालांकि, गर्मियों में वन क्षेत्रों में बेजुबानों की प्यास बुझाने को वाटरहोल बनाए जाते हैं, लेकिन बदली परिस्थितियों में यह मुहिम अभी तेजी नहीं पकड़ पाई है। इसे देखते हुए चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन ने सभी संरक्षित क्षेत्रों में वाटरहोल की सफाई और जीर्णोद्धार कराकर इन्हें पानी से भरने के निर्देश दिए हैं।
राजाजी और कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत संरक्षित क्षेत्रों में हर बार गर्मियों में बेजुबान हलक तर करने को भटकते हैं। वर्तमान में राजाजी और कॉर्बेट से लगे कुछ क्षेत्रों में वन्यजीव पानी वाले क्षेत्रों की तरफ रुख करने लगे हैं। हालांकि, जंगलों में उनके लिए पानी की व्यवस्था करने के लिए वाटरहोल (कच्चे-पक्के जोहड़) बनाने का प्रविधान है। इसके तहत कहीं स्रोत के चारों ओर ही जोहड़ बनाए जाते हैं, तो कहीं पाइपलाइन डालकर और कहीं वाटरहोल को टैंकरों से भरा जाता है। इस बार वाटरहोल को भरने की चुनौती है।
वजह ये कि हाल में विभाग का काफी स्टाफ कोरोना से चल रही लड़ाई में शामिल था। इसके साथ ही अब पारे की उछाल से जंगलों के धधकने का क्रम भी शुरू हो गया है। नतीजतन, वाटरहोल की सफाई और जीर्णोद्धार के काम तेजी से नहीं हो पाए। इसे देखते हुए चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन ने इस बारे में सभी संरक्षित क्षेत्रों के प्रशासन को निर्देश जारी किए हैं।
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उन्हें यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि अब जल्द से जल्द सभी वाटरहोल को भर दिया जाए, ताकि वन्यजीवों के लिए पानी उपलब्ध हो सके। उधर, इस दिशा में राजाजी टाइगर रिजर्व में काम भी तेजी से शुरू किया गया है। रिजर्व के निदेशक अमित वर्मा ने बताया कि रिजर्व की दक्षिणी सीमा में नए वाटरहोल बनाए गए हैं। पुराने वाटरहोल की सफाई व जीर्णोद्धार का कार्य भी अंतिम चरण में पहुंच गया है।
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