Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में ग्रामीणों के लिए मजबूरी बनी ओवरलोडिंग सवारी

    By BhanuEdited By:
    Updated: Thu, 28 Mar 2019 09:54 PM (IST)

    प्रदेश के सैकड़ों दुर्गम पर्वतीय इलाकों के हजारों ग्रामीण आज भी सरकारी सवारी रोडवेज का सफर करने से वंचित हैं। ऐसे में ग्रामीण ओवरलोड वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं।

    उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में ग्रामीणों के लिए मजबूरी बनी ओवरलोडिंग सवारी

    देहरादून, अंकुर अग्रवाल। राज्य बने 18 साल बीत गए और राज्य परिवहन निगम का गठन हुए 14 साल का सफर गुजर चुका है। बावजूद इसके प्रदेश के सैकड़ों दुर्गम पर्वतीय इलाकों के हजारों ग्रामीण आज भी सरकारी 'सवारी' रोडवेज का सफर करने से वंचित हैं। ऐसे में ग्रामीण ओवरलोड वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं। यही वजह है कि सूबे में पर्वतीय व दुर्गम मार्गों पर हादसों का ग्राफ थम नहीं रहा। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रोडवेज पर पर्वतीय दुर्गम क्षेत्रों में बसें नहीं चलाने पर उंगली उठ रही तो परिवहन विभाग पर ओवरलोडिंग व ओवर-स्पीड समेत वाहनों की खराब फिटनेस का ठीकरा फोड़ा जाता है। ये दोनों कारण अपनी जगह वाजिब भी हैं, मगर इसके पीछे सरकार भी कम दोषी नहीं। 

    पर्वतीय इलाकों में बस के संचालन को रोडवेज ने दस वर्ष पहले 99 परमिट तो लिए, लेकिन सरकारी मदद न मिलने से नईं बसें नहीं खरीदी जा सकीं व पांच साल बाद परमिट खत्म हो गए। सरकारी सवारी रोडवेज बस संचालित नहीं होने से ग्रामीण आज भी चार से पांच घंटे में चलने वाली एक-एक निजी बस पर निर्भर हैं। यात्रियों की संख्या अधिक हैं और संसाधन बेहद कम। यही कारण है कि यात्री ओवरलोड निजी बस में यात्रा करने को मजबूर हैं। 

    बात रोडवेज बसें संचालित करने की करें तो वर्ष 2009 में रोडवेज ने गढ़वाल मंडल के दूरस्थ पर्वतीय इलाकों में बसें संचालित करने के लिए राज्य परिवहन विभाग से 99 परमिट लिए थे। इसमें 15 परमिट जौनसार क्षेत्र के लिए मांगे गए थे जबकि शेष अन्य दूरस्थ क्षेत्रों के लिए। 

    रोडवेज ने जौनसार में पहले चरण में दो बसें संचालित भी की, लेकिन कुछ जनप्रतिनिधियों ने विरोध शुरू करा दिया। वजह ये थी कि जनप्रतिनिधियों के अपने निजी वाहन इन मार्गों पर दौड़ रहे हैं। इसके चलते रोडवेज बसों का संचालन रोक दिया गया। यही रुकावट अन्य दूरस्थ इलाकों में भी आई। 

    गढ़वाल में निजी बस आपरेटरों और मैक्सी-कैब संचालकों का तमाम रूटों पर 'राज' चलता है। लिहाजा रोडवेज बसों का संचालन होने नहीं दिया गया। इसके चलते रोडवेज ने भी रुचि नहीं दिखाई तो पांच वर्ष बाद 2014 इन परमिट की वैधता ही खत्म हो गई। हैरानी की बात ये है कि रोडवेज ने वर्ष 2016 में 483 नई बसें खरीदी थीं। 

    इनमें तकरीबन 250 बसें छोटे व्हील-बेस की थीं। दावा किया गया था कि इन बसों को प्रदेश में पर्वतीय मार्गों पर दौड़ाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई ने बताया कि रोडवेज अधिकारी चाहते तो परमिट रिन्यू कराकर बसें संचालित करा सकते थे। 

    निजी ट्रांसपोर्टरों से सेटिंग 

    पर्वतीय मार्गों पर बस संचालन से पीछे हटने की एक वजह निजी ट्रांसपोर्टरों संग रोडवेज अधिकारियों की सेटिंग भी मानी जाती है। सूत्रों की मानें तो जिन मार्गों पर निजी बसें चल रही हैं, वहां रोडवेज बसों का संचालन रोकने के लिए अधिकारियों से सांठगांठ की जाती है। 

    डब्लूटी की ज्यादा चिंता

    नाम न छापने की शर्त पर एक रोडवेज अधिकारी ने बताया कि पर्वतीय मार्गों पर बस संचालन में सबसे बड़ी चिंता बेटिकट की है। कहा कि जो बसें चल रही हैं, वह भी लगातार बेटिकट पकड़ी जाती हैं। ऐसे में दूरस्थ इलाकों में यदि बसें चलाई जाती हैं तो वह सिर्फ घाटे का सबब होंगी। ऐसे में साफ जाहिर है कि भ्रष्टाचार रोकने को नाकाम रोडवेज अधिकारियों को हादसों की कोई चिंता नहीं। 

    दो साल में चलीं 10 सेवाएं

    साल 2017 अप्रैल में त्यूणी में हुए बस हादसे के बाद रोडवेज ने दबाव में दूरस्थ पर्वतीय इलाकों में सेवाएं तो दीं, मगर 10 ही मार्ग पर। इनमें पांच मार्ग जौनसार क्षेत्र हैं तो शेष गढ़वाल के टिहरी व रुद्रप्रयाग जिले के। ये बसें भीं सीएम जनता दरबार में हुई शिकायतों के बाद चलाई गईं।

    यह भी पढ़ें: दून शहर में लग रहे जाम पर शासन सख्त, हरकत में आई पुलिस 

    यह भी पढ़ें: पुलिस बनी बेखबर, जाम में फंस रहा दून शहर, लोगों की मुसीबत

    यह भी पढ़ें: शहर में लग रहा जाम, पुलिस नदारद; आमजन का बुरा हाल

    comedy show banner