Move to Jagran APP

उत्तराखंड में अब हाथियों को थामने की नई कवायद, जानिए क्या है योजना

उत्तराखंड में हाथियों को थामने की नई कवायद शुरू हो गई है। दरअसल मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रदेश में चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 03:18 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 03:18 PM (IST)
उत्तराखंड में अब हाथियों को थामने की नई कवायद, जानिए क्या है योजना
उत्तराखंड में अब हाथियों को थामने की नई कवायद, जानिए क्या है योजना

केदार दत्त, राज्य ब्यूरो। 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है। पहाड़ों में गुलदारों ने नींद उड़ाई है, तो मैदानी क्षेत्रों में हाथियों ने। यमुना से शारदा तक राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के साथ ही 13 वन प्रभागों के 6643.5 वर्ग किलोमीटर में हाथियों का बसेरा है। इस क्षेत्र में विकास और जंगल के बीच परस्पर समन्वय के अभाव से हाथियों का मनुष्य से निरंतर टकराव हो रहा। हालांकि, हाथियों को जंगल में रोकने को हाथीरोधी दीवार, सोलर फेंसिंग, खाई खुदान, लैमनग्रास का रोपण जैसे कदम उठाए गए, लेकिन इनके अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे। ऐसे में नए उपाय तलाशना आवश्यक है। अब इसकी कवायद भी शुरू हो गई है। वन विभाग की अनुसंधान विंग को यह जिम्मा सौंपा गया है, जो वन सीमा पर कांटेदार बांस, अगेव अमेरिकाना की बाड़ के साथ ही मधुमक्खियों के जरिये हाथियों को रोकने के लिए काम करेगी।

loksabha election banner

शिखर पर बाघ, चुनौती और चिंता बढ़ी

यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ संरक्षण में उत्तराखंड अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यहां के जंगलों में बाघों का बढ़ता कुनबा इसकी गवाही दे रहा। वर्ष 2006 में यहां बाघों की संख्या 178 आंकी गई थी, वह अब 442 पहुंच गई है। कार्बेट टाइगर रिजर्व की इसमें अहम भूमिका है, जिसमें 266 बाघ होने का अनुमान है। यही नहीं, मैदानी इलाकों से निकलकर बाघ अब हिमालय की तरफ बढ़े हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक इनकी मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। ऐसे में चुनौती और चिंता दोनों बढ़ गए हैं। चुनौती इनकी सुरक्षा की और चिंता ये कि भविष्य में गुलदारों की तरह बाघ भी जनमानस के लिए परेशानी का सबब न बनें। जाहिर है कि इसके लिए ऐसे कदम उठाने की दरकार है, जिससे बाघ सुरक्षित रहें और मनुष्य भी। बाघों के लिए बेहतर वासस्थल पर फोकस करना होगा, जिससे वे जंगल की देहरी पार न करें।

आखिर कब परवान चढ़ेगी चौकसी की मुहिम

कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व की उत्तर प्रदेश से लगी सीमा को बेहद संवेदनशील माना जाता है। वह इसलिए कि इन दोनों टाइगर रिजर्व में शिकारी अक्सर उप्र की सीमा से घुसपैठ करते आए हैं। पूर्व में ऐसे अनेक मामले सामने आ चुके हैं। नतीजतन, वन्यजीव सुरक्षा के लिहाज से इस सीमा को संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। फिर भी यहां चौकसी के मामले में वे उपाय नजर नहीं आते, जिनकी दरकार है। उत्तराखंड बनने के बाद से निरंतर ये बात हो रही कि दोनों राज्यों के वन महकमों के कार्मिक इस सीमा पर संयुक्त गश्त करेंगे, लेकिन इसे लेकर गंभीरता नहीं दिखती। अब जबकि मानसून सीजन को वन्यजीव सुरक्षा के लिहाज से ज्यादा खतरनाक माना जाता है तो फिर संयुक्त गश्त की बात हो रही। जानकार कहते हैं कि संयुक्त गश्त, सीजन विशेष नहीं वर्षभर होनी चाहिए। ये मुहिम कब परवान चढ़ेगी भविष्य के गर्त में छिपा है।

पौधे लगाओ, फोटो खिंचवाओ और भूल जाओ

वर्षाकाल शुरू होने के बाद से उत्तराखंड में हरियाली के लिए पौधारोपण की मुहिम चल रही है। जंगल से लेकर गांव-शहर और सार्वजनिक स्थलों पर बड़े पैमाने पर पौधारोपण हो रहा। हरियाली के लिए यह बयार सुकून देती है, मगर सवाल उठता है कि क्या हम पौधारोपण को लेकर वाकई में गंभीर हैं। ऐसा नजर नहीं आता। बस, एक परिपाटी चल रही। पौधे लगाओ, फोटो खिंचवाओ और फिर भूल जाओ।

यह भी पढ़ें: International Tiger Day 2020: उत्तराखंड में शिखर पर बाघ, चुनौतियां भी बरकरार

यही, सब पौधारोपण पर भारी पड़ रहा है। अन्यथा, उत्तराखंड बनने के बाद से हर साल लग रहे औसतन डेढ़ से दो करोड़ पौधे यदि आज जीवित रहते तो हरियाली का क्षेत्रफल कहीं आगे बढ़ चुका होता। हकीकत ये है कि पौधे लगाने के बाद उनकी ओर झांकने तक की जहमत नहीं समझी जा रही। यदि थोड़ी भी सक्रियता बरती जाती तो राज्य में स्थिति एकदम दूसरी होती। कहने का आशय ये कि पौधारोपण को बेहद गंभीरता से लेना होगा।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में हाथियों को आबादी की तरफ आने से रोकेंगे कांटेदार बांस और मधुमक्खियां


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.