महिलाओं को लोक संस्कृति के प्रति सशक्त कर रहीं पद्मश्री डा. माधुरी, 15 सालों से मुफ्त प्रशिक्षण का अभियान
पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल उत्तराखंड की लोक संस्कृति को सशक्त बनाने के लिए 15 वर्षों से महिलाओं को निशुल्क प्रशिक्षण दे रही हैं। उनके संस्थान में मांगल गीत ढोल दमाऊं लोकनृत्य व लोकगाथाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए कई पुरस्कार जीते हैं और इंटरनेट मीडिया के माध्यम से भी इसका प्रचार कर रही हैं।

सुमित थपलियाल, जागरण देहरादून। उत्तराखंड लोक संस्कृति, लोकनृत्य को और सशक्त बनाने के लिए लोकगायिका पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल महिलाओं को 15 वर्षों से निश्शुल्क प्रशिक्षण दे रहीं हैं। इनमें अधिकांश गृहिणी हैं। ये सभी मांगल गीत, ढोल दमाऊं व हुड़का वादन के अलावा लोकनृत्य, लोकगाथाएं व अभिनय का प्रशिक्षण ले रही हैं।
वर्तमान में यहां 20-20 महिलाओं के तीन से चार दल जबकि कई छात्र व शोधार्थी भी प्रशिक्षण लेने आते हैं। प्रशिक्षण ले चुके कई लोग विभिन्न राज्यों के मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं। इसके अलावा कालेज, विश्वविद्यालय और गांवों में जाकर संस्था के साथ मिलकर लोक संस्कृति की बारीकी भी बता रही हैं।
पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल वर्तमान में देहरादून के नथुआवाला स्थिति दूरदर्शन कालोनी में रहती हैं। उत्तराखंड के लोक संगीत के संरक्षण और प्रचार के लिए निरंतर कार्य कर रहीं डा. माधुरी आल इंडिया रेडियो के नजीबाबाद केंद्र की पहली महिला संगीतकार रहीं हैं।
सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 2010 में उन्होंने मनु लोक सांस्कृतिक धरोहर संवर्धन संस्थान नाम संस्था बनाई। जिसमें महिलाओं को प्रशिक्षण देकर मांगल टीम का गठन किया। अन्य महिलाएं भी जुड़ने लगीं तो उन्होंने दूरदर्शन कालोनी स्थित घर पर एक प्रशिक्षण संस्थान खोल दिया। जहां सुबह से लेकर शाम तक विभिन्न ग्रुप प्रशिक्षण लेने आते हैं। लोक संस्कृति में 10 से अधिक छात्र-छात्राएं पीएचडी कर चुके हैं।
थड्या, चौंफला, झूमैलो की प्रस्तुति
पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल ने बताया कि गृहिणियों के पास सुबह व शाम को घर में काम ज्यादा होता है, ऐसे में उनके प्रशिक्षण का समय दोपहर में रखा गया। लोकगीत व नृत्य में थड्या, चौंफला, झूमैलो, जबकि लोकगाथा में माधो सिंह भंडारी, पतरोल घसेरी व संवाद प्रदान लोकगीत में अभिनय कराना सिखाया जाता है। मांगल गीत, ढोल दमाऊं व हुड़का वादन, लोक नृत्य, लोकगाथा का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां पर सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोग भी देखने पहुंचते हैं।
विवाह समारोह में बजते थे गलत गीत
पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल ने बताया कि एक बार किसी विवाह समारोह में पहुंची तो देखा कि ऐसे गीत बजाए जा रहे थे जो लोक संस्कृति पर आधारित नहीं थे। चूंकि वह खुद एक शिक्षिका के रूप में लोक संस्कृति से वर्षों से जुड़ी रही तो मन बनाया कि लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए अंतिम सांस तक कार्य करेंगी। आज प्रशिक्षण लेने वाली महिलाएं राज्य ही नहीं दिल्ली, चंडीगढ़, मेरठ जैसे शहरों में भी लोक संस्कृति को प्रदर्शित कर रही हैं।
रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़ा
स्कूली दिनों में उन्हें जब इस बात का भान हुआ कि समाज में लड़कियों के गाने को लेकर अच्छी धारणा नहीं है तो उन्होंने महिलाओं को संगीत में आगे बढ़ाने का मन बना लिया। आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रसारित होने वाले 'धरोहर' के माध्यम से उन्होंने लोकगाथा, गीत, संगीत का प्रचार किया। इसके अलावा वह महिलाओं को गायन, वादन के लिए प्रेरित किया जाता है।
2022 में पद्मश्री और 2024 में तीलू रौतेली पुरस्कार
लोक गीतों और संगीत में माधुरी बड़थ्वाल को 50 वर्षों से शोध का अनुभव है। इस शोध समय में उन्होंने सैकड़ों बच्चों को संगीत की शिक्षा प्रदान की है। वर्ष 2019 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने नारी शक्ति पुरस्कार दिया। 2022 में उन्हें पद्मश्री, 2024 में उन्हें लोकगायन के क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग की ओर से तीलू रौतेली पुरस्कार से नवाजा गया।
इंटरनेट मीडिया से भी प्रचार
डा. माधुरी बड़थ्वाल इंटरनेट मीडिया के इस दौर में फेसबुक लाइव से भी लोक संस्कृति के संरक्षण की अपील करती हैं। इसके लिए उन्होंने मनु लोक सांस्कृतिक धरोहर संवर्धन संस्थान, डा. माधुरी बड़थ्वाल के नाम से फेसबुक पेज बनाया है। साथ ही महिलाओं को दिए जाने वाले प्रशिक्षण के दौरान भी कई बार लाइव आती हैं। वे लोकगीतों पर स्वरलिपी वाली 22 से अधिक पुस्तकें लिख चुकी हैं।
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