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'रख हौसला वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा', ऐसी ही है अपर्णा की कहानी

यह कहानी है 2002 बैच की 44-वर्षीय अपर्णा कुमार की, जिन्होंने बीती 13 जनवरी को दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा फहराकर देश की पहली आइपीएस होने का गौरव हासिल किया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 11:46 AM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 12:09 PM (IST)
'रख हौसला वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा', ऐसी ही है अपर्णा की कहानी
'रख हौसला वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा', ऐसी ही है अपर्णा की कहानी

देहरादून, सुकांत ममगाईं। 'रख हौसला वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आएगा। थककर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर, मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आएगा।' बीती 13 जनवरी को दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा फहराने वाली देश की पहली महिला आइपीएस 44-वर्षीय अपर्णा कुमार पर यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं। अपर्णा अब उत्तरी ध्रुव पर तिरंगा फहराने की तैयारी में हैं। इसके बाद वह उत्तरी अमेरिका के अलास्का में माउंट डेनाली चोटी का आरोहण करेंगी।

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2002 बैच की आइपीएस अपर्णा कुमार महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुकी हैं। वर्तमान में वह देहरादून के सीमाद्वार स्थित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल के फ्रंटियर हेडक्वाटर में बतौर उप महानिरीक्षक तैनात हैं। बताती हैं कि आगामी अप्रैल में वह उत्तरी ध्रुव के लिए अभियान शुरू करने जा रही हैं। इसके बाद मिशन सेवन समिट के अंतिम चरण में जून में माउंट डेनाली चोटी पर आरोहण करेंगी। बैंगलुरु निवासी अपर्णा ने जिंदगी में तमाम-उतार चढ़ाव देखे हैं। बालपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया था,  ऐसे में घर की पूरी जिम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर आ गई। बताती हैं कि स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारी रहीं मां अश्विनी ने उनकी परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिंदगी के तमाम संघर्षों ने अपर्णा को मजबूती के साथ आगे बढऩा सिखाया। वह नेशनल लॉ स्कूल बैंगलुरु से लॉ ग्रेजुएट हैं।

दक्षिणी ध्रुव का अभियान अपर्णा के लिए बाधाएं तो बहुत लाया, लेकिन उन्होंने मंजिल पर पहुंच कर ही दम लिया। जबकि, अभियान शुरू होने से ठीक पहले वह निमोनिया से जूझ रही थीं। बकौल अपर्णा, 'इतना काफी नहीं था, क्योंकि अभियान के दौरान मैंने अपना चश्मा भी तोड़ लिया था। चेहरे को काटती तेज गति से चलने वाली बर्फीली हवाओं और माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में दिन के आठ घंटे स्कीइंग ने मेरे इस सफर को यादगार बना दिया।'

हिमशिखरों की दास्तां सुनकर बदला जिंदगी का रुख 

अपर्णा बताती हैं कि 2012 में वह 9वीं बटालियन पीएसी मुरादाबाद में कमान्डेंट थीं। आइटीबीपी से पहले यही बटालियन चीन सीमा की निगहबानी करती थी। ऊंचे हिमशिखरों से जुड़ा इसका एक स्वर्णिम इतिहास है। उन्हें भी इस बारे में कई साहसिक किस्से-कहानियां सुनने को मिलीं। बर्फ से लकदक पहाडिय़ों के बीच अपने अनुभव लोग बताया करते थे। यहां पर्वतारोहण के उपकरण, विभिन्न अभियानों से जुड़े किस्से-कहानियां व हिमशिखरों की दास्तान सुनकर जिंदगी का रुख बदल गया। उनकी जिज्ञासा बढ़ती गई। वह खेलों में अच्छी थीं, सो सोचा क्यों न पर्वतारोहण में भी प्रयास किया जाए। एक बार कदम बढ़ाए तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उम्र तो बस एक संख्या है 
अपर्णा बताती हैं कि अक्टूबर 2013 में उन्होंने मनाली में अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान से बेसिक कोर्स किया। तब उनकी उम्र 38 वर्ष थी और वह कोर्स में सबसे उम्रदराज सदस्य थीं। उनके अलावा एनसीसी कैडेट व तमाम युवा कोर्स का हिस्सा थे। बताती हैं कि कोर्स की शुरुआत में ही पति ने कहा था, 'अब कदम बढ़ाए हैं तो पीछे मत हटाना। एक आइपीएस होने के नाते तुम्हें इस पेशे का सम्मान भी रखना है।' सो, वह जिम्मेदारी का भाव लेकर आगे बढ़ी और ए ग्रेड के साथ कोर्स पूरा किया। फिर एडवांस कोर्स पूरा करने के बाद पर्वतारोहण उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। कहती हैं कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। सभी महिलाओं के लिए उनका संदेश है कि सपने देखें, जीवन का एक ध्येय रखें और कभी हार न मानकर दृढ़ता के साथ सपनों को पूरा करें।

