खींचकर लक्ष्मण रेखा कम में जीना सीखा, अब दही और पनीर भी घर में ही तैयार कर रहे
जो लोग कभी रोजमर्रा की हर जरूरत के लिए बाजार पर निर्भर रहते थे वो अब दही और पनीर भी घर में ही तैयार कर रहे हैं। घर में ही जॉगिंग हो रही है और जिम भी।
देहरादून, जेएनएन। जो लोग कभी रोजमर्रा की हर जरूरत के लिए बाजार पर निर्भर रहते थे, वो अब दही और पनीर भी घर में ही तैयार कर रहे हैं। घर में ही जॉगिंग हो रही है और जिम भी। मनोरंजन के तरीके भी बदल गए हैं। दोस्तों के साथ तफरीह की जगह नवाचारों ने ले ली है। खाली वक्त में कोई चित्रकारी सीख रहा है तो कोई नई-नई रेसिपी तैयार करना। ऐसा इसलिए कि अनावश्क घर से बाहर न निकलना पड़े। क्योंकि, यही वो हथियार है जिससे कोरोना को हराया जा सकता है। फिलहाल कोरोना से बचाव की एक ही दवा है, बाहरी लोगों से फिजिकल डिस्टेंस। घर में कैद रहकर ही इसपर पूरी तरह अमल किया जा सकता है। इसीलिए शुरुआती दिक्कतों के बाद अब अधिकांश लोगों ने लॉकडाउन को आत्मसात करते हुए अपनी दिनचर्या पूरी तरह बदल ली है। इन परिवारों ने कम संसाधनों में जीवन बिताना सीखकर घर में रहना सीख लिया है।
इस ट्रैफिक जाम से आगे निकलने का वक्त
जिस तरह से दुनिया की रफ्तार थी, हम लंबे हाइवे पर सफर कर रहे थे और हमारी रफ्तार बढ़ रही थी कि हमारे सामने बड़ा ट्रैफिक जाम आ गया और हमें पता ही नहीं लगा कि कब जाम में फंस गए। अब दिखाई नहीं देता कि जाम कब खत्म होगा, लेकिन वर्तमान में जो प्रयास किए जा रहे हैं, उससे लगता है कि जल्द ही बेहतर होगा। पहले की बात की जाए तो मल्टीटास्किंग, तनाव व चुनौतियों का दौर था। महामारी के बाद समय ठहर सा गया है। मैं इस दौर में चिंता व सहानुभूति करता हूं। कोरोना के खिलाफ लड़ने वाले स्वास्थ्य टीम, पुलिस, प्रशासन, सफाई कर्मचारी, नि:स्वार्थ मददगार के लिए दिल में सहानुभूति, निर्धन के लिए दुख और आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के बाद परिवार से बिछड़े लोगों के प्रति संवेदना।
अब जो इर्द-गिर्द दिखाई दे रहा है, उसमें सरकार के कार्य हैं। क्योंकि सरकार व गवनेर्ंस की एहमियत होती है। आज सरकार सवरेपरि है। लोगों को घरों पर रहने, खाना खिलाने से लेकर स्वास्थ्य व लोगों की अन्य मदद करने में सरकार प्रयास करती दिख रही है। लोगों को इसका एहसास भी हो रहा है। इन सबमें जो जरूरी है कि प्रकृति अपना स्थान वापस पा रही है। पेड़, नदी, खाले, जीव-जंतु उभर रहे हैं। सरकार के प्रयास से हम सभी मानसिक, स्वस्थ्य, प्रशासनिक तौर पर बेहतर बनकर निखरेंगे। उम्मीद है हम जल्द फिर हाईवे पर दौड़ने लगेंगे।
कोल्ड डिंक की जगह पीते हैं पुदीने का जूस
गढ़ी कैंट में रहने वाले कविश शर्मा एक कंपनी में काम करते हैं। वह इन दिनों वर्क फ्रॉम होम पर हैं। उनकी पत्नी शशि शर्मा एक निजी अस्पताल में नर्स हैं। कविश के साथ उनकी माता विमला और पिता प्रेमचंद भी रहते हैं। इस मुश्किल दौर में कविश के परिवार ने भी कम चीजों में गुजारा करना सीख लिया है। जब तक बहुत ज्यादा जरूरी नहीं होता कविश घर से बाहर नहीं जाते। खासकर रोजमर्रा की जरूरत के लिए तो वह घर में मौजूद संसाधनों को ही विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। कविश बताते हैं कि वह अक्सर अपने आंगन में सब्जियां उगाते हैं। अब लॉकडाउन में ये सब्जियां काफी काम आ रही हैं। अब गर्मी शुरू हो गई है तो दिन में शरीर को तरावट देने के लिए कोल्ड डिंक की जगह पुदीने के जूस का इस्तेमाल कर रहे हैं। कविश पड़ोसियों को भी सब्जियां उपलब्ध करा रहे हैं। शशि बताती हैं कि उनके ससुर को दलिया काफी पसंद है। वह घर में रखे गेहूं को बारीक करके दलिया के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं।
घर में बना रहे दही और घी, सब्जी की जगह बड़ी
विद्या विहार निवासी विद्या देवी के परिवार में चार सदस्य हैं। सभी को दही, घी और छाछ काफी पसंद है। पहले ये चीजें बाहर से ही आती थीं। लेकिन, लॉकडाउन लागू होने के बाद से विद्या देवी घर में ही ये खाद्य पदार्थ बनाने लगी हैं। इसमें परिवार के बाकी सदस्य भी उनकी मदद करते हैं। विद्या देवी बताती हैं कि इससे अनावश्यक घर से बाहर भी नहीं जाना पड़ता और वक्त भी आसानी से कट जाता है। पहले सभी सुबह उठकर बाहर घूमने जाते थे, लेकिन अब छत पर ही जॉगिंग और व्यायाम कर लेते हैं।
लॉकडाउन ने घर के सभी सदस्यों को और करीब ला दिया है। अब सभी साथ में नाश्ता करते हैं और खाना भी एक साथ होता है। इस दौरान विद्या ने कई नई रेसिपी भी सीख ली हैं। सब्जी के लिए बाहर न जाना पड़े, इसलिए गहत की दाल की पहाड़ी बड़ी बना ली हैं। विद्या बताती हैं कि इस तरह हमारा पूरा परिवार लक्ष्मण रेखा के भीतर रहकर काफी खुश है। खाने से लेकर मनोरंजन तक के लिए घर में ही मौजूद चीजों को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।