सरकार की सुस्ती से टूटा खिलाड़ियों की नौकरी का सपना, पढ़िए पूरी खबर
सरकारों ने खिलाड़ियों के लिए घोषणाएं तो कीं लेकिन उन पर अमल कभी नहीं हुआ। जिसके चलते खिलाड़ियों को राजकीय सेवाओं में नौकरी नहीं मिल पाई।
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड के खिलाड़ी अपनी कड़ी मेहनत के बूते राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग कर देश का मान बढ़ा रहे हैं। लेकिन, अब तक की राज्य सरकारों ने खेल व खिलाड़ियों की हमेशा उपेक्षा ही की है। सरकारों ने खिलाड़ियों के लिए घोषणाएं तो कीं, लेकिन उन पर अमल कभी नहीं हुआ। जिसके चलते खिलाड़ियों को राजकीय सेवाओं में नौकरी नहीं मिल पाई। नौकरी में चार फीसद आरक्षण को लेकर डाली गई याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है, ऐसे में राज्य के खेल संघ व खिलाड़ी खासे हताश हुए हैं। खेल संघों ने इसके लिए राज्य सरकार की कमजोर नीतियों पर गुस्सा जाहिर किया।
इसे उत्तराखंड के खिलाड़ियों की बदकिस्मती कहा जाए या राज्य सरकारों की नाकामी। राज्य के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद भी आजीविका के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं। सरकार ने न तो कभी कोई ठोस नीति बनाई और न ही कभी खिलाडिय़ों के हित में कोई कार्ययोजना ही तैयार की। अब कोर्ट ने नौकरी में आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए इस बाबत दायर याचिका को निरस्त कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने सरकार को खेल कोटे को लेकर कानून बनाने की छूट दी है। लेकिन सरकार से से न तो खेल संघों को ही कोई उम्मीद है और न ही खिलाड़ियों को भरोसा।
राज्य में किसी की भी सरकार रही हो, कभी किसी ने खेल व खिलाड़ियों के लिए धरातल पर कार्य नहीं किया। जून 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खेल विभाग की समीक्षा बैठक में विभिन्न खेलों में राज्य का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को सीधे खेल कोटे में नौकरी देने की बात कही थी। खेल विभाग के अलावा पुलिस, आबकारी और वन विभाग में भी खिलाडिय़ों के लिए पद सृजित करने के निर्देश दिए थे, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। इसके बाद 2018 में मौजूदा खेल मंत्री अरविंद पांडे ने भी खेल कोटे की बंद भर्तियों को शुरू करने के लिए कैबिनेट में बिल लाने की बात कही थी। पर इन सब घोषणाओं के बावजूद किसी भी सरकार ने खेल कोटे के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए। जिसका खामियाजा उत्तराखंड के खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है। सरकार के इस रवैये से खिलाडिय़ों व खेल संघों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कैबिनेट में बिल पास कर पुनविचार याचिका दायर करने की मांग की है।
- राजीव मेहता (महासचिव भारतीय ओलंपिक संघ) का कहना है कि खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए हरियाणा, महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों में सरकारी सेवाओं में खेल कोटा लागू है। सरकार को खेल कोटे पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। नई खेल नीति में इसको शामिल करना चाहिए। वह इस मामले में मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे। खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो वह दूसरे राज्यों को पलायन करेंगे।
- राजेंद्र सिंह तोमर (अध्यक्ष उत्तराखंड तीरंदाजी संघ) का कहना है कि खेल कोटे के मामले में उत्तराखंड सबसे पिछड़ा प्रदेश है। अन्य राज्यों में खेल कोटे पर निरंतर कार्य किया जाता है। सरकार को खेल कोटे पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। नई खेल नीति में इसको शामिल करना चाहिए। जिससे राज्य के खिलाड़ियों का विकास हो सके।
- मनीष मैठाणी (पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर) का कहना है कि खिलाड़ियों के विकास के लिए सरकार को सोच समझ कर योजनाएं बनानी चाहिए, जिसका फायदा समय पर खिलाड़ी को मिल सके। खेल कोटे से खिलाड़ियों का विकास तो होगा ही, बल्कि युवा पीडी को भी खेल के प्रति लगाव बढ़ेगा। सरकार को खेल कोटे पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।
- दिव्य नौटियाल (सचिव यूसीए) का कहना है कि राज्य गठन के बाद से ही सरकारें खेल व खिलाड़ियों के प्रति उदासीन रही है। सरकार को खेल कोटे को कैबिनेट में पास कर खिलाड़ियों को नौकरी देनी चाहिए। पलायन को रोकने का यही एक मात्र उपाय है।
- डीएम लखेड़ा (सचिव जिला बेसबॉल संघ) का कहना है कि खेल को अगर रोजगार से नहीं जोड़ेंगे तो खेल का ग्राफ घटता रहेगा। पिछले कुछ सालों में यह देखने को भी मिला है। सरकार को खेल कोट को कैबिनेट में जगह देनी चाहिए। जिससे खिलाड़ियों को रोजगार मिल सके और खिलाड़ी खेल के प्रति रूचि बढ़ाए।
- विरेंद्र सिंह रावत (डीएफए संस्थापक) का कहना है कि पिछले 18 सालों में राज्य की किसी भी सरकार ने खिलाड़ियों के हित में कोई कदम नहीं उठाया है, सरकार को खेल काटे के बिल को पास कर खिलाड़ियों को रोजगार देना चाहिए। जिससे युवा पीडी खेल के प्रति जागरूक होगी।
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