सावन में शिवमय महर्षि द्रोण की नगरी, 125 सालों बाद बन रहा पंच महायोग
सवान में कांवड़िये द्रोणनगरी से होते हुए गंगाजल लेने गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री धाम व गोमुख के लिए प्रस्थान करते हैं। 125 सालों बाद हरियाली अमावस्या ...और पढ़ें

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में 17 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं। इस बार 12 दिनों तक चलने वाली यह यात्रा 30 जुलाई को श्रावण कृष्ण चतुर्दशी (श्रावण शिवरात्रि) पर शिवालयों में जलाभिषेक के साथ विराम लेगी। वैसे तो कांवड़ यात्रा का मुख्य केंद्र गंगाद्वार हरिद्वार है, लेकिन द्रोणनगरी (दूनघाटी) के हरिद्वार के करीब होने से यहां भी हरिद्वार जैसा ही उल्लास रहता है। बड़ी तादाद में कांवड़िये द्रोणनगरी से होते हुए ही गंगाजल लेने गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री धाम व गोमुख के लिए प्रस्थान करते हैं। इसके साथ ही द्रोणनगरी में भी कई प्राचीन शिवालय विद्यमान हैं। इनमें श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर, श्री पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर, बाबड़ी शिव मंदिर व जंगम शिवालय का अपना विशिष्ट माहात्म्य बताया गया है। यही वजह है कि श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को इन शिवालयों में कांवड़ यात्रियों का सैलाब उमड़ता है।
परशुराम ने की थी कांवड़ परंपरा की शुरुआत
कांवड़ यात्रा कैसे शुरू हुई, इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। इसमें प्रमुख कथा भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम से जुड़ी है। कहते हैं कि परशुराम ने भगवान शिव के नित्य पूजन के लिए बागपत के पास पुरा महादेव मंदिर की स्थापना की और सावन में गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी लोग गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर पुरा महादेव का अभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर को ब्रजघाट के नाम से जाना जाता है।

वैसे कई अन्य कथाएं भी कांवड़ यात्रा से जुड़ी हुई हैं। एक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष का पान करने से भगवान शिव की देह जलने लगी तो उसे शांत करने के लिए देवताओं ने विभिन्न पवित्र नदियों और सरोवरों के जल से उन्हें स्नान कराया। इसी के बाद सावन में गंगा जल से शिव का अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य कथा में समुद्र मंथन के बाद शिव को ताप से शांति दिलाने के लिए रावण के उनका अभिषेक करने की बात कही गई है। लेकिन, ज्यादा प्रचलित कथा भगवान परशुराम की ही है। मान्यता है कि कांवड़ के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है।

जल संचय की अहमियत समझें, इसी में शिव की प्रसन्नता
कांवड़ यात्रा का आयोजन अतिसुंदर बात है, लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इस आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड़ यात्रा का संदेश इतनाभर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटेभर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हैं, वही शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड़ यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। इसलिए कांवड़ यात्रा की सार्थकता तभी है, जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत-खलिहानों की सिंचाई करें। अपने निवास स्थान पर पशु-पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं। प्रकृति की तरह उदार भगवान शिव की प्रसन्नता इसी में निहित है।

इस सावन में खास
- 125 सालों बाद हरियाली अमावस्या पर पंच महायोग यानी सिद्धि, शुभ गुरु पुष्यामृत, सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग का संयोग।
- सोमवार को पड़ रही नागपंचमी, इस दिन चंद्र प्रधान हस्त नक्षत्र और त्रियोग यानी सर्वार्थ सिद्धि, सिद्धि और रवि योग का भी संयोग।
- रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस एक साथ पड़ने से राखियां भी तिरंगे की ही मिलेंगी।
- 17 जुलाई को सूर्य प्रधान उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से सावन माह की शुरुआत। इसी दिन वज्र और विष कुंभ योग का संयोग भी।
- इस बार चार सोमवार से युक्त पूरे 30 दिन का सावन। इसमें तीसरे सोमवार को त्रियोग का संयोग विशेष फलदायी।
- सावन के ग्रह-नक्षत्र संकेत दे रहे कि इस बार खंड वर्षा होगी। देश के अनेक इलाकों में रुक-रुककर और कहीं बहुत ज्यादा तो कहीं कम बारिश।
- 20 जुलाई से 22 सितंबर तक शुक्र अस्त। इस दौरान मांगलिक कार्य निषेध रहेंगे।


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