दशहरा पर उत्तराखंड के इस पहाड़ी इलाके में होता है 'गागली युद्ध', दो बहनों की मौत से जुड़ी कहानी
जौनसार बावर में पाइंता पर्व पर कुरोली और उत्पाल्टा गांव के लोगों ने गागली युद्ध किया जो पश्चाताप का प्रतीक है। महिलाओं ने तांदी नृत्य से समां बांधा। पर्व दो बहनों मुन्नी और रानी की याद में मनाया जाता है जिनकी मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं। इस युद्ध के द्वारा ग्रामीण अपने पुराने कर्मों के लिए पश्चाताप करते हैं और मिलकर खुशियाँ मनाते हैं।

संवाद सूत्र, जागरण साहिया। गुरुवार को जौनसार बावर में दशहरा यानि पाइंता पर्व मनाया गया। पाइंता पर्व पर नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार स्थल पर पश्चाताप को कुरोली व उत्पाल्टा के ग्रामीणों के बीच भीषण गागली युद्ध चला। यह ऐसा युद्ध है, जिसमें किसी की हार जीत नहीं होती।
युद्ध के बाद दोनों गांवों के ग्रामीणों ने गले मिलकर नृत्य किया। गागली युद्ध के बाद उत्पाल्टा का पंचायती आंगन लोक संस्कृति से गुलजार हो गया। महिलाओं ने सामूहिक रूप से तांदी, झेंता, रासो नृत्यों से समा बांधा।
कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा व कुरोली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं। सुबह ग्रामीणों द्वारा दो बहनों मुन्नी व रानी की मूर्तियों की पूजा की गयी। पाइंता के दिन मूर्तियां कुए में विसर्जित की गयी। उत्पाल्टा व कुरोली के ग्रामीण ढोल नगाड़ों की थाप पर गागली युद्ध के लिए देवधार स्थल के लिए चले। ग्रामीणों के हाथ में गागली के पत्ते व डंठल लहरा रहे थे।
महिलाओं ने तांदी नृत्य कर बांधा समा
युद्ध को लेकर दोनों गांवों के ग्रामीणों में विशेष उत्साह देखा गया। जौनसार के इस अनूठे युद्ध को देखने के लिए आसपास के गांवों से भारी संख्या में ग्रामीणों की मौजूदगी रही। कालसी ब्लाक क्षेत्र के कुरोली व उत्पाल्टा के ग्रामीण अपने अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर इकठठे होकर ढोल नगाड़ों व रणसिंघे की थाप पर हाथ में गागली के डंठल व पत्तों को लहराते व नाचते गाते नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवधार नामक स्थल पर पहुंचे। जहां पर दोनों गांवों के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध की शुरूआत हुई।
गागली के पत्तों व डंठल से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध समाप्त होने पर दोनों गांवों के ग्रामीण गले मिले। उसके बाद उत्पाल्टा गांव के पंचायती आंगन में ढोल नगाड़ों की थाप पर महिलाओं ने सामूहिक रूप से तांदी, झेंता, रासो नृत्य से पाइंता पर्व की खुशियां मनायी।
इस मौके पर उद्पाल्टा के खत स्याणा राजेंद्र सिंह राय, जालम सिंह राय, हरि सिंह राठौर, पूरण सिंह राय, नरेंद्र सिंह राय, अनिल राय, रणवीर सिंह राय, गंभीर सिंह राय, महेंद्र सिंह राय, महिपाल सिंह राय, रविन्द्र सिंह राय, अर्जुन सिंह राय, मुन्ना सिंह राय, बलबीर सिंह राय, स्वराज सिंह राय आदि मौजूद रहे।
पश्चाताप के पीछे की कहानी
गागली युद्ध के पीछे दो बहनों की कहानी है। किवदंती है कि कालसी ब्लाक के उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी व मुन्नी गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं से पानी भरने गई थीं। रानी अचानक कुएं में गिर गई। मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की जानकारी दी, लेकिन स्वजन व ग्रामीणों ने मुन्नी पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगाया।
इससे खिन्न होकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर जीवन समाप्त कर दिया। इससे स्वजन व ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ। इसी घटना को याद कर पाइंता पर्व से दो दिन पहले मुन्नी व रानी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। पाइंता के दिन दो बहनों की मूर्तियां उसी कुएं में विसर्जित की जाती हैं। कलंक से बचने के लिए उत्पालटा व कुरौली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध के रूप में पश्चाताप करते हैं।
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