कदम-कदम बढ़ती रहीं अपर्णा 
अपर्णा कहती हैं, 'मैं जानती थी कि मुझे शारीरिक एवं मानसिक रूप से मजबूत होना होगा। क्योंकि, इस काम के लिए धैर्य के साथ ही दृढ़ता भी चाहिए। पहली बार अगस्त 2014 में माउंट किलिमंजारो का सफल आरोहण किया। जनवरी 2016 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर भी फतह हासिल की।' एवरेस्ट फतह करने वाली भी वह देश की पहली आइपीएस अधिकारी रही हैं। यही नहीं, नेपाल की सबसे ऊंची चोटी माउंट मनास्लू पर बतौर भारतीय सफल आरोहण करने वाली भी वह पहली महिला हैं। वह सेवेन समिट में छह शिखरों का आरोहण भी कर चुकी हैं।

निमोनिया, टूटा चश्मा, बर्फीली हवाएं और ... 
दक्षिणी ध्रुव के अभियान के अनुभव साझा करते हुए अपर्णा बताती हैं कि इस अभियान में वह अकेली महिला थीं। वहां मौसम कभी एक जैसा नहीं रहता। कभी तेज हवाएं चलती हैं तो कभी बर्फबारी होने लगती है। अंटार्टिक इस धरती का सबसे ठंडा एवं शुष्क क्षेत्र है। मेरे हाथ और उंगलियां बहुत ज्यादा ठंडे थे। साथ ही मुझे फ्रॉस्ट बाइट (हिमदाह) से बेहद डर लग रहा था। अभियान में यूनाइटेड किंगडम का एक साथी ऊंचाई की समस्या के चलते तो आयरलैंड का साथी अन्य दिक्कतों के चलते वापस लौट चुका था। इसके अलावा उनका एक गाइड भी हृदय संबंधी दिक्कतों के चलते वापस लौट गया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। खास बात यह कि इस अभियान में वह अपने साथ 40 किलो वजन लेकर भी चली। कहती हैं, साहसिक अभियानों के क्षेत्र में अपनी सफलता के लिए वह आइटीबीपी के वरिष्ठ अधिकारियों, पति आइएएस संजय कुमार व परिवार के सहयोग को अहम मानती हैं। 

बोलीं, परिवार मेरी ताकत 
अपर्णा कहती हैं कि मेरा परिवार ही मेरी ताकत है। उसने हर कदम पर मेरा समर्थन और मुझे प्रोत्साहित किया। अपर्णा की 12 साल की बेटी स्पंदन व आठ वर्षीय बेटा नीलकंठ हैं। वह सेंट जोजफ्स एकेडमी में पढ़ रहे हैं। कहती हैं, बच्चों को बहुत कम समय दे पाती हूं, पर मेरी कामयाबी पर उन्हें फख्र है और वह कभी कोई शिकायत नहीं करते। कभी-कभी मुझे उनके स्कूल में मुख्य अतिथि के रूप में भी बुलाया जाता है, जिस पर वह फूले नहीं समाते। साथ ही कहते हैं, इससे उनका फ्रैंड सर्किल भी बढ़ा है। 

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