'जैव पर्यटन' के जरिए उत्तराखंड को विश्व फलक पर लाने की कोशिश
उत्तराखंड को अब जैव पर्यटन के जरिए विश्व फलक पर लाने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए नई पर्यटन नीति में प्रावधान किया गया है।
देहरादून, केदार दत्त। जैव विविधता के लिए मशहूर 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड की इस खासियत को 'जैव पर्यटन' के जरिये विश्व फलक पर लाने की तैयारी है। इसके लिए नई पर्यटन नीति में प्रावधान किया गया है।
वन विभाग और ईको टूरिज्म विकास बोर्ड के सहयोग से उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद इस मुहिम को ईको टूरिज्म के साथ जोड़कर आगे बढ़ाएगा। इसके तहत उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित बुग्याल (मखमली हरी घास के मैदान), ताल, राष्ट्रीय पार्क, अभयारण्य व पक्षी विहारों के साथ ही जैव विविधता के मामले में धनी दूसरे स्थलों से देश-विदेश के सैलानी रूबरू हो सकेंगे। इसके साथ ही स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के दरवाजे भी खुलेंगे। ईको एवं जैव पर्यटन की गतिविधियां इस प्रकार तय की जाएंगी कि इससे पर्यावरण पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़ने पाए।
नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखंड की वादियां हमेशा से सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। फिर चाहे वह हिमाच्छादित चोटियां, बुग्याल हों हों फिर यहां के छह राष्ट्रीय पार्क, सात अभयारण्य, चार संरक्षण आरिक्षिति (कंजर्वेशन रिजर्व) अथवा दूसरे रमणीक क्षेत्र, सभी पर्यटकों की पसंद में शुमार हैं। खासकर विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क तो पूरी दुनिया में विख्यात है।
इस सबके मद्देनजर अब राज्य की जैवविविधता को बड़े फलक पर ले जाने की तैयारी है। जैव विविधता के मामले में राज्य वैसे भी बेजोड़ है, जिसे पर्यटन से जोड़ा जाएगा। इसके तहत जैवविविधता में रुचि रखने वाले पर्यटकों को आकर्षित किया जाएगा। हाल में जारी नई पर्यटन नीति के अनुसार ईको टूरिज्म के साथ जोड़कर जैव पर्यटन को धरातल पर आकार दिया जाएगा। हालांकि, बुग्यालों समेत कुछ मामलों में कुछ प्रतिबंध भी हैं, लेकिन अब इसके लिए रास्ता निकाला जा रहा है। वन विभाग और इको टूरिज्म विकास बोर्ड के साथ मिलकर उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (यूटीडीपी) इसमें जुटी है। इस कड़ी में पूरा खाका तैयार किया जा रहा है।
जैव पर्यटन के मुख्य क्षेत्र
माणा, चोपता, चकराता, देवरियाताल, पल्लयू, सौकियाताल, बागेश्वर, मुनस्यारी, डोडीताल, द्यारा बुग्याल, काणाताल, सातताल, चाईंशिल बुग्याल, मोरी समेत अन्य क्षेत्र।
वन्यजीव एवं पक्षी विहार
जिम कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क, नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क, गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क, बिनसर अभयारण्य, केदारनाथ कस्तूरा मृग अभयारण्य, अस्कोट कस्तूरा मृग अभयारण्य, नीलधारा पक्षी विहार, विनोग वन्यजीव विहार, गोविंद वन्यजीव विहार, केदारनाथ अभयारण्य आदि।
जैव-इको पर्यटन नीति के खास बिंदु
-यूटीडीपी वन विभाग व इको टूरिज्म बोर्ड के परस्पर समन्वय से करेगा कार्य
-राष्ट्रीय पार्कों व अभयारण्यों में पर्यटक सुविधाएं सुनिश्चित करने को वन विभाग के साथ मिलकर होगा काम
-जैव पर्यटन गतिविधियों को वन विभाग की सहायता से किया जाएगा विकसित
-सभी प्रकार के गंतव्यों का नियोजन स्थानीय समुदाय की भागीदारी से होगा
-यूटीडीपी, वन विभाग व स्थानीय समुदाय के मध्य एमओयू के आधार पर जंगल आधारित गतिविधियों के संचालन को तलाशेंगे संभावनाएं
-अंतरराष्ट्रीय मानकों के स्तर पर नेचर इंटरप्रेटेशन सेंटर, नेचर कैंप, बर्ड वाचिंग कैंप, नेचर टूर प्रोग्राम होंगे तय
-यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इको व जैव पर्यटन की गतिविधियों से पर्यावरण पर कोई नकारात्मक असर न पड़े
-जैव पर्यटन गाइड और नेचरलिस्ट को वन विभाग के माध्यम से प्रशिक्षण की होगी व्यवस्था
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