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    Pisyu Loon: पहाड़ की रसोई से विदेश तक पहुंचा उत्तराखंडी जायका, सिलबट्टे पर पीसतीं हैं महिलाएं; जबर्दस्त मांग

    By Jagran NewsEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Fri, 24 Mar 2023 11:39 AM (IST)

    Pisyu Loon पहाड़ का ‘पिस्यूं लूण’ (पिसा हुआ नमक) नमकवाली ब्रांड के नाम से देशभर में जायका बिखेर रहा है। विदेश में रहने वाले उत्तराखंडवासी भी जब यहां आते हैं तो नमकवाली का पिस्यूं लूण लेना नहीं भूलते।

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    Pisyu Loon: शशि के साथ 15 महिलाएं ‘पिस्यूं लूण’ तैयार कर आर्थिकी को संवार रही हैं।

    नेहा सिंह, देहरादून: Pisyu Loon: पहाड़ का ‘पिस्यूं लूण’ (पिसा हुआ नमक) नमकवाली ब्रांड के नाम से देशभर में जायका बिखेर रहा है और इसे पहचान दिला रही हैं देहरादून के थानो निवासी शशि बहुगुणा रतूड़ी।

    शशि के साथ 15 महिलाएं ‘पिस्यूं लूण’ तैयार कर आर्थिकी को संवार रही हैं। इसके अलावा ‘नमकवाली’ ब्रांड से जुड़कर पहाड़ के कई गांवों की महिलाएं और किसान भी मोटा अनाज, दालें, मसाले व बदरी घी बेच रहे हैं।

    बदरी गाय के दूध से तैयार घी और मैजिक मसालों की मांग

    खासकर, बदरी गाय के दूध से तैयार घी और मैजिक मसालों की जबर्दस्त मांग है। सिलबट्टे पर पिसे नमक के शौकीन न सिर्फ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के टीवी कलाकार आशीष बिष्ट, गीता बिष्ट, आर्यन राजपूत, जार्डन आदि हैं, बल्कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इसे खासा पसंद करते हैं। विदेश में रहने वाले उत्तराखंडवासी भी जब यहां आते हैं तो नमकवाली का पिस्यूं लूण लेना नहीं भूलते।

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    उत्तराखंड की लोक परंपराओं को बचाने का काम

    शशि बहुगुणा महिला नवजागरण समिति के माध्यम से प्रदेशभर में महिला उत्थान और उत्तराखंड की लोक परंपराओं को बचाने के लिए भी काम कर रही हैं। पिस्यूं लूण को घर-घर पहुंचाने की कवायद भी इसी प्रयास का हिस्सा है। शशि बताती हैं, उत्तराखंड के मांगल गीतों को जीवित रखने के लिए उन्होंने एक महिला समूह बनाया है।

    गीतों के अभ्यास के दौरान एक महिला घर से लूण पीसकर लाती थी, जो सबको बेहद पसंद आया। यहीं से उन्हें पिस्यूं लूण को देश-दुनिया तक पहुंचाने का विचार आया। तीन महिलाओं के साथ लूण पीसने का काम शुरू किया और बिक्री के लिए इंटरनेट मीडिया की मदद ली। धीरे-धीरे नमक की मांग बढ़ने लगी और आज वह महीनेभर में 35 से 40 किलो पिस्यूं लूण बेच रही हैं।

    महिलाओं को मिल रहा आर्थिक संबल

    • लूण पीसने के काम में शशि के साथ थानो, सत्यो, टिहरी, चंबा आदि स्थानों से 15 महिलाएं जुड़ी हैं।
    • इनमें स्थायी रूप से काम करने वाली महिलाएं एक माह में 10 हजार रुपये तक कमा लेती हैं, जबकि अस्थायी रूप से काम करने वाली महिलाओं को काम के अनुसार पारिश्रमिक दिया जाता है।
    • इसके अलावा समूह से जुड़ी महिलाएं देशभर में आयोजित होने वाले स्वरोजगार मेलों में स्टाल भी लगाती हैं।
    • नमकवाली ब्रांड के जरिये बदरी गाय के दूध से तैयार घी और मोटे अनाज व दालें बेचकर भी महिलाएं आर्थिकी संवार रही हैं।
    • शशि के पति विपिन रतूड़ी उत्पादों की पैकिंग को अपनी खूबसूरत पेंटिंग से सजाते हैं।

    विदेश तक पिस्यूं लूण पहुंचाने की तैयारी

    शशि कहती हैं, ‘पिस्यूं लूण का नाम लेते ही देश-विदेश में रहने वाले उत्तराखंडवासियों के जेहन में सिलबट्टे पर नमक पीसती दादी-नानी और मां की यादें ताजा हो जाती हैं। वक्त बीतने के साथ घर तो छूटा ही, सिलबट्टा भी छूट गया। ऐसे में जब भी कोई विदेश से आता है तो हमें पूछता है कि यह लूण देश से बाहर क्यों नहीं मिलता। फिलहाल हमारे पास लाइसेंस नहीं है, लेकिन जल्द हम विदेश तक पहाड़ी लूण का जायका पहुंचाएंगे।'

    मैजिक मसाले के स्वाद से बिखेर रहीं जादू

    लूण के अलावा समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार मसाले की भी खासी मांग है। 17 पहाड़ी जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार यह मसाला उच्च रक्तचाप के साथ मधुमेह से बचाने में भी काफी मददगार है। इसमें डाली जाने वाली जड़ी-बूटियों में अश्वगंधा और गिलोय के अलावा हल्दी, इलायची, जख्या, जीरा, काली मिर्च आदि शामिल हैं।

    यह समूह गढ़वाल के पांच गांवों में भी काम कर रहा है, जिसमें उत्तरकाशी जिले की महिलाएं बदरी गाय के दूध से घी बनाने का काम करती हैं। साथ ही जैविक दालें और हल्दी भी उनके प्रमुख उत्पादों में शामिल हैं।

    ऐसे तैयार होता है पिस्यूं लूण

    • नमकवाली ब्रांड के तहत अदरक, लहसुन, भांग, मिक्स फ्लेवर आदि लूण तैयार किए जाते हैं।
    • लूण बनाने के लिए महिलाएं अदरक, लहसुन, धनिया, मिर्च आदि के साथ नमक को सिलबट्टे पर पीसती हैं।
    • सिलबट्टे में पीसे जाने से नमक का अलग ही स्वाद आता है।

    अरसे और रोट की भी खासी मांग

    शशि बताती हैं कि बीते वर्ष दीवाली पर उन्होंने अरसे और रोट बनाने भी शुरू किए। देखते ही देखते उन्हें जगह-जगह से आर्डर मिलने लगे। लोगों ने एक-दूसरे को दीवाली के उपहार के तौर पर रोट व अरसे दिए।

    इससे एक तो लोग मिठाइयों में मिलावट से होने वाले नुकसान से बच गए और पहाड़ की परंपरा भी घर-घर खुशबू बनकर बिखरी। होली में भी रोट और अरसे की खूब बिक्री हुई।