डैम से पानी छोड़ने के बाद फंसे मजदूर, 'अपने' ही बने मददगार; कोई सीढ़ी लाया तो किसी ने पाइप डाल बचाई जान
विकासनगर में इच्छाड़ी डैम से पानी छोड़ने के बाद टोंस नदी में फंसे श्रमिकों को उनके साथियों ने बचाया। एक वीडियो में दिखा कि कैसे श्रमिकों ने लोहे की सी ...और पढ़ें

इच्छाड़ी डैम से पानी छोड़ने पर डाउन स्ट्रीम में तेज लहरों में फंस गए थे आपरेटर व श्रमिक। जागरण
जागरण संवाददाता, विकासनगर। इच्छाड़ी डैम से पानी छोड़ने के बाद डाउन स्ट्रीम में टोंस नदी में मरम्मत कार्य करते समय फंसे श्रमिकों और पोकलैंन मशीन के आपरेटर का एक वीडियो प्रसारित हो रहा है। इस वीडियो में श्रमिकों द्वारा एक-दूसरे की जान बचाने के प्रयासों को देखा जा सकता है। किसी ने लोहे की सीढ़ी लगाई, तो किसी ने फ्लेक्सिबल पाइप फेंका, जिससे पोकलैंन मशीन पर फंसा आपरेटर सुरक्षित निकल पाया।
घटना के अनुसार इच्छाड़ी डैम की डाउन स्ट्रीम में मरम्मत कार्य चल रहा था। सायं के समय डैम अधिकारियों ने पांड लेवल बढ़ने पर पानी छोड़ने से पहले दो बार सायरन बजाया। अधिकांश श्रमिक बाहर निकल गए, लेकिन एक श्रमिक और दो पोकलैंन आपरेटर नदी में फंसे रहे। लहरें तेजी से बढ़ रही थीं।
एक पोकलैंन आपरेटर ने पानी से बचने के लिए मशीन पर चढ़कर मदद की गुहार लगाई। अन्य श्रमिकों ने विभिन्न तरीकों से उसकी सहायता करने का प्रयास किया। किसी ने उसे हौसला बढ़ाते हुए मशीन से कूदने से मना किया, जबकि अन्य ने पानी में लोहे की सीढ़ी लगा दी ताकि यदि वह गिरता है, तो बहने से बच सके। इस प्रकार, श्रमिकों ने मिलकर आपरेटर की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, इस पूरे प्रकरण में सिविल विंग का कोई अधिकारी मौजूद नहीं था। ठेकेदार और श्रमिकों ने ही जान बचाने के लिए प्रयास किए।
घटना के अगले दिन सिविल विंग के अधिकारी मौके पर आए और पूरी स्थिति की जानकारी ली। यह सवाल उठता है कि यदि श्रमिक और आपरेटरों की सहायता न की जाती, तो एक बड़ा हादसा हो सकता था। इस घटना के बाद भी जल विद्युत निगम के उच्च अधिकारियों ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। जनसंपर्क अधिकारी विमल डबराल के अनुसार, मामले में रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
यह स्थिति दर्शाती है कि अधिकारियों को श्रमिकों की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं है। इस प्रकार, यह घटना न केवल श्रमिकों की साहसिकता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि जब तक जिम्मेदार अधिकारी सक्रिय नहीं होते, तब तक श्रमिकों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल बनी रहेगी।

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