विश्व पृथ्वी दिवस: लॉकडाउन में घटा धरती पर प्रदूषण का बोझ, दून में 76 फीसद हवा और 47 फीसद तक पानी साफ
लॉकडाउन में धरती पर प्रदूषण का बोझ कम हुआ है। देहरादून में वायु प्रदूषण की दर 76 फीसद घट गई तो गंगा के जल में 47 फीसद तक प्रदूषण घट गया।
देहरादून, सुमन सेमवाल। कोरोना वायरस के संक्रमण ने पूरी दुनिया की रफ्तार थाम दी। विकास की जिस दौड़ ने ग्लोबल (वैश्विक) और लोकल (स्थानीय) की दूरी को पाटकर ‘ग्लोकल’ जैसे शब्द को जन्म दे दिया, उस विश्व में लोग लॉकडाउन में घरों में कैद होने को मजबूर हो गए हैं।
ठहराव के इस दौर में सिर्फ विचारों की दौड़ बाकी रह गई तो हमारा ध्यान उस पृथ्वी की तरफ भी जाने लगा, जिसे हमने सिर्फ संसाधनों के दोहन का जरियाभर बना डाला था। दोहन की यह रफ्तार थमी, तब पता चल पाया कि वायु प्रदूषण का नामो-निशान नहीं है। सिर्फ हमारी असंतुलित रफ्तार ही पृथ्वी को प्रदूषण के कृत्रिम ज्वर से तपा रही थी। वर्ष 1985 से गंगा एक्शन प्लान के जरिये शुरू हुई मुहिम के नमामि गंगे में तब्दील हो जाने के बाद अब बिना कुछ किए नदी साफ होने लगी। दून में वायु प्रदूषण की दर 76 फीसद घट गई तो गंगा के जल में 47 फीसद तक प्रदूषण घट गया।
लॉकडाउन के दौरान घटे वायु व जल प्रदूषण के यह आंकड़े उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जारी किए हैं। ताजातरीन आंकड़े बता रहे हैं कि जब मानव ने अपनी हदों में रहना शुरू किया तो धरती का बोझ भी घटने लगा। लॉकडाउन के बाद हालात निश्चित तौर पर सामान्य होंगे, मगर हमें अब यह सीखने की जरूरत है कि भविष्य में संतुलित विकास कितना आवश्यक है।
चार जगह गंगा का पानी ए-ग्रेड
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान ऋषिकेश के पास लक्षमणझूला साइट पर फीकल कॉलीफॉर्म (सीवर जनित तत्व) की मात्रा में 47 फीसद की कमी पाई गई। इसी तरह ऋषिकेश बैराज में फीकल कॉलीफार्म में 46 फीसद, जबकि टोटल कॉलीफार्म में 26 फीसद की कमी दर्ज की गई। हरिद्वार क्षेत्र तक, जहां प्रदूषण सर्वाधिक रहता है, वहां भी 17 से 34 फीसद तक विभिन्न प्रदूषणकारी तत्व पानी में कम पाए गए। कुल मिलाकर चार स्थानों पर (देवप्रयाग, लक्ष्मणझूला, ऋषिकेश बैराज व हरकी पैड़ी) पानी एक ग्रेड पाया है। इसका मतलब यह है कि सिर्फ क्लोरीन मिलाकर इसे पी सकते हैं। वहीं बी ग्रेड पानी में स्नान संभव है।
पृथ्वी पर निबंध लिख जीतें पांच हजार का इनाम
विश्व पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) की ओर से ऑनलाइन निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। यूकॉस्ट के जन संपर्क अधिकारी अमित पोखरियाल ने बताया कि प्रतियोगिता की थीम जलवायु परिवर्तन, विषय ग्रोइंग थ्रेट टू मदर अर्थ पद द लाइट ऑफ कोविड-19 : पॉसिबल सॉल्यूशन रखा गया है। प्रतियोगिता तीन श्रेणी में होगी, जो 45 आयु वर्ग से अधिक, 30 से 45 आयु वर्ग और 15 से 30 आयु वर्ग हैं। सभी वर्गों में प्रथम पुरस्कार पांच हजार रुपये, द्वितीय पुरस्कार तीन हजार रुपये और तृतीय पुरस्कार दो हजार रुपये रखा गया है। यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल ने बताया कि निबंध अधिकतम 500 शब्द का लिखा जाए। प्रतिभागी निबंध dg@ucost.in के माध्यम से 30 अप्रैल तक भेजें।
