अब बंद होगा संकरे मार्ग पर बहुमंजिला निर्माण का खेल, जानिए
दून में संकरे मार्गों पर बहुमंजिला इमारतें नहीं खड़ी हो पाएंगी। ऐसे में संकरी और घनी आबादी वाले इलाकों में जाम से भी निजात मिल पाएगी।
देहरादून, जेएनएन। चंद महीने के भीतर दून में संकरे मार्गों पर बहुमंजिला इमारतें नहीं खड़ी हो पाएंगी। ऐसे में संकरी और घनी आबादी वाले इलाकों में बड़ी आवासीय परियोजना के साथ ही कमर्शियल न हो पाने की दशा में जाम से भी निजात मिल पाएगी। इसकी बड़ी वजह यह कि जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआइएस) आधारित मास्टर प्लान में सेटेलाइट से मार्गों की वास्तविक चौड़ाई दर्ज करने का काम किया जा रहा है।
अब तक लागू वर्ष 2005-2025 के मास्टर प्लान में सड़क का वास्तविक चौड़ाई के मानक की जगह मास्टर प्लान में दर्ज चौड़ाई के आधार पर निर्माण की स्वीकृति दी जाती रही है। इसके चलते कम चौड़ाई वाले शहर के कई अंदरूनी इलाकों में भी बड़े निर्माण हो गए हैं। इसके चलते गली-मोहल्लों में भी पार्किंग की समस्या बनी रहती है।
एमडीडीए उपाध्यक्ष डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि नया मास्टर प्लान लागू होने के बाद पुराना प्लान निरस्त हो जाएगा। जून माह में सभी सेटेलाइट चित्र प्राप्त हो जाएंगे और अगले छह से सात माह में मास्टर प्लान को तैयार कर दिया जाएगा। इसके बनने के बाद शहर के जिस हिस्से में मार्ग की जो चौड़ाई है, उसी के अनुरूप भवनों की ऊंचाई को स्वीकृति दी जाएगी।
एक खसरा नंबर का होगा एक लैंडयूज
एमडीडीए उपाध्यक्ष डॉ. आशीष श्रीवास्तव के मुताबिक नए मास्टर प्लान में जटिलताओं को भी दूर किया जा रहा है। अब एक खसरा नंबर में एक ही लैंडयूज (भू-उपयोग) रहेगा। इससे किसी भी तरह की अनियमितता होने की आशंका को भी समाप्त कर दिया जाएगा। वहीं, मास्टर प्लान में पेयजल लाइनें, स्कूल, अस्पताल आदि की भी स्पष्ट जानकारी मिल जाएगी।
एक क्लिक पर सामने होगा मास्टर प्लान
नया मास्टर प्लान डिजिटल होगा। इसे कोई भी व्यक्ति एमडीडीए की वेबसाइट पर जाकर इसे देख सकेगा। साथ ही संबंधित क्षेत्र व खसरा नंबर डालकर भू-उपयोग की जानकारी भी प्राप्त की जा सकेगी। इसके लिए राजस्व विभाग के रिकॉर्ड को भी मास्टर प्लान में दर्ज किया जा रहा है।
बायलॉज के संशोधन मास्टर प्लान में दर्ज होंगे
राज्य सरकार ने बिल्डिंग बायलॉज में संशोधन कर 30 मीटर से अधिक ऊंचाई के भवन निर्माण को भी हरी झंडी दे दी है। हालांकि, इसके लिए व्यवस्था की गई है कि विकास प्राधिकरणों को सबसे पहले हाई-राइज बिल्डिंग जोन घोषित करने होंगे।
अब तक मैदानी क्षेत्रों में एक समान रूप से अधिकतम 30 मीटर की ऊंचाई तक के भवनों का ही निर्माण संभव है। ऐसे में कई दफा कम क्षमता वाले भूखंड पर भी अट्टालिकाओं का निर्माण कर दिया जाता था। क्योंकि अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि कहीं भूकंपीय फॉल्ट लाइन पर तो ऐसे निर्माण की स्वीकृति नहीं दे दी गई। अच्छी बात यह कि नए मास्टर प्लान में ऐसे जोन घोषित किए जाएंगे और सिर्फ वहीं अधिक ऊंचे भवनों के निर्माण को मंजूरी दी जाएगी।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ पर्यावरण संरक्षण पर देगा सलाह
वर्लड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) उन क्षेत्रों में लैंडयूज तय करने में एमडीडीए की मदद करेगा, जहां वन क्षेत्र हैं या जानवरों के कॉरीडोर हैं, ऐसे क्षेत्रों में संबंधित भूमि के अनुरूप ही निर्माण को स्वीकृति दी जाएगी। ताकि पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े और वन्यजीवों की स्वच्छंदता भी बरकरार रह सके।
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