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पहाड़ों की रानी मसूरी में जैविक सीड बॉल से फूटे अंकुर

केरल के सीड बॉल मॉडल की तर्ज पर मसूरी वन प्रभाग की जौनपुर रेंज के दुर्गम क्षेत्रों में जैविक सीड बॉल के प्रयोग को धरातल पर उतारा गया।

By Edited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 03:00 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 08:49 PM (IST)
पहाड़ों की रानी मसूरी में जैविक सीड बॉल से फूटे अंकुर
पहाड़ों की रानी मसूरी में जैविक सीड बॉल से फूटे अंकुर

देहरादून, केदार दत्त। 'पहाड़ों की रानी' मसूरी के ढंगारी, पथरीले व नंगे पहाड़ों में भी अब हरियाली लौट आएगी। विषम भूगोल ने इन क्षेत्रों में पौधरोपण की राह मुश्किल की तो इसका भी रास्ता ढूंढ लिया गया। केरल के 'सीड बॉल' मॉडल की तर्ज पर मसूरी वन प्रभाग की जौनपुर रेंज के दुर्गम क्षेत्रों में 'जैविक सीड बॉल' के प्रयोग को धरातल पर उतारा गया। कोशिशें रंग लाई और रेंज के बुरांसखंडा, थत्यूड़ व मगरा के जंगलों में विद्यार्थियों की मदद से फेंकी गई सीड बॉल में जगह-जगह अंकुर फूटे हैं। इससे उत्साहित रेंज अधिकारी मनमोहन बिष्ट कहते हैं कि अब अन्य क्षेत्रों में इसी तरह की पहल की जाएगी।

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उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों की भांति मसूरी वन प्रभाग में भी कई ऐसे ढंगारी व पथरीले इलाके हैं, जहां आमजन तो क्या वन्यजीव और पशु-पक्षी तक की पहुंच नहीं हो पाती। यदि वहां कभी किसी तरह का बीज पहुंच भी जाए तो बारिश और तेज हवा के कारण ये वहां टिक नहीं पाते। प्रभाग की जौनपुर रेंज में भी ऐसे क्षेत्रों की कमी नहीं है। रेंज अधिकारी मनमोहन सिंह बिष्ट ने इसे चुनौती के रूप में लिया और वहां हरियाली पनपाने की ठानी।

ऐसे तैयार हुए जैविक सीड बॉल

चिंतन-मनन के दौरान बात सामने आई कि केरल के कई इलाकों में बीज के गोले बनाकर जंगलों में फेंके जाते हैं और इसके अच्छे नतीजे सामने आए हैं। फिर रेंज अधिकारी बिष्ट लग गए इसकी जानकारी जुटाने में। वह बताते हैं कि यहां के विषम भूगोल और वर्षा व तेज हवा में सीड बॉल का ढंगारी व पथरीले क्षेत्रों में टिकना मुश्किल था। इसे देखते हुए गोबर की खाद, चिकनी मिट्टी व कीटनाशक मिलाकर छोटे-छोटे गोले बनाए गए और इनके भीतर डाले गए अखरोट, पदम, गेंदा, काफल, किनगाड़ समेत अन्य वृक्ष, वनस्पति और झाड़ी प्रजाति के बीज। इन्हें सुखाने के बाद इन पर बाहर से लीसा, फेविकोल जैसे चिपकने वाले पदार्थ भी लगाए गए। इन्हें नाम दिया गया जैविक सीड बॉल।

विद्यार्थियों को जोड़ा मुहिम से 

जैविक सीड बॉल तैयार होने के बाद इन्हें जंगल में फेंकने को इंटर कॉलेज बुरांसखंडा के विद्यार्थियों की मदद लेने का निश्चय किया गया। इसके पीछे मंशा विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की भी थी। रेंज अधिकारी के आग्रह पर कॉलेज के प्रधानाचार्य जगमोहन थपलियाल और प्रवक्ता कमलेश्वर प्रसाद भट्ट ने इसमें रुचि ली। इसके बाद कॉलेज के 20 विद्यार्थियों को तैयार कर बुरांसखंडा, थत्यूड़ और मगरा के क्षेत्रों में गत वर्ष नवंबर में ये सीड बॉल फेंके गए।

कई जगह फूटे हैं अंकुर 

रेंज अधिकारी बिष्ट बताते हैं कि तीनों क्षेत्रों में कई जगह सीड बॉल से अंकुर फूटे हैं। धीरे-धीरे ऐसे क्षेत्रों में हरियाली लौट आएगी। झाड़ियां व पेड़ उगने पर वहां परिंदे भी पहुंचेंगे। साथ ही नंगे पहाड़ फिर से हरे-भरे हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि रेंज के अन्य क्षेत्रों में भी इस पहल को अपनाया जाएगा।

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