यह है सीमा
एक ग्रेड पानी
इसमें डीओ 06 एमजी प्रति लीटर या अधिक, बीओडी 02 एमजी प्रति लीटर से कम और टोटल कॉलीफॉर्म 50 एमपीएन प्रति 100 एमएल या इससे कम होना चाहिए।
बी ग्रेड पानी
इस ग्रेड के पानी में डीओ 05 एमजी प्रति लीटर व अधिक, बीओडी 03 एमजी प्रति लीटर या इससे कम और टोटल कॉलीफॉर्म 500 एमपीएन प्रति 100 एमएल या इससे कम होना चाहिए।
नोट: डीओ (डिजॉल्व अक्सीजन या घुलित ऑक्सीजन), बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) है, जिसे मिलीग्राम प्रतिलीटर में मापा जाता है। टोटल कॉलीफॉर्म को एमपीएन/प्रति 100 एमएल में मापा जाता है।
लॉकडाउन में सबसे कम रहा प्रदूषण
आमतौर पर दून में वायु प्रदूषण का ग्राफ मानक से दो गुना से भी अधिक रहता है, मगर जनता कर्फ्यू के दिन 22 मार्च को यह आंकड़ा पीएम-2.5 में 81 फीसद से भी नीचे पहुंच गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर की वेबसाइट विंडी के अनुसार पीएम-2.5 का स्तर 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर आ गया था। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 14 मार्च तक के आंकड़े बताते हैं कि दून में पीएम-10 का अधिकतम स्तर 193.82 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (मानक 100) आइएसबीटी पर था। वहीं, पीएम-2.5 का अधिकतम स्तर इसी साइट पर 97.69 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (मानक 60) था। यह स्थिति भी तब थी कि कोरोना के चलते 14 मार्च तक सड़कों पर आवाजाही काफी कम हो गई थी।
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पर्यावरणविदों की नजर में लॉकडाउन के मायने
- पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि कोरोना महामारी को प्रकृति की चेतावनी भी माननी चाहिए। क्योंकि भौतिकवादी युग में हम विकास की अंधी दौड़ की तरफ बढ़ रहे हैं। नतीजा वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण के रूप में सामने आया। अब लॉकडाउन में डर के साये में हम हदों में रहे तो प्रकृति अपने वास्तविक रूप में लौटने लगी है। हमें सीख लेने की जरूरत है कि आगे विकास को संतुलित रूप से धरातल पर उतारना है।
- डॉ. एमपीएस बिष्ट, निदेशक (उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र) का कहना है कि हमने सेटेलाइट से कुछ शहरों की तस्वीर देखी। सड़कों पर सन्नाटा काट खाने को दौड़ता दिखा, मगर इससे प्रकृति को स्वस्थ होने में मदद मिली। सड़कों व आबादी के बीच तक वन्यजीव विचरण करने लगे हैं। समझदार को इशारा काफी कि अब प्रकृति की रक्षा व उसे सम्मान देने का समय आ गया है। विकास जरूरी है, मगर वह संतुलित रहे तो सबके लिए अच्छा है।
- डॉ. बृजमोहन शर्मा, सचिव (स्पैक्स) का कहना है कि लॉकडाउन में बीच सीधा दिख रहा है कि वाहनों व कल-कारखानों का धुआं बंद हो गया है। नदियों में कूड़ा व सीवर उड़ेलने की प्रवृत्ति स्वयं बाधित हो गई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि हमें अब पर्यावरण संरक्षण के लिए किन गतिविधियों को नियंत्रित करना है। लॉकडाउन हटने के बाद भी हमें इन्हीं गतिविधियों को रोकना है, जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है।