Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड में अब बंजर भूमि दूर करेगी बेरोजगारी

पौड़ी जिले के पाबौ ब्लॉक की कलुण ग्राम पंचायत में बंजर पड़ी 60 हेक्टेयर भूमि जल्द ही गांव के एक युवक की पर लेमनग्रास से लहलहाएगी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 21 Aug 2018 02:07 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 08:45 AM (IST)
उत्‍तराखंड में अब बंजर भूमि दूर करेगी बेरोजगारी

देहरादून, [जेएनएन]: उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पाबौ ब्लॉक की कलुण ग्राम पंचायत में बंजर पड़ी 60 हेक्टेयर भूमि जल्द ही गांव के एक युवक की पर लेमनग्रास से लहलहाएगी। ग्रामीणों ने फिलहाल पांच हेक्टेयर भूमि पर लेमनग्रास के तीन लाख पौधे रोपे हैं। वर्तमान में इस से लगभग चार दर्जन ग्रामीण जुड़ चुके हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या सर्वाधिक है। फसल तैयार होने तक गांव में प्लांट भी तैयार लगाया जाएगा।

loksabha election banner

 20 जनवरी 1976 को तुलसी सिंह रावत व राजेश्वरी रावत के घर जन्मे विजेंद्र सिंह रावत ने वर्ष 1992 में कॉन्वेंट स्कूल पौड़ी से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। पारिवारिक कारणों के चलते स्नातकोत्तर की पढ़ाई उन्होंने व्यक्तिगत (प्राइवेट) छात्र के रूप में की। इसके अलावा उन्होंने पत्रचार से मैनेजमेंट का एक-वर्षीय डिप्लोमा भी लिया। इसके बाद लंबे समय तक मुंबई की एक निजी कंपनी में जनरल मैनेजर के पद पर रहे। लेकिन, पहाड़ के लोगों का दुख-दर्द उन्हें हमेशा सालता रहा। इसलिए करीब एक वर्ष पूर्व उन्होंने गांव लौटकर स्वरोजगार की दिशा में कार्य करने की की। 

इसके लिए गांव में आम बैठक आयोजित कर बंजर खेतों में लेमनग्रास रोपने की बात ग्रामीणों के बीच रखी। तो ग्रामीणों ने हामी नहीं भरी, लेकिन दो-एक प्रयासों के बाद सभी इसके लिए तैयार हो गए। वर्तमान में कलुण के सभी परिवार इस योजना से जुड़ चुके हैं। विजेंद्र बताते हैं कि योजना के क्रियान्वयन में उत्तराखंड जड़ी-बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर (चमोली) के वैज्ञानिकों का विशेष सहयोग रहा। 

मनरेगा में की गई पौध की खरीद

ग्राम पंचायत कलुण की प्रधान शशि नेगी बताती हैं कि गांव की करीब 60 हेक्टेयर भूमि बंजर पड़ी है। चरण में पांच हेक्टेयर भूमि पर लेमनग्रास की तीन लाख से अधिक पौध रोपी गई है। यह पौध सेलाकुई (देहरादून) स्थित पौधशाला से मंगाई गई। पौध की खरीद मनरेगा के माध्यम से की गई। इसमें प्रति पौधे 75 पैसे की लागत आई। 

दस से 12 महीने में मिलेगा उत्पादन

लेमनग्रास की खेती से उत्पादन दस से 12 महीनों में मिलेगा। विजेंद्र ने बताया कि लेमनग्रास रोपने के बाद पहली बार उत्पादन में एक वर्ष तक का समय लग जाता है। लेकिन, इसके बाद खेती वर्ष में तीन फसल देती है। सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश नेगी बताते हैं कि गांव के युवा रोजगार के अभाव में पलायन कर रहे थे। लेकिन, विजेंद्र की इस ने उनमें नई उम्मीद जगाई है।

सौंदर्य प्रसाधन बनाने में आती है काम

लेमनग्रास के तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार के शैंपू, इत्र, साबुन, सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में किया जाता है। इस तेल का बाजार मूल्य प्रति लीटर करीब एक हजार रुपये है। 

ग्रामीणों की आर्थिकी होगी मजबूत

विजेंद्र बताते हैं कि लेमनग्रास की खेती से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति संवारने के लिए खाका तैयार कर लिया गया है। ग्रामीण लेमनग्रास से तेल पिरोने के लिए गांव में ही प्लांट स्थापित करेंगे। तैयार उत्पादों के विपणन के लिए संबंधित कंपनियों को गांव में आमंत्रित किया जाएगा। इसका निर्णय खेती से जुड़े परिवारों की समिति करेगी। कम उत्पादन की स्थिति में ग्रामीण उत्पादों का विपणन स्वयं के स्तर पर करेंगे। बिक्री के लिए गांव में ही लेमनग्रास की पौध भी तैयार की जाएगी।

यह भी पढ़ें: एशियाई खेलों में मेडल जीतने वाले दीपक की यह भी है खासियत, बोलते हैं धाराप्रवाह संस्कृत

यह भी पढ़ें: अकेले 72 घंटे तक चीनी फौज से लिया था लोहा, शहादत को अपनों ने ही भुला दिया


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.