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एशियाई खेलों में मेडल जीतने वाले दीपक की यह भी है खासियत, बोलते हैं धाराप्रवाह संस्कृत

18वें एशियाई खेलों में 10 मीटर राइफल स्पर्धा में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाले दीपक कुमार मूलरूप से दिल्ली के रहने वाले हैं। वह धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 21 Aug 2018 09:33 AM (IST)Updated: Tue, 21 Aug 2018 08:37 PM (IST)
एशियाई खेलों में मेडल जीतने वाले दीपक की यह भी है खासियत, बोलते हैं धाराप्रवाह संस्कृत
एशियाई खेलों में मेडल जीतने वाले दीपक की यह भी है खासियत, बोलते हैं धाराप्रवाह संस्कृत

देहरादून, [जेएनएन]: 18वें एशियाई खेलों में 10 मीटर राइफल स्पर्धा में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाले दीपक कुमार धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं। आज भी दीपक देहरादून आकर गुरुकुल में रहकर योगाभ्यास करते हैं। दीपक मूलरूप से दिल्ली के रहने वाले हैं। 

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इसे संयोग ही कहा जाएगा कि आज ही के दिन 2001 में दीपक ने देहरादून के पौंधा स्थित गुरुकुल में प्रवेश लिया था। उन्होंने यहीं से 2001 में शास्त्री की पढ़ाई शुरू की। 2001 में दीपक कुमार के सहपाठी और वर्तमान में गुरुकुल में सेवा दे रहे शिवदेव आर्य ने बताया कि दीपेंद्र (सहपाठियों में इसी नाम से पुकारे जाते हैं) धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं। इसके अलावा उन्हें सामदेव के करीब एक हजार मंत्र याद हैं। 2007 तक उन्होंने गुरुकुल में रहकर ही पढ़ाई की थी। 

इसके बाद उनकी एयरफोर्स में नौकरी लग गई। अभी भी जब उन्हें समय लगता है, वे गुरुकुल आकर योगाभ्यास करते हैं। सहपाठी शिवदेव आर्य का कहना है कि दीपेंद्र ने गुरुकुल में रहकर ही निशानेबाजी शुरू की थी। उन्होंने बताया कि 2004 में एक दिन गुरुकुल में पूर्व खेल मंत्री नारायण सिंह राणा आए थे। 

उन्होंने कहा कि आप लोग योगाभ्यास करते हैं तो आपको निशानेबाजी में भी हाथ आजमाना चाहिए। बस ये बात दीपेंद्र के दिल में घर कर गई। उन्होंने उस दिन से निशानेबाजी शुरू कर दी। दीपेंद्र रोजाना गुरुकुल से पौंधा शूटिंग रेंज पैदल जाते थे और अभ्यास करते थे

रात में जाग-जागकर की प्रेक्टिस

सहपाठी शिवदेव आर्य ने बताया कि दीपेंद्र काफी जुनूनी थे। रात को अक्सर वो जाग-जागकर राइफल उठाकर प्रेक्टिस किया करते थे। उसी का नतीजा है कि आज दीपेंद्र ने एशियाई खेलों में सिल्वर मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया है।

दीपेंद्र के लिए आई थी गुरुकुल में पहली राइफल 

उन्होंने बताया कि गुरुकुल में पहली राइफल दीपेंद्र के लिए आई थी। गुरुकुल के प्रबंधक आचार्य डॉ. धनंजय और चंद्रभूषण व्यक्तिगत खर्चे पर उनके लिए राइफल लेकर आए थे।

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