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उत्तराखंड में अब नेतृत्व को दिखाना होगा दम

उत्तराखंड में जनता ने यह नई कहानी लिखी है तो उद्देश्य भी कुछ खास है। देवभूमि अब तक पहाड़ से दिख रहे विकास के रास्ते पर सरपट दौड़ना चाहती है। अब नेतृत्व को ताकत दिखानी होगी।

By BhanuEdited By: Published: Sun, 19 Mar 2017 09:54 AM (IST)Updated: Mon, 20 Mar 2017 05:00 AM (IST)
उत्तराखंड में अब नेतृत्व को दिखाना होगा दम
उत्तराखंड में अब नेतृत्व को दिखाना होगा दम

देहरादून, [नितिन प्रधान]: बीते सोलह साल में आठ मुख्यमंत्री देखने के बाद हाल के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत के साथ मजबूत सरकार का गठन..। जनता ने यह नई कहानी लिखी है तो उद्देश्य भी कुछ खास है। देवभूमि अब तक पहाड़ से दिख रहे विकास के रास्ते पर सरपट दौड़ना  चाहती है। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के लिए यही ताकत भी है और चुनौती भी।

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साल 2000 में देश में छोटे राज्यों के रूप में छत्तीसगढ़ और झारखंड के साथ उत्तराखंड (तब नाम उत्तरांचल) की स्थापना इनके विकास को ध्यान में रखकर तत्कालीन एनडीए सरकार ने की थी। माना गया था कि ये राज्य आकार में छोटे होने की वजह से विकास के इंजन के तौर पर काम करेंगे और देश के संपूर्ण विकास में अपना योगदान करेंगे, लेकिन तब से उत्तराखंड राजनीतिक स्थिरता की बाट जोह रहा है। 

भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ और उसके बाद झारखंड में यह साबित कर चुकी है कि इन राज्यों के विकास के लिए स्थायी शासन कितना आवश्यक है। झारखंड का पिछला चुनाव ही पार्टी ने इसी मुद्दे पर लड़ा और उसके बाद से वहां शासन में स्थायित्व बना हुआ है।

उत्तराखंड अभी तक इस स्थायित्व से अछूता रहा है। प्रदेश में चाहे भाजपा का शासन रहा हो या कांग्रेस का, दोनों पार्टियों में सरकार की स्थिरता कभी बनी नहीं रह सकी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की सोच में अब राज्यों में राजनीतिक और शासकीय स्थिरता का अहम स्थान है। 

यही वजह है कि उत्तराखंड के चुनाव प्रचार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदेश के विकास के लिए 'डबल इंजन' की बात कर अपनी मंशा बता चुके हैं।

रावत के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष, दोनों का आना इस बात का गवाह है कि उनकी नजर में प्रदेश में भाजपा की सरकार कितनी महत्वपूर्ण है। वैसे भी बताया जाता है कि रावत, मोदी और शाह दोनों के करीबी हैं। 

हरियाणा के बाद उत्तराखंड में त्रिवेंद्र रावत के रूप मे एक ऐसे मुख्यमंत्री को कमान मिली है जो संघ से प्रशिक्षित हैं। जाहिर है कि इस कारण उन्हें शायद पार्टी के अंदर की खेमेबाजी से थोड़ा कम जूझना पड़े। बावजूद इसके यह उनकी प्रशासनिक और राजनीतिक क्षमता पर भी निर्भर करेगा कि वह प्रदेश में किस तरह सामंजस्य बनाकर सरकार चलते हैं। यह इसलिए अहम है क्योंकि उनकी परीक्षा पांच साल बाद नहीं, दो साल बाद ही लोकसभा चुनाव में होनी है।

उत्तराखंड का देश के विकास में योगदान अभी अपने जन्म के साथी राज्यों छत्तीसगढ़ और झारखंड, दोनों से पीछे है। देश की जीडीपी में इस प्रदेश का योगदान महज सवा फीसद के आसपास है। 

प्रदेश का अपना विकास भी उस रफ्तार से नहीं हुआ है, जैसा छोटे राज्य के तौर पर होना चाहिए था। पहाड़ी राज्य होने की अपनी दिक्कतें जरूर हैं लेकिन प्रदेश की राजनीति में लगातार चलती रही उठापटक का खामियाजा भी प्रदेश की जनता को उठाना पड़ा है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ही प्रदेश के विकास का एजेंडा तय कर दिया था जिसमें चारों धाम के लिए हर मौसम के अनुकूल सड़कों का निर्माण प्रमुख है। इसके अलावा युवाओं के लिए प्रदेश में रोजगार के अवसर मुहैया कराना बड़ी चुनौती है। जानकार मानते हैं कि ये सब काम तभी हो सकते हैं जब प्रदेश में पांच साल का मुख्यमंत्री हो।

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